loader

क्या बिहार में सीपीआई को जिंदा कर पाएँगे ‘देशद्रोही’ कन्हैया?

यह साफ़ दिख रहा है कि वाम दल, ख़ासकर सीपीआई और सीपीएम, बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर लकवाग्रस्त होकर हाँफ रही हैं। ऐसे में इनके नेताओं को लगने लगा है कि जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार अपनी रणनीति, कूटनीति, वाणी अस्त्र से पार्टी में जान फूंक देंगे।
ताज़ा ख़बरें
ये नेता पूरी तरह आश्वस्त हैं कि जेएनयू के कन्हैया, लालू यादव के ‘ऑपरेशन’ से ‘मूर्छित’ लेफ़्ट पार्टियों को ‘चंगा’ कर देंगे। कन्हैया कुमार को बेगूसराय लोकसभा सीट से सीपीआई का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है। वह पंचायत-पंचायत घूमकर मतदाताओं के बीच अलख़ जगा रहे हैं और उनको अपने पक्ष में गोलबंद कर रहे हैं। 
सोशल मीडिया के मार्फत वाम मार्गी नेताओं ने कन्हैया कुमार का प्रचार-प्रसार करना 5 महीने पहले तब ही शुरू कर दिया था जब सीपीआई की राज्य यूनिट ने पिछले साल 25 अक्टूबर को पटना के एतिहासिक गाँधी मैदान में दमदार रैली का आयोजन किया था।

'फ़ाइट तो यही देगा'

चुनावी सभाओं में चुम्बकीय शक्ति से लैस कन्हैया कुमार की स्पीच को सुनने के लिए हर जाति और वर्ग के बेगूसरायी नर-नारी आ रहे हैं। ‘कमाल का भाषण देलथई भाई। मनवे मोह लेता है। फ़ाइट तो यही देगा। भूमिहार समाज का असली कृष्ण है। मेरी पत्नी तो इसकी बोली पर लट्टू है। कहती है कि चंदा भी देंगे’। इतनी तारीफ़ करने के बाद भी ठेकेदार धनंजय सिंह का पेट नहीं भरता है। वह गंभीरता से आगे कहते हैं कि ‘सब पर बीस है। पत्रकारों को भी अपने जवाब से पटक देता है। यह कदापि देशद्रोही नहीं हो सकता है। अगर होता तो मोदी सरकार इसे जेल में डाल देती।’ बेगूसराय के बसन्त सिंह भी इसके फ़ैन हैं। कहते हैं कि ‘बड़े ही डिप्लोमेटिक तरीके़ से प्रचार कर रहा है। सबकुछ वेल आर्गनाईज्ड भाव से चल रहा है। लेकिन मुझे डाउट है कि भगवा माइंड को यह नौजवान शिकस्त दे पाएगा। जनता के बीच अभी से ही दुष्प्रचार शुरू हो गया है कि कन्हैया कुमार को पाकिस्तान से पैसा आ रहा है।’

जातीय समीकरण कन्हैया के पक्ष में 

जाति व जमात का पोथी-पतरा रखने वाले बताते हैं कि बेगूसराय में सबसे अधिक भूमिहार समाज के मतदाता हैं। इनकी जनसंख्या लगभग पौने पाँच लाख है। उसके बाद मुसलिम और यादव का नम्बर है। दोनों के मिलाने के बाद भी भूमिहार भारी होंगे। आज की तिथि में सैकड़ों भूमिहार नौजवान कन्हैया के प्रशंसक होकर उनके पक्ष में झाल बजा रहे हैं। जब बीजेपी के उम्मीदवार गिरिराज सिंह 6 अप्रैल को नामांकन के वक़्त अपना ‘राष्ट्रवादी’ शंख फूँकेंगे तब इनका रूझान क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। 
संयोग की बात है कि बिहार में सीपीआई की सियासी एंट्री 1956 में बेगूसराय से ही हुई थी। तब इस पार्टी ने विधानसभा का उपचुनाव जीता था। इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास भी इसी धरती से किया जा रहा है।

