क्या भारतीय जनता पार्टी के लिए भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं रह गया? क्या उसे भ्रष्टाचार की वजह से जेल की सज़ा काट रहे लोगों के साथ सरकार बनाने से कोई गुरेज नहीं है? क्या वह वही बीजेपी है, जिसके नेता नरेंद्र मोदी आज भी सीना फुला कर कहते हैं, 'न खाऊँगा, न खाने दूँगा?'
जूनियर बेसिक शिक्षक की नियुक्ति में घोटाला साबित होने और उस मामले में 10 साल की सज़ा काट रहे अजय चौटाला के जेल से रिहा होने के बाद ये सवाल उठने स्वाभाविक हैं। अजय चौटाला हरियाणा के नव-निर्वाचित उप मुख्य मंत्री दुष्यंत सिंह चौटाला के पिता हैं।
क्या यह महज इत्तिफ़ाक है हरियाणा में बीजेपी को समर्थन देने के तुरन्त बाद ही अजय चौटाला के जेल से बाहर आने बात सामने आने लगी और वे ठीक उसी दिन रिहा हो गए जिस दिन हरियाणा में बीजेपी की सरकार ने शपथ ग्रहण किया?
भ्रष्टाचार में शामिल होने की वजह से जेल की सज़ा काट रहे अजय चौटाला जब जेल से बाहर निकले तो उनका भव्य स्वागत हुआ। उनके साथ किसी हीरो की तरह व्यवहार किया गया। जेल से छूटने के बाद सैकड़ों कार्यकर्ताओं-समर्थकों ने उनका स्वागत किया।
याद दिला दें, नरेंद्र मोदी ने साल 2014 के चुनाव प्रचार में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के कई लोगों के भ्रष्टाटाचार में शामिल होने को बड़ा मुद्दा बनाया था। उन्होंने ज़ोर देकर कहा था, 'न खाऊँगा, न खाने दूँगा।'
प्रधानमंत्री का प्रिय नारा है, 'न खाऊँगा, न खाने दूँगा।' वह लगभग हर चुनाव में यह नारा उछालते हैं। इस बार तो हरियाणा चुनाव में भी प्रधानमंत्री ने बीजेपी का प्रचार किया था और वहाँ भी यह मुद्दा उछाला था। लेकिन चुनाव जीतने के बाद बीजेपी यह नारा भूल गई।
दुष्यंत चौटाला के जननायक जनता पार्टी के समर्थन से सरकार बनाने से दूसरे कई और सवाल उठते हैं, जिनका जवाब बीजेपी से माँगा जाना चाहिए।
लालू से परहेज क्यों?
सवाल यह उठता है कि यदि चौटाला जेल से छूट सकते हैं तो लालू यादव क्यों नहीं? उनकी तो उम्र भी ज़्यादा है और वह लंबे समय से बीमार हैं। उन्हें रांची के रांजेंद्र मेडिकल कॉलेज में रखा गया है।
कहाँ गया भ्रष्टाचार का मुद्दा?
इसके साथ ही जिस कांग्रेस के लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप प्रधानमंत्री लगाते हैं और हर सभा में कोसते रहते हैं, उनके मुद्दे पर भी मोदी से सवाल पूछा जा सकता है। मोदी ने राहुल और सोनिया गाँधी पर ज़बरदस्त हमले बोले हैं और उन्हें भष्ट्र कऱार देते हुए कहा है कि ये तो ज़मानत पर हैं, कभी भी जेल जा सकते हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन पर तो आरोप लगे हैं, किसी अदालत में साबित नहीं हुआ है, उन्हें जेल भी नहीं हुई है।
बीजेपी ने जिस पार्टी के समर्थन से हरियाणा में सरकार बनाई है, उसके नेता जेल की सज़ा काट रहे हैं, उन पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित हुए हैं और सुप्रीम कोर्ट तक ने उसे सही पाया है।
मामला चिदंबरम का?
इसी तर्क को आगे बढ़ाने पर चिदंबरम का मामला भी ध्यान देने लायक है। सीबीआई अब तक पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं जुटा पाई है, जिस समय उन्हें गिरफ़्तार किया गया, उस समय तक चिदंबरम के ख़िलाफ़ चार्जशीट तक दाखिल नहीं की गई थी। पर चिदंबरम बीते दो महीने से जेल में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चिदंबरम की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि गवाहों को प्रभावित करने का रत्ती भर साक्ष्य नहीं है। सीबीआई मामले में ज़मानत मिलने के साथ ही ईडी ने चिदंबरम को हिरासत में ले लिया, जबकि चिदंबरम ने पहले ही कहा था कि ईडी उनसे पूछताछ कर ले। ईडी ने नहीं किया था ताकि चिदंबरम को ज़्यादा से ज़्यादा समय तक जेल में रहना पड़े।
तो सवाल यह उठता है कि चिदंबरम, सोनिया-राहुल और लालू यादव के मामले में भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करने की बात करने वाली पार्टी हरियाणा में कैसे इस पर समझौता कर लेती है? अधिक चिंता की बात तो यह है कि वह उस पार्टी से समझौता करती है, जिसके ख़िलाफ़ उसने चुनाव लड़ा था, जिसके भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया था और ख़ुद मोदी ने चुनाव प्रचार किया था।
इस मामले ने भारतीय राजनीति की शुचिता और राजनीतिक दलों की मौक़ापरस्ती के बात एक बार फिर उजागर कर दी है।
अजय चौटाला पर क्या आरोप थे?
क्या होता है फ़रलो?