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मुसलिमों के भरोसे 'आप' से सियासी ज़मीन वापस ले पाएगी कांग्रेस?

दिल्ली में कई महीने तक कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच गठबंधन को लेकर ‘कभी हाँ, कभी ना’ की स्थिति बनी रही। कई कोशिशों के बावजूद दोनों के बीच अब तक गठबंधन नहीं हो सका है। अब यह लगभग तय हो गया है कि कांग्रेस और ‘आप’ दिल्ली में अपने-अपने दम पर ही चुनाव लड़ेंगे। ‘आप’ तो पहले ही सातों सीटों पर अपने उम्मीदवारों का एलान कर चुकी है। कांग्रेस ने भी 4 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम तय कर दिए हैं और 3 सीटों पर अभी माथापच्ची चल रही है। 

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मुसलिम उम्मीदवार को उतारने पर विचार

दिल्ली कांग्रेस के नेताओं के मुताबिक़, अब कांग्रेस मुसलिम वोटों के सहारे ‘आप’ से अपनी सियासी ज़मीन वापस लेने की रणनीति बना रही है। इसके तहत कांग्रेस उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर मुसलिम प्रत्याशी उतार सकती है। कांग्रेस के रणनीतिकारों को पूरा भरोसा है कि ऐसा करने से बाक़ी की 6 सीटों पर मुसलमानों के वोट ‘आप’ के बजाय कांग्रेस को मिलेंगे। उन्हें यह भी भरोसा है कि ऐसे में कांग्रेस उतनी सीटें अपने दम पर जीत सकती है जितनी सीटें ‘आप’ उसे गठबंधन में देने को तैयार थी। 

दिल्ली में पिछले दो विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का सारा वोट ‘आप’ के पास चला गया है। अब कांग्रेस की कोशिश है कि मुसलिम वोटों के सहारे अपने खोए हुए वोट बैंक को वापस हासिल किया जाए।

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के सभी बड़े मुसलिम नेता कांग्रेस आलाकमान पर काफी दिन से दबाव डाल रहे हैं कि दिल्ली में कम से कम एक सीट पर मुसलिम प्रत्याशी उतारा जाए। मुसलिम प्रत्याशी की जीत के हिसाब से उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट को मजबूत माना जा रहा है। इस सीट पर छह लाख से ज़्यादा मुसलिम मतदाता हैं। 

तीसरे नंबर पर रहे थे अग्रवाल 

2009 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली की सीट के वजूद में आने के बाद से ही कांग्रेस में अंदरूनी तौर पर इस सीट पर मुसलिम प्रत्याशी उतारने का दबाव रहा है। लेकिन 2009 में कांग्रेस ने जेपी अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतारा था और वह जीते भी थे। 2014 के चुनाव में बीजेपी के मनोज तिवारी को इस सीट पर 5,96,125 वोट मिले थे। ‘आप’ के प्रोफेसर आनंद कुमार 4,52,041 वोट पाकर दूसरे नंबर पर थे और कांग्रेस के जेपी अग्रवाल 214792 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे।

जेपी अग्रवाल इस सीट से पिछले 5 साल से ख़ुद भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और अपने बेटे को भी तैयारी करा रहे हैं लेकिन अगर कांग्रेस सातों सीटों पर चुनाव लड़ती है तो उनका टिकट कटना तय माना जा रहा है।

दिल्ली में कांग्रेस के मुसलिम नेताओं में कई बार विधायक रहे चौधरी मतीन अहमद, हारून यूसुफ़, हसन अहमद, आसिफ़ मोहम्मद ख़ान और शुएब इक़बाल इस मुद्दे पर एकजुट हो गए हैं कि उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट से किसी मुसलिम प्रत्याशी को उतारा जाए। 

