अमेरिका के एक राज्य मेरीलैंड के प्रमुख शहर फ़ेडरिक में नहर के किनारे बेंचों पर बैठ कर देर तक बतियाते हुए अमेरिकी लोगों का हुजूम आम तौर पर अपनी दुनियादारी तक ही सीमित रहता है। चर्चा देश की राजनीति और राष्ट्रपति ट्रम्प पर भी होती है, इसराइल-फिलिस्तीन - ग़ज़ा के साथ साथ रशिया-यूक्रेन युद्ध पर भी। लेकिन इन दिनों यहाँ से गुजरते हुए मोदी (मोडी), इंडिया और टैरिफ़ जैसे शब्द भी सुनाई दे जाय तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। 
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी सी से सटे हुए मेरीलैंड में भारतीय उतने नहीं हैं जितने न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया और कंप्यूटर तकनीक का गढ़ माने जाने वाले सिलिकॉन वैली जैसे कुछ अन्य शहरों में। फिर भी उनकी उपस्थिति दर्ज होती है। वाईन या बियर की घूंट के साथ शब्दों को कुतरते हुए लोगों की बातों पर ध्यान दें तो पता चलता है कि भारत पर ट्रम्प की कार्रवाइयों को लेकर कुछ लोगों में हैरानी भी है और क्षोभ भी। लेकिन ट्रम्प भक्तों की एक जमात भी है जो उम्मीद कर रहा है कि ट्रम्प की इन नीतियों से मूल अमेरिकियों को ज़्यादा अवसर मिलेंगे।
 ट्रम्प विरोधी हों या भक्त उनकी नोबेल पुरस्कार पाने की लालसा पर कोई न कोई तीखी टिप्पणी करके ठहाका ज़रूर लगाते हैं। ज्यादातर अमेरिकी हैरान हैं कि नोबेल पुरस्कार के लिए ट्रम्प बेताब क्यों हैं।
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नोबेल पर नजर  

 भारत - अमेरिका की राजनीति पर नजर रखने वाले लोग ट्रम्प के भारत विरोधी अभियान को भी नोबेल पुरस्कार की उनकी लोलुप इच्छा से जोड़कर देखते हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि ट्रम्प चाहते हैं कि भारत मान ले कि भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान से युद्ध रोकने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। जैसे पाकिस्तान ने ट्रम्प की मध्यस्थता स्वीकार करके उन्हें नोबेल पुरस्कार देने की सिफारिश कर दी है वैसा ही भारत भी करे। भारत इसे मानने के लिए तैयार नहीं है इसलिए भारत के प्रति ट्रम्प का रूख सख्त होता जा रहा है। 
ट्रम्प का दावा है कि वो सात युद्धों को रोक चुके हैं। इनमें थाइलैंड -कंबोडिया, आर्मेनिया - अज़रबैजान और इसराइल - ईरान भी शामिल है। लेकिन अमेरिकी चुटकी लेते हुए कहते हैं कि इसराइल - ग़ज़ा और रशिया- यूक्रेन युद्ध क्यों नहीं रोक रहे हैं। ग़ज़ा में इसराइली सैनिक कार्रवाई पर अमेरिकियों में खासी नाराज़गी दिखाई दे रही है। अमेरिकी अखबार आज कल ग़ज़ा में मानवीय संकट की खबरों से भरे रहते हैं। अमरीकियों का मानना है कि इसराइल पर दबाव डाल कर ग़ज़ा में कार्रवाई रोकी जा सकती है। 
अमेरिका में बस चुके भारतीय मूल के एक पत्रकार विनोद घिल्डियाल कहते हैं कि शुरू में वो ट्रम्प के प्रशंसक बन गए थे लेकिन अब उन्हें लगता है कि ट्रम्प महज़ बयानबाजी करके समय निकाल रहे हैं। उनके पास अमेरिका की समस्याओं का हल करने के लिए कोई ठोस नीति है ही नहीं। घिल्डियाल कहते हैं कि भारत पर भारी टैक्स लगा कर ट्रम्प अमेरिकी उपभोक्ताओं का नुकसान कर रहे हैं।

