कई वर्षों पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जब पहली बार संघ मुख्यालय में नागपुर में मुझसे मिले थे, तब मैंने उनसे कहा था कि आप ‘गडकरी’ हैं या ‘गदगद्करी’ हैं? अख़बारों में आपकी बातें पढ़कर मेरी तबियत गदगद् हो जाती है। पिछले दो दिन से देश के अख़बारों में उनके भाषणों की रिपोर्ट पढ़कर मुझसे ज़्यादा कौन खुश होगा? उनके भाषणों का सार मेरे इन तीन शब्दों में आ जाता है। सर्वज्ञजी, प्रचार
गडकरी से नाराज मत होइए, उनकी बातों से सबक़ सीखिए
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- 1 Jan, 2019

नितिन गडकरी के हालिया बयानों के बाद से ही कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। गडकरी पर गुस्सा होने के बजाय ज़रूरी है कि उनकी खरी-खरी बातों से सबक़ सीखा जाए।
मंत्री और भाभापा। यानी बीजेपी नहीं, भाई-भाई पार्टी!
मेरे लेख यों तो संघ और भाजपा के सभी प्रमुख लोग लगभग रोज़ ही पढ़ते हैं और जब भी कहीं मिलते हैं तो उनका जिक़्र भी करते हैं। लेकिन अकेले नितिन गडकरी की हिम्मत है कि उन्होंने मंत्री रहते हुए भी वही बात कह दी, जो एक सर्वतंत्र, स्वतंत्र, सार्वभौम नागरिक कहता है। उन्होंने क्या कहा है? उन्होंने कहा कि ‘चुनावों में जब जीत होती है तो उसके कई दावेदार बन जाते हैं लेकिन जब हार होती है तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होता है? उसके लिए ज़िम्मेदार होता है - पार्टी अध्यक्ष! यदि मेरी पार्टी के सांसद और विधायक ठीक से काम नहीं करते और मैं ही पार्टी अध्यक्ष हूं तो उसके लिए मैं ही ज़िम्मेदार होऊंगा’।