सवाल सीधा है: एप्सटीन की गंदी फाइलों में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम किसने घसीटा? और इसकी जाँच या इस पर बात क्यों नहीं हो रही?
बहुचर्चित एप्सटीन फाइलों की खबरें कहाँ से आई हैं, इसकी जाँच कौन कर रहा है, इजाज़त किसने दी, अमेरिकी जाँच एजेंसियों की क्या भूमिका है... काश पटेल और अन्य के इनकार के बावजूद – यह जाँच कैसे, किसके द्वारा, किसकी निगरानी में हो रही है, और ये अत्यंत संवेदनशील फाइलें आख़िर सार्वजनिक कैसे हुईं... ये वही सवाल हैं जो अमेरिका और भारत, दोनों के लोकतंत्र की परिपक्वता, पारदर्शिता और निष्पक्षता की कसौटी बनते हैं। भारत को छुपना नहीं सीखना होगा।

ट्रंप की जाँच पर ट्रंप के हस्ताक्षर

केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम इन फाइलों में कहाँ, कैसे, कितना, और क्यों आने की खबरों पर जाने से पहले जान लीजिए कि 15 जुलाई 2025 को पेश Epstein Files Transparency Act (H.R. 4405) नामक जिस बिल को अमेरिका की संसद (हाउस) ने 18 नवंबर 2025 को 427-1 के भारी मतों से पास किया, वह 19 नवंबर 2025 को उन्हीं डोनाल्ड जे. ट्रंप के हस्ताक्षर से कानून बना। अमेरिकी राष्ट्रपति का नाम शर्मसार करने वाले दस्तावेजों को खोलने का अधिकार देने वाले इस कानून को पास करने से लेकर इसकी जाँच तक में अमेरिकी न्यायपालिका के साथ ट्रंप सरकार की अपनी ही एजेंसियाँ, कांग्रेस और मीडिया ने खुलकर साथ दिया। क्योंकि व्यक्ति नहीं, देश बड़ा है, समाज बड़ा है और सबसे ऊपर नैतिकता बड़ी है।
इस H.R. 4405 कानून के तहत 30 दिनों के भीतर यानी 20 दिसंबर तक अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस (DOJ) – जिसमें FBI और अन्य प्रॉसिक्यूटर ऑफिस शामिल हैं – को आदेश दिया गया है कि वे अपने पास मौजूद सभी "unclassified" (गैर-गोपनीय) एप्सटीन-संबंधी दस्तावेज, संचार, जाँच सामग्री, यात्रा-लॉग आदि सार्वजनिक करें।

क्या ये आरोप हैं या कोई साज़िश?

ट्रंप ने एक बार कहा था कि वे प्रधानमंत्री मोदी का राजनीतिक करियर बर्बाद नहीं करना चाहते। यह भाषा क्या बताती है? भारत इस पर बात करने से बचकर देश को शर्मसार नहीं कर सकता। और यह मामला तो भारत की कूटनीति, विदेशों से संबंध और सुरक्षा जैसे सवालों से जुड़ रहा है। भारत अगर खुद को लोकतांत्रिक, ज़िम्मेदार और न्यायप्रिय मानता है, तो इन सवालों से भागना नहीं, बताना चाहिए कि: "क्या बात हुई? मुलाकात हुई या प्रस्ताव मात्र रहा? नाम कैसे आया, और हमने क्या जवाब दिया?"
दुनिया भर की मीडिया में छाए एप्सटीन की गंदी फाइलों की चर्चा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी के उस कथित ट्वीट से शुरू हुई, जिसे उन्होंने कथित तौर पर डिलीट कर दिया और जिसके कथित स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हैं। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में चूँकि भारतीय नेताओं का नाम FBI की जारी फाइलों में लिया जा रहा है, तो उनकी तहकीकात ज़रूरी है।

पुरी और मोदी के बारे में आरोप: 13 नवंबर को कांग्रेस के मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा ने पार्टी की प्रवक्ता विंग कमांडर अनुमा आचार्य (सेवानिवृत्त) के 12 नवंबर के पोस्ट पर लिखा – "Serious questions being raised by my colleague here. The name figuring in the #EpsteinFiles deserves clarification. Mr Puri needs to come clean on this."