'बिहार का लेनिनग्राड'

सीपीआई की जीत पर पटना से प्रकाशित एक अंग्रेज़ी अख़बार ने लिखा था, ‘रेड स्टार स्पार्कल्ड इन बिहार’। इस जीत के बाद सीपीआई राज्य में फैलती चली गई। 1969 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 35 सीटें जीतीं और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के ख़िलाफ़ प्रमुख विपक्षी पार्टी बनकर उभरी। गाँव-गाँव लाल झंडा पहुँच गया। बेगूसराय को 'बिहार का लेनिनग्राड' नाम से पुकारा जाने लगा।
बिहार से और ख़बरें
सीपीआई ने 1952 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लिया था। 1956 के उप चुनाव में अप्रत्याशित जीत से लबरेज सीपीआई ने 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में 60 उम्मीदवार मैदान में उतारे और 15 प्रतिशत मत प्राप्त कर 7 सीटों पर जीत दर्ज की। संगठन में फैलाव और लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में जीत का सिलसिला सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक तक चलता रहा।
संबंधित ख़बरें
सीपीएम भी अपनी हैसियत के मुताबिक़, सत्तर के दशक से ही सियासी राजनीति में ठीक-ठाक प्रदर्शन कर रही थी। इनकी मजबूती के पीछे मूल कारण यह था कि दोनों वाम दलों के पास क्रमशः सुनील मुखर्जी तथा गणेश शंकर विद्यार्थी सरीख़े और सुलझे हुए कद्दावर नेता थे, जो विभिन्न राजनीतिक कार्यक्रमों के माध्यम से ग़रीब-ग़ुरबों के हक़ की लड़ाई लड़ने का काम करते थे।
वाम दलों के नेता भी स्वीकारते हैं कि आरक्षण का विरोध करके दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने देश भर में ओबीसी का समर्थन गवाँ दिया था। पर बिहार में इनके पतन का बीज उसी दिन बो दिया गया था जिस दिन इनके नेतृत्व ने मुख्यमंत्री लालू यादव के साथ गलबहियाँ शुरू कर दी थीं।

क्यों ढहा वाम का किला?

ऊँची जातियों का सबसे दमदार तबक़ा भूमिहार, बिहार में दोनों वाम दलों के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करता था। लालू यादव के साथ गठबंधन ने इस ज़मात को नाराज़ कर दिया। दूसरी तरफ़ मंडल अवतारी लालू ने सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी का डर दिखाकर दोनों वाम दलों का दोहन किया। कई बार वामपथी विधायकों को तोड़ा। नेता विहीन तथा कैडरों के बीच निराशा होने के कारण सीपीआई और सीपीएम ने अपने आप को पूरी तरह से समाप्त कर लिया। 2015 के विधानसभा चुनाव में सीपीआई ने 98 तथा सीपीएम ने 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे लेकिन एक को भी जीत नहीं मिली। 

छह दशक की चुनावी राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ कि सीपीआई पूरी तरह से साफ़ हो गई। सीपीएम की सियासी पारी 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में ही समाप्त हो गई। पिछले विधानसभा चुनाव में सीपीआई को मात्र 1.4 प्रतिशत वोट मिले।
कई वर्षों से सियासी दुर्दिन का दंश झेल रहे वामपंथियों को अब लगने लगा है कि बेगूसराय के बीहट में जन्मे कन्हैया कुमार उनके तारणहार हैं। बेगूसराय की इस जंग में कन्हैया कुमार के उम्मीदवार बनने के बाद से ‘राष्ट्रवादी’ लोग नारा लगाने लगे हैं कि ‘कन्हैया की जीत से भारत तेरे टुकड़े होंगे।' अगर यह नारा भोली-भाली जनता के दिमाग में घुस गया तो बिहारी वाम मार्ग संसद पहुँचने से चूक जाएगा।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
कन्हैया भेलारी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

बिहार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें