चुनाव आयोग फिर से एक्सपोज हो गया है! मतदाता सूची में गड़बड़ियों के गंभीर आरोप झेल रहे चुनाव आयोग ने अब बिहार में डिजिटल ड्राफ्ट मतदाता सूची को हटा लिया है। इसने इसकी जगह पर स्कैन की हुई मतदाता सूची अपलोड कर दी है। इसका सीधा मतलब है कि मतदाता सूची की पड़ताल करना अब बेहद मुश्किल हो गया है। 

डिजिटल सूची से जो पड़ताल कंप्यूटर के माध्यम से आसानी से की जा सकती थी, उसको अब बेहद मुश्किल कर दिया गया है। और यह सब हुआ राहुल गांधी द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस किए जाने के बाद। राहुल ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि उनके पास इसके सबूत हैं कि चुनाव आयोग फर्जी मतदाता सूची बनाकर वोट चोरी करा रहा है। इसके बाद सोशल मीडिया पर मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों की तो जैसे बाढ़ आ गई!
दरअसल, चुनाव आयोग ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए बिहार में अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध डिजिटल और मशीन से पढ़े जाने वाली ड्राफ्ट मतदाता सूची को हटा दिया है। स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार इन सूचियों को 1 अगस्त 2025 को अपलोड किया् गया था, लेकिन अब इनकी जगह स्कैन की गई कॉपी को अपलोड किया गया है। आपको याद होगा राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के फौरन बाद चुनाव आयोग ने कुछ राज्यों की मतदाता सूची के लिंक को बंद कर दिया था। उसके बाद उनमें डिजिटल की जगह स्कैन मतदाता सूची डाल दी। चूंकि बिहार पर सबकी नज़र है तो इसका पता फौरन ही चल गया।
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बदलाव से क्या होगा असर? 

चुनाव आयोग ने बिहार के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण यानी SIR 2025 के तहत 1 अगस्त को डिजिटल मशीन-पठनीय पीडीएफ फाइलों में ड्राफ्ट मतदाता सूची को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया था। ये फाइलें ऐसी थीं, जिनमें टेक्स्ट सर्च और डेटा एक्सट्रैक्शन जैसे फीचर्स उपलब्ध थे। लोग आसानी से Ctrl+F जैसे टूल्स का उपयोग करके विशिष्ट नाम, पते, या अन्य जानकारी खोज सकते थे। इससे मतदाता सूची में गलतियों, डुप्लिकेट एंट्री, या अन्य अनियमितताओं को पकड़ना आसान था।
लेकिन 9 अगस्त 2025 को आयोग ने इन डिजिटल पीडीएफ फाइलों को हटाकर उनकी जगह स्कैन की गई इमेज फाइलें अपलोड कर दीं। ये नई फाइलें केवल इमेज के रूप में हैं, जिनमें टेक्स्ट सर्च या डेटा विश्लेषण की सुविधा नहीं है। इससे मतदाता सूची में गलतियों को खोजने के लिए मैन्युअल रूप से प्रत्येक पेज को देखना होगा। इसमें काफी समय लगेगा और काफी मेहनत भी करनी पड़ेगी।

अवैध मतदाताओं की पहचान अब असंभव

इस कदम से न केवल पत्रकारों और शोधकर्ताओं के लिए मतदाता सूची की जांच करना मुश्किल हो गया है, बल्कि आम जनता के लिए भी पारदर्शिता में कमी आई है। स्कैन की गई छवियों में डेटा को मशीन द्वारा पढ़ा नहीं जा सकता, जिससे बड़े पैमाने पर डेटा विश्लेषण, जैसे डुप्लिकेट प्रविष्टियों, गलत नाम, या अवैध मतदाताओं की पहचान, लगभग असंभव हो गया है।

पारदर्शिता पर सवाल उठे

सोशल मीडिया पर यूजरों ने इसे पारदर्शिता पर एक सवालिया निशान बताया। इसी तरह, कई अन्य यूजर्स और पत्रकारों ने भी इस कदम की आलोचना की है, इसे "सबूत मिटाने" और "वोटर चोरी को छुपाने" की साजिश के रूप में देखा जा रहा है। कुछ यूजर्स ने इसे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता को कम करने की कोशिश के रूप में देखा है। उदय भानु नाम के यूजर ने पोस्ट किया कि यह कदम "वोटर चोरी" को छुपाने की साजिश है और इसे राहुल गांधी के हालिया खुलासों से जोड़ा। वहीं, अभिषेक नाम के यूजर ने इसे "चोर की दाढ़ी में तिनका" कहकर तंज कसा, यह सवाल उठाते हुए कि आयोग इस तरह के बदलाव क्यों कर रहा है। कई लोगों ने इस कदम को चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाला बताया है। एक यूजर ने कहा कि इस तरह की हरकतों से चुनाव आयोग अपनी साख खो रहा है।
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चुनाव आयोग का पक्ष 

चुनाव आयोग की ओर से अभी तक इस बदलाव के पीछे के कारणों पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। यह साफ नहीं है कि डिजिटल फाइलों को स्कैन इमेज से बदलने का निर्णय तकनीकी कारणों से लिया गया या इसके पीछे कोई अन्य मंशा थी। आयोग की इस चुप्पी ने और अधिक सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही पर बहस तेज हो गई है।

तकनीकी चुनौतियां

डिजिटल मशीन-पठनीय फाइलों का इस्तेमाल मतदाता सूची की जांच में तकनीकी सहायता करता है। ये फाइलें डेटा विश्लेषकों और शोधकर्ताओं को बड़े पैमाने पर डेटा को जल्दी और प्रभावी ढंग से स्कैन करने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, डुप्लिकेट मतदाताओं, गलत पतों, या मृत व्यक्तियों के नामों को आसानी से खोजा जा सकता है। लेकिन स्कैन की गई कॉपी में यह सुविधा नहीं है, जिससे यह प्रक्रिया समय लेने वाली और त्रुटिपूर्ण हो जाती है।
पत्रकारों और डेटा विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के बदलाव से न केवल पारदर्शिता कम होती है, बल्कि यह भी संदेह पैदा करता है कि क्या कुछ गलतियों या अनियमितताओं को जानबूझकर छुपाया जा रहा है।
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चुनाव आयोग के इस कदम ने बिहार में आगामी चुनावों से पहले कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्षी दल और नागरिक समूह इस मुद्दे को और जोर-शोर से उठाने की तैयारी कर रहे हैं। कई लोग मांग कर रहे हैं कि आयोग डिजिटल फाइलों को फिर से अपलोड करे और इस बदलाव के कारणों को स्पष्ट करे। यह मामला अब न केवल तकनीकी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बन गया है। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।
बिहार में डिजिटल ड्राफ्ट मतदाता सूची को स्कैन इमेज से बदलने का चुनाव आयोग का फैसला पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए एक बड़ा झटका है। इस कदम ने न केवल तकनीकी जांच को मुश्किल बनाया है, बल्कि जनता के बीच अविश्वास को भी बढ़ावा दिया है।