केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को संसद में स्पष्ट किया कि सरकार की संविधान की प्रस्तावना (प्रीमबल) से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की कोई योजना नहीं है। यह बयान उन अटकलों के जवाब में आया है, जो हाल के महीनों में विपक्षी दलों और नागरिक समाज द्वारा उठाए गए सवालों के बाद सामने आई थीं।

लोकसभा में उठा मुद्दा

लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सरकार से पूछा कि क्या वह संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने पर विचार कर रही है। इन शब्दों को 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था। तिवारी ने यह भी पूछा कि क्या सरकार ने इस मुद्दे पर कोई समीक्षा समिति गठित की है।

इसके जवाब में, कानून मंत्री मेघवाल ने कहा, "नहीं, सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है। प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है, और न ही कोई समीक्षा समिति बनाई गई है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार संविधान के मूल ढांचे और इसके सिद्धांतों का सम्मान करती है।

ताज़ा ख़बरें

क्या था विवाद

'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को 1976 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा संविधान में शामिल किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत के सामाजिक और धार्मिक चरित्र को और स्पष्ट करना था। हाल ही में, कुछ संगठनों और व्यक्तियों द्वारा इन शब्दों को हटाने की मांग उठी थी, जिसके बाद विपक्षी दलों ने आशंका जताई थी कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) संविधान के मूल ढांचे में बदलाव की कोशिश कर सकती है।

विपक्षी नेताओं, विशेष रूप से कांग्रेस और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने दावा किया था कि सरकार संविधान की प्रस्तावना को बदलकर देश के धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी चरित्र को कमजोर करने की कोशिश कर सकती है। डीएमके सांसद टी. सुमति ने लोकसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा, "संविधान की प्रस्तावना देश की आत्मा है। इसे बदलने की कोई भी कोशिश देश के मूल्यों के खिलाफ होगी।"

सरकार का रुख

मेघवाल ने इन आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि सरकार संविधान के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है और इसका कोई इरादा नहीं है कि प्रस्तावना में बदलाव किया जाए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में संविधान की प्रस्तावना को इसके मूल ढांचे का हिस्सा माना है, और सरकार इसकी रक्षा के लिए बाध्य है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने सरकार के जवाब का स्वागत किया, लेकिन चेतावनी दी कि विपक्ष इस मुद्दे पर नजर रखेगा। उन्होंने कहा, "हम सरकार के आश्वासन को स्वीकार करते हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि संविधान के मूल सिद्धांतों के साथ कोई छेड़छाड़ न हो।"

यह बयान ऐसे समय में आया है, जब देश में संवैधानिक मूल्यों और धर्मनिरपेक्षता को लेकर बहस तेज हो रही है। सरकार के इस स्पष्टीकरण से उन अटकलों पर विराम लगने की उम्मीद है, जो संविधान में बदलाव को लेकर चल रही थीं। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा भविष्य में भी चर्चा का विषय बना रहेगा, खासकर 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर।