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लॉकडाउन में फँसे लाखों बिहारी मज़दूर कैसे लौटेंगे अपने घर?

बिहार के लाखों प्रवासी मज़दूर लाॅकडाउन की वजह से देश के अलग-अलग हिस्से में फँसे हुए हैं। घर आने को व्याकुल लगभग 76 हज़ार लोगों ने फोन पर सूचना भेजी है और सरकार से संपर्क करने की कोशिश की है। 

बिहार सरकार का दावा है कि अब तक 13 लाख लोगों की समस्याओं का समाधान किया गया है। लाॅकडाउन में फंसे बिहार के 21 लाख श्रमिकों के आवेदन स्वीकार किये गए हैं।
इनमें से  15.50 लाख लोगोें के खाते में एक- एक हज़ार रुपए डाल दिया गया है।
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बाहर हैं 55 लाख बिहारी!

मगर यह काफी नहीं है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य के 55 लाख लोग बाहर रहते हैं, जिनमें प्रवासी मज़दूरों की संख्या सबसे ज्यादा है। मदद माँगने वालों में सबसे ज्यादा संख्या दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक में काम करने वाले मज़दूरों की है। वे लगातार फोन कर रहे है।

तमिलनाडु में काम करने वाले 32 हज़ार बिहारी मज़दूरों ने सरकार से मदद माँगी। दिल्ली से 16 हज़ार, जम्मू-कश्मीर से 16 हज़ार, गुजरात से 10 हज़ार, राजस्थान से 9 हज़ार मज़दूरों ने बिहार सरकार से संपर्क किया है। इसी तरह तेलंगाना से 5 हज़ार, पंजाब से 4 हज़ार और उत्तर प्रदेश से 3,200 मज़दूरों ने फ़ोन कर बिहार सरकार से मदद माँगी है।

सरकार के पास संसाधन नहीं!

जो मज़दूर बिहार में हैं, उनकी हालत भी ठीक नहीं हैं। उनमें से अधिकांश मज़दूर नहीं जानते कि इस विपदा से कैसे लड़ें। घर तो आ गये हैं, पर काम नहीं है। सरकार की मदद उन तक नहीं पहुँच रही है।
बिहार के पास इस बीमारी से लड़ने के संसाधन नहीं हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सिर्फ कोरोना से लड़ने से ही काम नहीं चलेगा। वैसे मरीजों की भी जाँच होनी चाहिए, जिन्हें सांस में तक़लीफ़ होती है। तभी सही मरीजों की सही तादाद का पता चलेगा।

आउटडोर सेवा नहीं

अभी तक सरकारी और ग़ैर -सरकारी अस्पतालों में आउटडोर सेवा शुरू नहीं की गयी है। वैसे मरीजों की तादाद बढ़ रही है, जिन्हें लगातार डॉक्टरों की निगरानी में रहना है।
मधुमेह, दिल की बीमारी और कैंसर के रोगी को लगातार डॉक्टरों की निगरानी में रहना होता है, पर आउटडोर सेवा के खुले नहीं रहने की वजह से बिहार के लोगों का स्वास्थ्य खतरे में है।

लोगों को इसकी आशंका है कि आने वाले समय में बिहार की तसवीर और भयावह होने वाली है। बीमारी और भूख से तबाही मचेगी। सरकार की अपनी तैयारी नहीं है। बड़े पैमाने पर ग़रीब और कामगार लोग प्रभावित हो रहे हैं। 

फैल रहा है संक्रमण

सरकार माने या न माने, बिहार में कोरोना महामारी तेजी से फैल रही है। संक्रमित लोगों का आँकड़ा रोज़ाना बढ़ रहा है। लोगों के भीतर डर गहरा गया है। कोरोना  संक्रमण का पता लगाने के लिए राज्य में अभी तक 20 हज़ार लोगों के टेस्ट हुए हैं, जिनमें 403 लोग संक्रमित हैं। ये टेस्ट राष्ट्रीय औसत से काफी कम हैं।

प्रति दस लाख की आबादी में कोरोना के मरीजों की जाँच का राष्ट्रीय औसत 434 है। बिहार में यह औसत 200 से भी कम है। सिर्फ मुंगेर ज़िले में 92 मरीजों की पुष्टि हुई है, जिनमें 44 प्रवासी मजदूर हैं।

हॉटस्पॉट

बिहार के पाँच ज़िले- सीवान, मुंगेर, नालंदा, पटना, रोहतास हाॅटस्पाॅट बने हुए हैं। राज्य के पास इस बीमारी से लड़ने के साधन नहीं हैं। आईसीएमआर ने दिशा निर्देश दिया है, सरकार उसे भी गंभीरता से नहीं ले रही है। 

खुद प्रधानमंत्री ने बिहार के स्वास्थ्य सुधिाओं को लेकर चिंता व्यक्त की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केन्द्र से वेन्टीलेटर की माँग की है, अभी तक केन्द्र चुप है। कोरोना मरीजों के लिए राज्य में सिर्फ 2,344 बेड बनाये गए हैं। इसके अलावा आईसीयू बेड की संख्या सिर्फ 116 है। मात्र 50 वेन्टीलेटर उपलब्ध है।
स्वास्थ्य सुविधाओं की इस खस्ता हालात के साथ बिहार कैसे इस महामारी से लड़ेगा? 

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