बिहार की राजनीति में इन दिनों फिर भ्रष्टाचार की गूंज सुनाई दे रही है। चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर तो बिहार सरकार के तीन मंत्रियों और बीजेपी के दो बड़े नेताओं को घेर ही रहे हैं, अब पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अश्वनी चौबे ने इस मामले को तूल दे दिया है। उन्होंने कहा कि बीजेपी नेताओं को पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी से सबक लेना चाहिए। आडवाणी जी पर आरोप लगा तो उन्होंने संसद से भी इस्तीफा दे दिया। और फिर संसद में तभी लौटे जब पूरा मामला खत्म हो गया और उन्हें क्लीन चिट मिल गई। इसके पहले जेडीयू के पूर्व नेता और केंद्र में पूर्व मंत्री आर के सिंह और जेडीयू के प्रवक्ता रहे नीरज कुमार भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मंत्रियों और नेताओं से सफ़ाई देने की मांग कर चुके हैं। 

सबसे गंभीर आरोप उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर लगाए जा रहे हैं। उनके साथ बीजेपी के कोटे से मंत्री मंगल पांडे और जेडीयू कोटे से मंत्री अशोक चौधरी को भी कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। प्रशांत किशोर के निशाने पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल और सांसद संजय जायसवाल भी हैं। उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को लेकर तो राजनीति में घमासान मचा हुआ है, लेकिन बीजेपी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली है। आरोपों का ठोस जवाब कहीं से नहीं मिल रहा है।
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प्रशांत अब तक सम्राट पर हत्या, बलात्कार, कोर्ट में फर्जी एफिडेविट, फर्जी डिग्री और मकान की ख़रीद में घोटाला का आरोप लगा चुके हैं। इनका कोई साफ़ जवाब सम्राट या उनकी पार्टी की तरफ़ से नहीं आया है। सम्राट पर चार बार नाम बदलने और चुनाव नामांकन में झूठा हलफनामा देने का आरोप भी लगाया गया है। आख़िरकार, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जेडीयू और बीजेपी की खामोशी का राज क्या है। 

चुनाव का जातीय गणित 

बिहार में अक्टूबर - नवंबर में विधान सभा चुनाव होने हैं। ऐसे में उप मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर आरोपों से एनडीए गठबंधन को नुकसान हो सकता है। फिर भी पटना से लेकर दिल्ली तक खामोशी का एक मतलब तो ये निकाला जा रहा है कि जातीय समीकरण के कारण कोई कार्रवाई करके एनडीए चुनाव में जोखिम नहीं लेना चाहता है। बीजेपी के पास अति पिछड़े और दलित नेताओं की पहले से कमी है। आरजेडी और जेडीयू से होकर बीजेपी में आए सम्राट को बीजेपी ने अति पिछड़ों के बड़े नेता के तौर पर खड़ा करने का प्रयास किया। सम्राट के पिता शकुनि चौधरी भी बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं। वो कई बार बिहार में मंत्री रह चुके हैं। 

कुशवाहा जाति से होने के कारण सम्राट को एक समय पर नीतीश कुमार का विकल्प माना जाता था। अब वो हर तरफ़ से घिरे हुए दिखाई दे रहे हैं। अशोक चौधरी अति दलित वर्ग से हैं तो मंगल पांडे बीजेपी के सबसे कट्टर समर्थक ब्राह्मणों के नेता हैं।

हत्या मामले से कैसे बचे

प्रशांत किशोर आरोप लगाते हैं कि सम्राट चौधरी ने सीजेएम कोर्ट में झूठा हलफनामा देकर 7 लोगों की हत्या के मामले में जमानत ले ली थी। यह मामला 1995 का है। सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी के चुनाव क्षेत्र तारापुर से कांग्रेस के उम्मीदवार सच्चिदानंद सिंह और उनके 6 साथियों की मतगणना के दिन 29 मार्च 95 को हत्या कर दी गई थी। सम्राट इसमें नामजद थे लेकिन उन्होंने कोर्ट में हलफनामा और हाई स्कूल परीक्षा का मार्क्स शीट दे कर बताया कि वो नाबालिग यानी सिर्फ 15 साल के हैं। इस आधार पर कोर्ट ने उन्हें बाल अपराधी मानकर जमानत दे दी। प्रशांत ने बताया कि 2020 के विधान सभा चुनावों के नामांकन एफिडेविट में सम्राट ने बताया कि उनकी उम्र 51 साल है। इस हिसाब से वो 1995 में 26 साल के थे। इसलिए उन्हें नाबालिग की सुविधा नहीं मिल सकती थी। बहरहाल, सम्राट चौधरी का कहना है कि वो इस मामले में कोर्ट से बाइज्जत बरी हो चुके हैं।

