Akhilesh Yadav Facebook Page: समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का आधिकारिक फेसबुक पेज शुक्रवार शाम को निलंबित कर दिया गया। हालांकि भारत में तमाम दक्षिणपंथी संगठन खुलेआम नफरत फैला रहे हैं लेकिन मेरा उन पर कार्रवाई नहीं करता।
लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की आधिकारिक फेसबुक पेज को शुक्रवार शाम निलंबित कर दिया गया, जिसके बाद उनकी पार्टी ने तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया व्यक्त की। हालांकि बाद में उनके पेज को बहाल (रीस्टोर) कर दिया गया। सूत्रों के अनुसार, अखिलेश यादव का पेज "हिंसक यौन सामग्री" पोस्ट करने के आरोप में निलंबित किया गया। तमाम उदाहरणों से साफ है कि दक्षिणपंथी पेज दिन-रात समाज को बांटने वाली ज़हरीली पोस्ट प्रचारित करते रहते हैं, फेसबुक की कंपनी मेटा उन पर कोई कार्रवाई नहीं करती। मेटा की कोई नीति नहीं है, लेकिन सरकार के कहने पर वो कार्रवाई करती है।
समाजवादी पार्टी ने भाजपा सरकार पर इस कार्रवाई के पीछे होने का आरोप लगाया। हालांकि, सूत्रों ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि फेसबुक की मूल कंपनी मेटा ने यह कदम उठाया और सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। हालांकि सूत्रों के हवाले से आया यह स्पष्टीकरण साफ नहीं है।
सरकार ने 2024-25 में 1400 सोशल मीडिया पोस्ट हटवाई हैं।
पीटीआई के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री के फेसबुक खाते, जिसे 80 लाख से अधिक लोग फॉलो करते हैं, शुक्रवार शाम करीब 6 बजे निलंबित कर दिया गया। अखिलेश यादव का फेसबुक पेज नियमित रूप से उनकी राय साझा करने, सरकार की कमियों को उजागर करने और राज्य भर के समर्थकों से जुड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
सपा प्रवक्ता ने कहा- लोकतंत्र पर हमला, अघोषित इमरजेंसी
इस कार्रवाई पर कड़ा विरोध जताते हुए सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने 'एक्स' पर लिखा, "देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का फेसबुक खाता निलंबित करना लोकतंत्र पर हमला है। भाजपा सरकार ने अघोषित इमरजेंसी लागू कर दी है, जहां हर विरोधी आवाज को दबाया जा रहा है। लेकिन समाजवादी पार्टी भाजपा की जनविरोधी नीतियों का विरोध जारी रखेगी।"सपा के राष्ट्रीय सचिव राजीव राय ने भी इस कृत्य की निंदा की और इसे भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रहार बताया।
उन्होंने 'एक्स' पर लिखा, "देश के संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का फेसबुक खाता ब्लॉक करना न केवल निंदनीय है, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी प्रहार है।"
सपा विधायक पूजा शुक्ला ने बिना किसी चेतावनी या नोटिस के अखिलेश के खाते को निलंबित करने के लिए फेसबुक की आलोचना की।उन्होंने कहा, "फेसबुक ने अपनी हदें पार करने की हिम्मत की है। उसने अखिलेश यादव के आधिकारिक पेज को बिना किसी चेतावनी या नोटिस के निलंबित कर दिया। यह कोई साधारण खाता नहीं है। यह अखिलेश यादव जी का खाता है, जो लाखों लोगों की आवाज है! फेसबुक को अपनी सीमाएं याद रखनी चाहिए। यह लोकतंत्र को चुप नहीं कर सकता। समाजवादियों, अब समय है फेसबुक को उसकी औकात दिखाने का! ऐसी अहंकारी कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"
भारत में सोशल मीडिया कंपनियों पर मोदी सरकार का दबाव
भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर केंद्र सरकार का बढ़ता दबाव लोकतंत्र के लिए खतरा बनता जा रहा है। विपक्षी दलों और आलोचकों का आरोप है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने एक 'अघोषित इमरजेंसी' थोप दी है, जहां विरोधी आवाजों को दबाने के लिए फेसबुक, एक्स और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स को मजबूर किया जा रहा है। हाल के वर्षों में, सरकार ने आईटी रूल्स 2021 के तहत आपातकालीन सेंसरशिप शक्तियों का इस्तेमाल बढ़ाया है, जिससे विपक्षी पोस्ट्स को हटाने या ब्लॉक करने के आदेश जारी किए जा रहे हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) ने हाल ही में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री "इंडिया: द मोदी क्वेश्चन" को हटाने का आदेश दिया, जो गुजरात दंगों पर मोदी की भूमिका पर सवाल उठाती थी। यह कार्रवाई विपक्षी दलों की आवाज को कुचलने की कड़ी का हिस्सा मानी जा रही है, जहां सरकार के निर्देशों पर प्लेटफॉर्म्स को सामग्री हटानी पड़ रही है।
हिंसा भड़काने वाली पोस्टों को भारत में फेसबुक ने अनदेखा कियाः वॉशिंगटन पोस्ट
फेसबुक (मेटा) पर मोदी सरकार का दबाव सबसे स्पष्ट दिखाई देता है, जहां विपक्षी पोस्ट्स को नियमित रूप से हटाया जा रहा है। 2024-2025 में, मेटा ने सरकार के दबाव में हिंसक या आलोचनात्मक सामग्री को हटाने में ढील दिखाई, खासकर चुनावी दौर में। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, फेसबुक ने मोदी सरकार के हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए हिंसा भड़काने वाली सामग्री को अनदेखा किया, जबकि विपक्षी नेताओं के पोस्ट्स को तुरंत ब्लॉक कर दिया गया। इसी तरह, 2021 में ResignModi हैशटैग को अस्थायी रूप से छिपा दिया गया, जो कोविड मिसमैनेजमेंट पर आलोचना था। हाल के महीनों में, कर्नाटक के आईटी मंत्री प्रियंक खड़गे ने एक्स, मेटा और यूट्यूब पर एंटी-मोदी पोस्ट्स को दबाने का आरोप लगाया है।
2024-25 में सरकार ने 1400 सोशल मीडिया पोस्ट हटवाई
एक्स और यूट्यूब पर भी सेंसरशिप की लहर तेज हो गई है। मार्च 2025 में, एलन मस्क की कंपनी एक्स ने मोदी सरकार के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया, जिसमें आईटी मंत्रालय द्वारा सामग्री हटाने के विस्तारित अधिकारों को असंवैधानिक बताया गया। सरकार ने 'सहयोग' पोर्टल के जरिए निचले अधिकारियों को भी टेकडाउन ऑर्डर जारी करने की शक्ति दे दी, जिससे 2024-2025 में 1,400 से अधिक पोस्ट्स हटाए गए।
इसी तरह यूट्यूब पर सरकार-विरोधी वीडियोज की पहुंच घटाने का सिलसिला जारी है; 2024 चुनावों में डिसइनफॉर्मेशन वाले ऐड्स को मंजूरी दी गई, जबकि आलोचकों के चैनल्स को डेमोनेटाइज या ब्लॉक किया जा रहा है। ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबर्स ने 2024 लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ प्रभावी अभियान चलाया, लेकिन अब उनके चैनल्स पर दबाव बढ़ रहा है। यह सब मिलकर सोशल मीडिया को सरकार का हथियार बना रहा है, जहां विरोधी कंटेंट की पहुंच सीमित हो रही है।