अनुमा आचार्य ने 12 नवंबर 2025 को लिखा – "The recently surfaced email dated September 19, 2014, attributed to Jeffrey Epstein, has raised several serious and legitimate questions..." उनके करीब पन्ने भर के ट्वीट में कांग्रेस ने न केवल फाइलों में आए सवालों का ज़िक्र किया, बल्कि डॉ. पुरी, BJP और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी सफ़ाई माँग ली।
बात छुपी नहीं रह गई है। कबूतर के आँख बंद कर लेने से बिल्ली का ख़तरा नहीं टलेगा। डॉ. स्वामी के डिलीट किए कथित ट्वीट की आशंका जताई गई कि आने वाले दिनों में और भी शर्मसार कर देने वाली चीज़ें सामने आ सकती हैं। तो अब जब यह फाइलें दुनिया भर में प्रसारित हो रही हैं, और इसके मुख्य किरदारों में सबसे बड़े नाम राष्ट्रपति ट्रंप खुद इन सवालों के जवाब दे रहे हैं, जाँच करा रहे हैं, तो विपक्ष की माँग ठीक है कि इसमें प्रधानमंत्री मोदी को भी सामने आना चाहिए।

एप्सटीन की फाइलों में डॉ. पुरी और उनकी पृष्ठभूमि

एप्सटीन फाइलों में डॉ. पुरी का नाम सीधे उन अदालती दस्तावेजों या यौन तस्करी के आरोपों से जुड़ी आधिकारिक गवाहियों में शामिल नहीं है, जिन्हें अमेरिकी अदालत ने सार्वजनिक किया है। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जेफरी एप्सटीन के सहयोगियों द्वारा तैयार किए गए कुछ ईमेल या अनौपचारिक संपर्क सूचियों में उनका नाम आया था, जिसमें वैश्विक स्तर के प्रभावशाली लोग शामिल थे। एक वरिष्ठ राजनयिक (IFS) के नाते डॉ. पुरी का वैश्विक संपर्क का होना लाज़िमी है। इसलिए किसी सूची में नाम होने से यह साबित नहीं होता कि वह एप्सटीन के आपराधिक नेटवर्क या गतिविधियों में शामिल थे। इस विषय पर अटकलबाज़ी के बजाय तथ्यों पर आधारित अंतिम उत्तर डॉ. पुरी स्वयं दे सकते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी से कैसे जुड़े डॉ. पुरी?

डॉ. पुरी ने स्वयं कहा था कि मोदी को उनके मुख्यमंत्री बनने से भी पहले से जानने का "अद्वितीय सौभाग्य" उन्हें प्राप्त था। 1999 में अरुण जेटली के एक कार्यक्रम में पुरी की मुलाकात पहली बार मोदी से हुई। तब पुरी विदेश सेवा में थे। 2003 में जब वे जिनेवा में पदस्थापित थे, तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी श्यामजी कृष्ण वर्मा के अस्थि-कलश लेने स्विट्जरलैंड आए, तो दो दिन तक पुरी उनके साथ रहे। वहीं से रिश्ते की गहराई बढ़ी।
1974 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी डॉ. पुरी ने अपनी सेवानिवृत्ति (फरवरी 2013) और 2 जनवरी 2014 को औपचारिक रूप से BJP में शामिल होने के ठीक बाद से तत्कालीन मनमोहन सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना शुरू कर दी थी। उन्होंने कहा था कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति BJP के दृष्टिकोण के प्रशंसक रहे हैं और 2013 में ही पार्टी में शामिल होना चाहते थे।

मनमोहन ने पुरी को बनाया था

डॉ. पुरी को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 2009 से 2013 तक संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थायी प्रतिनिधि बनाया था। उसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है – वहीं, जहाँ एप्सटीन की गतिविधियाँ केंद्रित थीं। उनका प्रभाव अमेरिका में राजनयिक और थिंक टैंक समुदाय में बहुत अधिक था। लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने से बहुत पहले से ही उनके बयानों से साफ़ था कि वे एक विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा के पक्ष में काम कर रहे थे। साफ़ तौर पर वे मोदी और BJP की ज़मीन तैयार कर रहे थे।
मार्च 2014 में मोदी सरकार बनने से पहले 'My Vision for 2020' शीर्षक से अपने एक भाषण में उन्होंने मनमोहन काल में विनिर्माण और कृषि क्षेत्रों में कथित गिरावट, उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ती आर्थिक असमानता को "ज़हरीला और अत्यधिक ज्वलनशील कॉकटेल" क़रार दिया और "तत्काल कोर्स करेक्शन" के लिए एक "गतिशील नेतृत्व" की आवश्यकता जताई। इसने मोदी के पक्ष में चुनावी माहौल का एजेंडा तैयार किया।