बग़ावत की दी धमकी

हारून यूसुफ़ को छोड़कर बाक़ी चारों नेताओं ने आलाकमान को साफ़ तौर पर धमकी भी दे दी है कि अगर मुसलिम प्रत्याशी नहीं उतारा गया तो वह बग़ावत पर उतर आएँगे। ऐसे में शीला दीक्षित मामले को सुलझाने के लिए इस सीट पर मुसलिम उम्मीदवार उतारने पर राज़ी हो गईंं हैं। इसके लिए चौधरी मतीन अहमद और शोएब इकबाल में से किसी एक को टिकट दिया जा सकता है। चौधरी मतीन उसी इलाके़ के रहने वाले हैं इसलिए उन्हें टिकट दिए जाने की संभावना ज़्यादा है। हारून यूसुफ़ भी टिकट की दावेदारी ठोक रहे हैं। लेकिन राहुल गाँधी ने दिल्ली के तीनों कार्यकारी प्रदेश अध्यक्षों को चुनाव लड़ाने से मना कर दिया है। उस हिसाब से हारून यूसुफ़ का दावा अपने आप ही कमजोर हो जाता है।

अगर कांग्रेस उत्तर-पूर्वी सीट पर मुसलिम प्रत्याशी उतारती है तो यहाँ ‘आप’ के उम्मीदवार दिलीप पांडे की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। क्योंकि उस सूरत में कांग्रेस को मुसलमानों का ज़्यादातर वोट मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
वैसे भी दिल्ली में मुसलिम समुदाय में इस बात को लेकर बेचैनी रहती है कि दिल्ली में 13% मुसलिम आबादी होने के बावजूद लंबे समय से किसी पार्टी ने किसी भी सीट पर मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया। इस मामले में बीजेपी से तो किसी को उम्मीद है ही नहीं। लेकिन कांग्रेस और ‘आप’ ने भी इस पर ग़ौर नहीं किया। ‘आप’ के सात उम्मीदवारों में से एक भी मुसलमान नहीं है। 
अगर कांग्रेस मुसलिम उम्मीदवार उतार देती है तो मुसलमानों का रुझान कांग्रेस की तरफ़ हो सकता है और इस सीट का नतीजा कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है। इससे कांग्रेस को पूर्वी दिल्ली और चांदनी चौक सीट पर भी अच्छा-ख़ासा फायदा हो सकता है। क्योंकि यहाँ के बाद इन्हीं दोनों सीटों पर मुसलिम मतदाता चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की ताक़त रखते हैं।
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2009 में जेपी अग्रवाल ने बड़ी तिकड़म से यह सीट जीती थी। तब बीएसपी ने हाज़ी दिलशाद को चुनाव मैदान में उतारा था। उस दौरान इस इलाक़े में बीएसपी का अच्छा-ख़ासा असर था और दिलशाद को अच्छी संख्या में मुसलिम वोट मिलने की उम्मीद थी। लेकिन जेपी अग्रवाल ने अपनी राजनीतिक पैंतरेबाजी दिखाते हुए चुनाव के बीच में ही हाज़ी दिलशाद को कांग्रेस में शामिल कर लिया था। इस तरह से बीएसपी का उम्मीदवार चुनाव मैदान से हट गया था। लेकिन इसके बावजूद बीएससी के कोर वोटर ने अपनी पार्टी को वोट दिया था। हाज़ी दिलशाद के कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद बीएसपी को 45,000 वोट मिले थे।

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कांग्रेस मुसलिम वोटों के सहारे ‘आप’ से अपनी सियासी ज़मीन छीनने की कोशिश कर रही है। इसमें उसको कितनी कामयाबी मिल पाएगी इस बारे में पक्के तौर पर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हालाँकि पिछले 4 साल में ‘आप’ की सरकार के दौरान ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें लेकर मुसलिम समाज के बीच नाराज़गी देखी जा रही है। लेकिन वह नाराज़गी कांग्रेस के पक्ष में वोट में तब्दील होगी इसको लेकर अभी संदेह है। वैसे भी देशभर में मुसलमानों का रुझान उस पार्टी को वोट देने का बन रहा है जो बीजेपी को हरा सकती है। 

फ़िलहाल दिल्ली में ‘आप’ ही बीजेपी को हराने की स्थिति में लग रही है। एक-दो सीट पर कांग्रेस मज़बूती से चुनाव लड़ती है तो मुसलमान उसके साथ आ भी सकते हैं। वहीं, यह भी अंदेशा बना रहेगा कि कहीं मुसलिम वोटों के बँटवारे से बीजेपी को फायदा ना हो जाए।

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क़मर वहीद नक़वी
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