भारत पर पाँच हमले  

एच 1 बी वीसा पर भारी फ़ीस लगा कर अमेरिका में भारतीय प्रोफेशनल्स के प्रवेश को मुश्किल बनाने और भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाली चीज़ों पर 50 फीसदी टैक्स लगाने के अलावा ट्रम्प तीन और तरीकों से भारत की मुश्किलें बढ़ाने की जुगत में हैं। वो नाटो में शामिल देशों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत से आयात होने वाली चीजों पर सौ प्रतिशत टैक्स लगाएं क्योंकि भारत ने रसिया से पेट्रोल -डीजल का आयात बंद नहीं किया है। 
ट्रंप प्रशासन ने नशीली दवा बनाने और बेचने वाले 23 देशों की सूची में भारत को भी शामिल करके अमेरिका और यूरोप में भारतीय दवाओं की बिक्री को मुश्किल बनाने की कोशिश कर रहा है।भारत दवाओं का एक बड़ा निर्माता और निर्यातक देश है। वैसे ट्रम्प सरकार फ़ेंटिनल जैसी दवाओं में उपयोग किए जाने वाले जिन रसायनों की बात कर रही है उनका उत्पादन और निर्यात भारत में पहले से नियंत्रित है। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि ड्रग्स के ओवर डोज से अमेरिका में हर साल करीब 50 AM हजार तक लोगों की मौत होती है। 
चीन पर उसका प्रमुख निर्माता और निर्यातकर्ता होने का आरोप लगाया जाता है। तेल की ख़रीद रोकने के कारण भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट पर कई समस्याएं पहले से आ रही हैं। इस पोर्ट का निर्माण और रखरखाव भारत के पास है। ट्रम्प सरकार अब यूरोप के अपने मित्रों भी इसका उपयोग पूरी तरह बंद करने के लिए दबाव बढ़ा रहा है।

कहां से मिलेंगे नडेला और पिचाई  

ट्रम्प सरकार दावा करती है कि अमेरिकी कंपनियां एच 1 बी वीजा के ज़रिए भारत और कुछ अन्य देशों से सस्ते प्रोफ़ेशनल बुला लेती हैं जिससे अमेरिकी युवकों को रोजगार नहीं मिलता है। इस पर बहुत बहस हो चुकी है। लेकिन बड़ी संख्या में अमेरिकी मानते हैं कि इसके ज़रिए अमेरिका आने वाले लोगों ने तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका के दबदबे को क़ायम रखने में मदद की है। गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला, एक्स के सीईओ पराग अग्रवाल, पेप्सी की पूर्व सीईओ इंदिरा नूई, एडोबी के सीईओ शांतनु नारायण आई बी एम के सीईओ अरविंद कृष्णा और जी क्यू जी के संस्थापक राजीव जैन जैसे लोग एच 1 बी वीजा पर ही अमेरिका पहुंचे थे। 
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अमेरिका के आई टी उद्योग का दबदबा बनाने और उसको कायम रखने में इस वीजा पर जाने वालों की अहम भूमिका लगातार बरकरार है। भारत की टी सी एस और विप्रो जैसी कंपनियां इन्ही प्रोफेशनल की मदद से अमेरिका को समृद्ध कर रही हैं। अमेजन और गूगल जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां इनके बूते पर ही चल रही हैं। इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क भी कभी एच 1 बी वीजा पर ही अमेरिका पहुंचे थे। 
कई अमेरिकी एक और बात पर भी चुटकी लेते हैं। ट्रम्प की पत्नी मलेनिया ट्रम्प भी कभी एच 1 बी वीजा पर माडलिंग के लिए अमेरिका पहुंची थीं। एक युवा अमेरिकी अपने दोस्तों की महफ़िल में टिप्पणी करता है, पहले किसी राष्ट्रपति ने ऐसा वीजा वार कर दिया होता तो शायद ट्रम्प अब योग्य बैचलर होते, उसकी बात ख़त्म होते ही ठहाके गूंज उठते हैं।