मोदी के मास्टर माइंड व अडवाणी के करीबी रहे पुरी

विदेश से लेकर रक्षा, आर्थिक, पंजाब, कृषि, ऊर्जा व शहरी विकास समेत कई मामलों में मोदी के मास्टर माइंड करीबी सलाहकार माने जाने वाले डॉ. पुरी लालकृष्ण अडवाणी के बेहद करीबी रहे हैं। कहते हैं कि IFS अफ़सर रहीं उनकी पत्नी लक्ष्मी पुरी अडवाणी को लगभग पाँच दशकों से जानती हैं। पुरी के पिता सरदार भगत सिंह पुरी विभाजन (1947) के बाद पाकिस्तान से भारत आए और बाद में भारतीय विदेश सेवा (IFS) में शामिल हुए। दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास स्नातक और स्नातकोत्तर डॉ. हरदीप पुरी ने कुछ समय स्टीफंस कॉलेज में पढ़ाया भी है।

मोदी ने पहले मंत्री बनाया, फिर सांसद भी

जनवरी 2014 में लोकसभा चुनावों में पार्टी की जीत से लगभग चार महीने पहले, पुरी को विदेश मंत्रालय की कमान मिलने की चर्चा थी। लेकिन यह ज़िम्मेदारी अनुभवी नेता सुषमा स्वराज को मिल गई। पुरी को तीन साल इंतज़ार करना पड़ा। आख़िरकार 2017 में मोदी उन्हें वेंकैया नायडू की जगह मंत्रिमंडल फेरबदल में ले आए और शहरी विकास मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया। इसके बाद वे 2018 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद बने। 2019 में अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ा, पर कांग्रेस के गुरजीत सिंह औजला से 99,626 वोटों से हार गए। इसके बावजूद वे मंत्री बने रहे और बाद में नागरिक उड्डयन मंत्रालय तथा पेट्रोलियम मंत्रालय भी सँभाला। अरुण जेटली के साथ भी गाढ़ी दोस्ती रही। अमृतसर से 2014 में अरुण जेटली भी हारे थे। दोनों ही बाद में राज्यसभा से संसद पहुँचे और मंत्री बने।

मोदी का नाम कैसे आयाः अमेरिकी हाउस ओवरसाइट कमेटी द्वारा जारी दस्तावेज़ों और ड्रॉप साइट न्यूज़ को मिले लगभग 18,000 एप्स्टीन ईमेल्स में दावा किया गया कि जेफ़्री एप्स्टीन ने कथित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के पूर्व मुख्य रणनीतिकार स्टीव बैनन के बीच मुलाक़ात कराने की पेशकश की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, 23 मई 2019 को—जिस दिन मोदी ने लोकसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत हासिल कर दूसरी बार प्रधानमंत्री पद सुरक्षित किया—स्टीव बैनन ने जेफ़्री एप्स्टीन को मैसेज किया, “मैं यहाँ मोदी पर भारत के लिए एक घंटे का शो कर रहा हूँ—साथ में कुछ अमेरिकी हिंदू दोस्तों को भी ला रहा हूँ।“ यह घटना एप्स्टीन की बाल यौन तस्करी मामले में गिरफ़्तारी से महज़ दो महीने पहले की बताई जाती है। जब वह पहले से ही विवादों में घिरा हुआ था।

ये स्टीव बैनन कौन है?

2016 में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान के मुख्य रणनीतिकार रहे बैनन को ट्रंप ने अपने प्रशासन में जनवरी 2017 में White House Chief Strategist बनाया था, लेकिन अगस्त 2017 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा। खुद को आर्थिक राष्ट्रवादी मानने वाले स्टीव बैनन ने मोदी को "ट्रंप से पहले का ट्रंप" कहा था और रिपब्लिकन हिंदू कोएलिशन जैसे संगठनों से जुड़कर भारत और मोदी समर्थक नेटवर्क के साथ करीबी बनाई। वर्जीनिया (अमेरिका) में जन्मे वर्जीनिया टेक स्नातक, और हार्वर्ड से MBA बैनन ने भारतीय-अमेरिकी समुदाय और मोदी को लेकर कई बार सार्वजनिक बयान दिए। बाद में Breitbart News के प्रमुख बने, जिसे उन्होंने “alt-right” विचारधारा को मंच बनाया।

जवाहर सरकार ने माँगी सफ़ाई

पूर्व राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने हरदीप सिंह पुरी से स्पष्टीकरण माँगा कि वे 2014 से 2017 के बीच जेफ्री एप्सटीन से पाँच बार क्यों मिले, जैसा कि अमेरिकी हाउस ओवरसाइट कमेटी के दस्तावेजों में दर्ज है। रिपोर्टों के अनुसार एप्सटीन की निजी कैलेंडर एंट्रियों में पुरी के साथ कई अपॉइंटमेंट दर्ज हैं, जिनमें न्यूयॉर्क भी शामिल है। तब पुरी इंटरनेशनल पीस इंस्टीट्यूट के वाइस-प्रेसिडेंट थे, जिसका नेतृत्व एप्सटीन के करीबी टेरजे रॉड-लार्सन कर रहे थे।
एप्सटीन की बातचीत में अनिल अंबानी का भी नाम आया, जिनकी कंपनी रिलायंस डिफेंस ने इजरायल की सरकारी कंपनी के साथ बड़ा रक्षा समझौता किया था। मार्च 2017 में अंबानी ने एप्सटीन को मोदी की अमेरिका यात्रा पर एक लेख भेजा, जिस पर एप्सटीन ने जवाब दिया – "India Israel key, not for email" और इसे "Israel strategy" का हिस्सा बताया। इसी दौर में भारत-इजरायल के रक्षा संबंध और गहरे हुए।

तथ्य-सार:

  • एक ईमेल में एप्सटीन ने "girls? careful I will renew an old habit" लिखा, जिससे भारत में विवाद हुआ क्योंकि उसी थ्रेड में पुरी का नाम भी था। लेकिन बाद में स्पष्ट किया गया कि यह संदर्भ असंबंधित था और पुरी का नाम गलत वर्तनी ("puree") से आया था।

  • दस्तावेजों में एप्सटीन और भारतीय हस्तियों (मोदी, पुरी, अंबानी) के बीच मुलाकातों और संवादों में भारत, चीन, इजरायल संबंधों का ज़िक्र भी आया।

  • अवैध गतिविधियों का कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं। लेकिन इन कड़ियों ने राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया। विपक्ष ने सवाल उठाए, जबकि BJP ने इसे गलत व्याख्या और महज़ असंबंधित नाम-ड्रॉपिंग बताया।

मोदी, पुरी, एप्सटीन और अंबानी

अब तक किसी भारतीय नेता की प्रत्यक्ष संलिप्तता का सबूत सामने नहीं आया है। लेकिन जारी दस्तावेजों और रिपोर्टों में जेफ्री एप्सटीन और भारतीय हस्तियों – प्रधानमंत्री मोदी, पेट्रोलियम मंत्री पुरी और उद्योगपति अनिल अंबानी – के बीच रिश्तों और नेटवर्क का उल्लेख है। इसमें 2014-2019 के दौरान मुलाकात कराने की कोशिशें, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भू-राजनीतिक चर्चाएँ और कैलेंडर अपॉइंटमेंट दर्ज हैं। असल विवाद का केंद्र ज़्यादा हरदीप सिंह पुरी रहे, मोदी और एप्सटीन के बीच कोई ठोस जुड़ाव अब तक नहीं दिखा।

ट्रंप की धमकियाँ और एप्सटीन का हथियार

सवाल यह है कि क्या एप्सटीन फाइलों ने FBI, CIA और ट्रंप सरकार के हाथ वह हथियार थमा दिया, जिसके बूते वे मोदी पर ट्रेड-टैरिफ से लेकर पाकिस्तान से युद्ध रोकने और यहाँ तक कि उनका राजनीतिक करियर बर्बाद करने जैसी धमकियाँ देकर दबाव बनाने लग गए? क्या इसीलिए एक बार मोदी ने खुद कहा कि वह अपना नुकसान झेलकर भी किसानों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। क्या इसीलिए पार्टी समर्थक और 'गोदी मीडिया' के एक वर्ग ने कहा कि CIA उनकी सरकार गिराना चाहती है? क्या इसीलिए राहुल गाँधी ने “नरेंद्र सरेंडर” जैसे आरोप लगाए?