तीन बार नाम बदले

सम्राट पर कई बार नाम बदलने का भी आरोप है। 2005 के विधान सभा चुनाव में उन्होंने अपना नाम राकेश कुमार लिखा था। 2010 के चुनाव में नाम सम्राट चौधरी बताया। एक समय पर वो अपना नाम सम्राट कुमार मौर्या भी बताते थे। सम्राट चौधरी का कहना है कि मतदाता सूची में उनका नाम सम्राट चौधरी और घर का नाम राकेश कुमार है। दोनों उनके ही नाम हैं। 
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सम्राट के ख़िलाफ़ कई केस

सम्राट का नाम 1999 के शिल्पी गौतम बलात्कार और हत्या कांड से भी जुड़ा था। पटना विमेन्स कॉलेज की छात्रा शिल्पी उस साल मिस पटना चुनी गई थीं। 2 जुलाई 1999 को शिल्पी का अपहरण हुआ और दो दिनों बाद उसकी लाश विधायक साधु यादव के गैरेज में खड़ी एक गाड़ी में मिली। साधू यादव पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के साले हैं। इस मामले में सम्राट चौधरी के ख़िलाफ़ भी जाँच पड़ताल की गई। सम्राट तब आरजेडी में थे। यह मामला भी दबा दिया गया। एक आरोप ये भी है कि उनकी डी.लिट. की डिग्री फर्जी है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज पर कब्जा करने और उसको डिम्ड विश्वविद्यालय बनाने के लिए अशोक चौधरी के परिवार को 25 लाख रुपए देने का आरोप है। मंगल पांडे पर एंबुलेंस की खरीद में घोटाला का आरोप है। आर के सिंह और नीरज कुमार ने आरोपों का जवाब देने की मांग करके इस विवाद को तूल दे दिया।

चुनाव का गणित

बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए की जीत का आँकड़ा काफ़ी हद तक अति पिछड़ों और अति दलितों के समर्थन पर टिका है। अति पिछड़ों और अति दलितों को साध कर ही नीतीश सत्ता में आए और क़रीब 20 सालों से मुख्यमंत्री बने हुए हैं। चुनाव के एन वक्त मंत्रियों पर कार्रवाई से अति पिछड़ों और अति दलितों के वोट में दरार आ सकती है। अति पिछड़ों की सबसे सक्षम और संगठित जातियों में कुशवाहा और अति दलितों में पासी शामिल हैं। सम्राट के पिता शकुनि चौधरी अपनी जाति के बड़े नेताओं में तो हैं ही, अन्य अति पिछड़ी जातियों पर भी उनका अच्छा खासा प्रभाव है। बीजेपी और जेडीयू की खामोशी का एक बड़ा कारण जातीय समीकरण में फेर बदल का डर शामिल है। 
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बिहार की जाति जनगणना के मुताबिक़ अति पिछड़ों की आबादी पिछड़ों से भी ज़्यादा है। नीतीश उनके सर्व प्रिय नेता रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने उन्हें चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे और अंततः एनडीए में शामिल हो गए। इंडिया गठबंधन से जुड़े मल्लाह नेता मुकेश सहनी भी कोई ख़ास असर दिखा नहीं पाए। नीतीश अब अति पिछड़ों और अति दलितों के वोट में विभाजन का जोखिम नहीं उठा सकते। ख़ास कर इसलिए भी कि 2020 के चुनावों में वो धक्का खा चुके हैं। उनके विधायकों की संख्या 2010 में 115 से घटकर 2020 में 43 रह गई थी। बीजेपी के पास कोई सर्वमान्य पिछड़ा नेता नहीं है। मंगल पांडे ब्राह्मण हैं और उनकी जाति बीजेपी की कट्टर समर्थक है। जायसवाल जाति भी बीजेपी की पुरानी समर्थक मानी जाती है।