असम में प्रशासन ने एक बार फिर डिमोलिशन ड्राइव शुरू किया है, जिससे करीब 580 परिवार बेघर होने के कगार पर हैं। सरकार इसे अतिक्रमण हटाओ अभियान बता रही है, तो फिर मुस्लिम को निशाना बनाने के आरोप क्यों लग रहे हैं?
असम में सर्दियों के बीच अब 580 परिवारों के घरों को उजाड़े जाने की कार्रवाई शुरू की गई है। असम सरकार ने वन ज़मीन पर अतिक्रमण हटाने के लिए अपने डिमोलिशन ड्राइव को फिर से तेज कर दिया है। पश्चिमी असम के गोलापारा जिले में रविवार को जिला प्रशासन और वन विभाग ने दहिकाटा आरक्षित वन में लगभग 1140 बीघा ज़मीन पर बड़ा अभियान शुरू किया। हालाँकि, हिमंत बिस्व सरमा सरकार ने इसे अतिक्रमण विरोधी अभियान बताया है, लेकिन विपक्षी दल और पीड़ित परिवार सांप्रदायिक आधार पर कार्रवाई करने का आरोप लगा रहे हैं।
एआईयूडीएफ जैसे दल मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की साजिश का आरोप लगाते रहे हैं। ऐसा ही आरोप एआईयूडीएफ ने तब भी लगाया था जब इसी साल कई मस्जिदों पर बुलडोजर की कार्रवाई हुई थी। कुछ लोग कह रहे हैं कि पहले पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए। प्रभावितों का कहना है कि वे यहां दशकों से रह रहे हैं, बच्चे स्कूल जाते हैं, खेती-बाड़ी करते हैं, अब कहाँ जाएँ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन परिवारों को पहले ही नोटिस जारी कर दिए गए हैं। जिला उपायुक्त प्रदीप तिमुंग ने बताया कि यह अभियान कम से कम दो दिनों तक चलेगा। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, गोलापारा डीसी प्रदीप तिमुंग ने कहा, 'हमने 580 परिवारों को ध्वस्तीकरण नोटिस जारी किए हैं। यह पूरी भूमि दहिकाटा आरक्षित वन के अंतर्गत आती है, जिस पर इन लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है।' अधिकारियों के अनुसार, अभियान के दौरान 50 से अधिक जेसीबी मशीनें तैनात की गई हैं और 70 प्रतिशत परिवारों ने पहले ही क्षेत्र खाली कर दिया है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस, ब्लैक कमांडो और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ की भारी तैनाती की गई है। बीजेपी ने इस कार्रवाई का वीडियो ट्वीट किया है।
1000 पुलिसकर्मी तैनात
इस अभियान में 1,000 से अधिक वनकर्मी और पुलिसकर्मी लगाए गए हैं। मध्य असम सर्कल के वन संरक्षक सुनीदेव इंद्रदेव चौधरी ने कहा, 'केवल गोलापारा जिले में ही इस वर्ष ध्वस्तीकरण के माध्यम से 900 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि मुक्त कराई गई है।' वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि ये अभियान मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के उद्देश्य से चलाए जा रहे हैं, जो गोलापारा जैसे जिलों में एक बड़ी समस्या है।
‘जनसांख्यिकीय आक्रमण’ के ख़िलाफ़ कार्रवाई?
असम में इस वर्ष डिमोलिशन ड्राइव चरम पर पहुँच गया था, खासकर जुलाई और अगस्त में जब कई जिलों में बड़े पैमाने पर घरों को ध्वस्त किया गया। सरकार ने इसे ‘एक धर्म के लोगों द्वारा जनसांख्यिकीय आक्रमण’ को रोकने का माध्यम बताया। प्रभावितों में अधिकांश बंगाली मूल के मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। हालाँकि, 19 सितंबर को असम के सुपरस्टार गायक जुबीन गर्ग की मौत के बाद राज्य में शोक की लहर दौड़ गई और डिमोलिशन ड्राइव कुछ समय के लिए शांत हो गया। रविवार का यह अभियान पिछले दो माह में पहला बड़ा ध्वस्तीकरण है।
गोलापारा जिले में ही पहले भी कई बड़े अभियान चलाए गए हैं। 12 जुलाई को पैकान आरक्षित वन में 140 हेक्टेयर वन भूमि मुक्त की गई, जबकि 16 जून को हसीला बील के आर्द्रभूमि क्षेत्र से 600 से अधिक परिवारों को हटाया गया। गोलापारा के दक्षिणी हिस्से में फैला दहिकाटा आरक्षित वन वर्षों से अवैध बस्तियों और वनों की कटाई का शिकार रहा है। यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए अहम है और मेघालय की वन सीमा के साथ बफर जोन का काम करता है।
नेपाल जैसी स्थिति पैदा करने की साजिश: CM
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दो दिन पहले फेसबुक लाइव में इस अभियान की घोषणा की थी। जुबीन गर्ग की मृत्यु के बाद राज्य में उत्पन्न तनाव और जांच पर दबाव का जिक्र करते हुए उन्होंने इसे ‘राज्य में नेपाल जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश’ बताया। सरमा ने कहा, "कई लोगों को लगा होगा कि डिमोलिशन रुक जाएगा। ‘हमने हिमंता बिस्वा सरमा पर इतना दबाव डाला है कि वे अब हिम्मत नहीं करेंगे।’ मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैं आपको खुश नहीं कर सकता। 9 और 10 नवंबर को गोलापारा के दहिकाटा वन में डिमोलिशन शुरू होगा।”
सरमा ने जोर देकर कहा कि यह अभियान वन संरक्षण और पर्यावरणीय प्रबंधन का हिस्सा है। वनमंत्री चंद्र मोहन पटोवारी ने हाल ही में कहा था कि ध्वस्तीकरण के साथ-साथ विस्थापित परिवारों के लिए पुनर्वास और जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, 'वन संरक्षण को मानवीय नीतियों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।' पिछले चार वर्षों में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में असम में 1.03 लाख बीघा से अधिक वन भूमि मुक्त की गई है।
अभियान का बड़ा असर
दहिकाटा अभियान असम सरकार की भूमि पुनर्प्राप्ति रणनीति का हिस्सा है, जो वनों की घटती कवरेज को रोकने और पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने पर केंद्रित है। जून 2025 में हसीला बील में 1500 बीघा ज़मीन मुक्त की गई थी, जो इसी श्रृंखला का हिस्सा था। हालाँकि, मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि बिना पर्याप्त पुनर्वास के ये अभियान सामाजिक अस्थिरता पैदा कर सकते हैं।