एप्सटीन फाइल टाइमलाइन

कैसे, कब और किसने कीं फाइलें सार्वजनिक

  • जुलाई 2019: जेफरी एप्सटीन को यौन तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

  • अगस्त 2019: एप्सटीन की न्यूयॉर्क जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत।

  • 2020-2024: एप्सटीन के सहयोगी घिसलेन मैक्सवेल पर मुकदमा चला, सज़ा हुई। इस दौरान हजारों पृष्ठों के अदालती दस्तावेज जमा हुए, जिनमें कई प्रभावशाली लोगों के नाम आए।

  • 15 जुलाई 2025: अमेरिकी संसद में Epstein Files Transparency Act (H.R. 4405) पेश। इसका मक़सद एप्सटीन से जुड़े सभी गैर-गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक करना था।

  • 18 नवंबर 2025: अमेरिकी संसद ने इस बिल को 427-1 के भारी बहुमत से पारित किया।

  • 19 नवंबर 2025: राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रंप ने इस पर हस्ताक्षर करके कानून बना दिया। यह एक ऐतिहासिक था, क्योंकि ट्रंप का खुद का नाम भी एप्सटीन मामले में चर्चा में रहा है।

  • नवंबर 2025 के अंत में: कानून के तहत, अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) और FBI को 30 दिनों के भीतर दस्तावेज सार्वजनिक करने का आदेश दिया गया। इसी दौरान लगभग 18,000 ईमेल और दस्तावेज (ड्रॉपसाइट न्यूज़ आदि को प्राप्त) सार्वजनिक हुए, जिनमें विभिन्न देशों के नेताओं, व्यवसायियों और अकादमिक हस्तियों के नामों का उल्लेख था।

  • दिसंबर 2025: भारत में इन फाइलों में हरदीप सिंह पुरी और नरेंद्र मोदी के नामों के उल्लेख को लेकर राजनीतिक बहस शुरू। विपक्ष ने स्पष्टीकरण की माँग की।
साफ़ है कि यह प्रक्रिया अमेरिकी संसद और कार्यपालिका द्वारा एक पारदर्शी कानूनी रास्ते से चलकर सामने आई है, न कि किसी लीक या हैक के ज़रिए।

गोपनीयता भी और ख़तरा भी

अमेरिका में उच्च-पदों के नाम चर्चा में आए तो भी ट्रंप के ही हस्ताक्षर से वहाँ की सरकार ने एक तरफ सामूहिक जाँच और पारदर्शिता की रोशनी दिखाई है, तो दूसरी तरफ भी ये साफ़ किया है कि अगर उन दस्तावेजों में किसी पीड़ित की निजी जानकारी हो, या जारी जाँच चल रही हो, तो वीडियो/छवियाँ या संवेदनशील जानकारी redact (गुप्त) की जा सकती है। लेकिन यह भी कहा है कि "राजनीतिक संवेदनशीलता" या "प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचने" जैसे आधार पर रोक नहीं की जा सकती। यही वजह है कि इसकी गंभीरता अब भी ज़्यादा है और इनसे जुड़े सवालों से मुँह नहीं चुराया जा सकता। इसलिए ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री बात करें, संसद को विश्वास में लें और जाँच कराएँ, ताकि भारत शर्मसार न हो।

अगला अध्याय

एक फिल्म का डायलॉग था कि पुलिसवालों से न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। अगर ट्रंप को दुनिया का पुलिस प्रमुख मानें, तो यह बात उन पर फ़िट बैठती है। मोदी ने उनसे दोस्ती भी खूब कर ली और दुश्मनी भी। पर अपनी दोस्ती खुद बिगाड़ने के लिए क्या मोदी की नीतियाँ ज़िम्मेवार हैं, या कोई और भी है, जो इसमें पलीता लगा रहा है। इसका खुलासा अगले अध्याय में।