क़ानून विशेषज्ञ प्रोफेसर मोहन गोपाल ने कहा कि जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की टिप्पणियां अयोध्या विवाद पर क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने का मजबूत आधार बन सकती हैं। क्या यह मामला फिर अदालत में गूंजेगा?
अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है। मशहूर कानून विशेषज्ञ प्रोफेसर जी. मोहन गोपाल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की हालिया टिप्पणियों की वजह से इस फैसले को चुनौती देने के लिए एक क्यूरेटिव पिटीशन दायर की जा सकती है। उनका कहना है कि चंद्रचूड़ की टिप्पणियाँ अयोध्या फ़ैसले पर सवाल उठाती हैं और इसे कमजोर करती हैं।
प्रोफेसर गोपाल ने यह बात केरल के कालीकट विश्वविद्यालय में एक सेमिनार में कही। इस सेमिनार में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग यानी आईयूएमएल के सांसद और वकील हैरिस बीरन ने भी हिस्सा लिया। बीरन ने कहा कि चंद्रचूड़ की टिप्पणियाँ मुस्लिम समुदाय के लिए दुखद हैं, क्योंकि ये 2019 के फ़ैसले से बिल्कुल उलट हैं। बीरन के ही एक सवाल के जवाब में प्रोफेसर मोहन गोपाल ने क्यूरेटिव पिटीशन वाली बात कही।
क्यूरेटिव पिटीशन समीक्षा याचिका खारिज होने या ख़त्म हो जाने के बाद अदालत में अन्याय की भरपाई के लिए उपलब्ध अंतिम मौका है। यह अवधारणा भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा और अन्य (2002) मामले में विकसित की गई थी, जिसमें सवाल था कि क्या कोई पीड़ित व्यक्ति समीक्षा याचिका के खारिज होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय या आदेश के खिलाफ कोई राहत प्राप्त करने का हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अपनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और घोर अन्याय को ठीक करने के लिए वह अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करके अपने निर्णयों पर पुनर्विचार कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए कोर्ट ने क्यूरेटिव पिटीशन यानी उपचारात्मक याचिका नाम की एक प्रक्रिया विकसित की है। इस याचिका को दायर करने के लिए कोई समय सीमा नहीं दी गई है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत गारंटीकृत है, जो सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्णयों और आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति देता है।
चंद्रचूड़ ने क्या कहा?
हाल ही में एक इंटरव्यू में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण एक मंदिर को तोड़कर किया गया था, जिसे उन्होंने 'मंदिर का अपवित्रीकरण' बताया। उनके मुताबिक, पुरातात्विक सबूतों से पता चलता है कि मस्जिद वहाँ पहले मौजूद हिंदू संरचना को तोड़कर बनाई गई थी इसलिए, विवादित जमीन को राम मंदिर के लिए देना सही था।
लेकिन 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कुछ और ही कहा था। उस समय पाँच जजों की बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ भी शामिल थे।
बेंच ने साफ कहा था कि कोई पक्का सबूत नहीं है जो यह साबित करे कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर तोड़ा गया था। कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन राम मंदिर के लिए दी और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन दी।
प्रोफेसर गोपाल ने क्या कहा?
प्रोफेसर गोपाल ने कहा कि चंद्रचूड़ की नई टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मेल नहीं खातीं। इससे फैसले की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। गोपाल ने चंद्रचूड़ को अपना दोस्त और अच्छा जज बताया, लेकिन कहा कि अगर उनके मन में पहले से कोई पक्षपात था, तो उन्हें इस केस से खुद को अलग कर लेना चाहिए था। गोपाल का कहना है कि चंद्रचूड़ की टिप्पणियां यह दिखाती हैं कि वे पहले से ही पक्षपात कर रहे थे, जो इस याचिका का आधार बन सकता है।
उन्होंने कहा, 'न्यायालय का काम ऐसा फैसला देना है जो सबको निष्पक्ष लगे। अगर चंद्रचूड़ को लगता था कि मस्जिद का निर्माण गलत था तो यह फैसले को कमजोर करता है।' गोपाल ने यह भी कहा कि वे खुद इस याचिका पर काम करने को तैयार हैं। उन्होंने कहा, 'न्यायालय का अंतिम दायित्व ऐसा फैसला देना है जो विश्वास जगाए। न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए, खासकर उन लोगों के लिए जो केस हार जाते हैं।'
प्रोफेसर गोपाल ने कहा, 'मैं जजों से कहूँगा, कृपया जब आप बेंच में हों तो अपनी विचारधारा के बारे में पारदर्शी रहें।' इस संदर्भ में उन्होंने याद किया कि प्रोफेसर उपेंद्र बक्षी ने जस्टिस चिन्नप्पा रेड्डी की इस बात के लिए प्रशंसा की थी कि उन्होंने खुलकर कहा था कि वे मार्क्सवादी हैं। उन्होंने आगे कहा कि ईडब्ल्यूएस मामले में जस्टिस यूयू ललित और एस रविंद्र भट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के तर्कों के प्रति अपनी आपत्तियों को बहुत पारदर्शी तरीके से व्यक्त किया था; हालांकि, बाद में उन्होंने तर्कों में योग्यता पाई और ईडब्ल्यूएस कोटा को रद्द कर दिया। प्रोफेसर गोपाल ने कहा, 'हम जजों से बस यही चाहते हैं - हमारे पास हर तरह की विचारधाराओं वाले जज हैं, यह अपरिहार्य है। हम बस ईमानदारी, सच्चाई और पारदर्शिता चाहते हैं।' गोपाल ने कहा कि हमें चंद्रचूड़ की टिप्पणियों के प्रकाश में क्यूरेटिव पिटीशन दायर करनी चाहिए।
अयोध्या की कहानी
अयोध्या का यह विवाद बहुत पुराना है। 16वीं सदी में बाबरी मस्जिद बनी थी, लेकिन हिंदू पक्ष का कहना था कि यह भगवान राम का जन्मस्थान है। 1992 में मस्जिद को तोड़ दिया गया, जिसके बाद देश में दंगे हुए। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमीन को तीन हिस्सों में बांटा, लेकिन 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बदलकर पूरी जमीन राम मंदिर को दे दी। अब वहां मंदिर बन चुका है।
प्रोफेसर गोपाल की बातों से कानूनी हलकों में बहस शुरू हो गई है। कुछ लोग कह रहे हैं कि जज की निजी राय से पुराने फ़ैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन कुछ का मानना है कि यह गलत है और इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। हैरिस बीरन ने कहा कि चंद्रचूड़ की टिप्पणियाँ मुस्लिम समुदाय को ठेस पहुंचाती हैं। वहीं, कुछ हिंदू संगठनों ने चंद्रचूड़ की टिप्पणियों का समर्थन किया और गोपाल के सुझाव को राजनीति से प्रेरित बताया।
क्या होगा आगे?
यदि क्यूरेटिव पिटीशन दायर होती है तो सुप्रीम कोर्ट के पांच सीनियर जज इसे गुप्त रूप से सुनेंगे। यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है, लेकिन यह अयोध्या फैसले को दोबारा जांचने का मौका देगी। फ़िलहाल, यह मामला फिर से चर्चा में है और यह सवाल उठा रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह निष्पक्ष था। आने वाला समय बताएगा कि यह मामला कहां जाता है।