संसद में अब 'बैग पॉलिटिक्स' की चर्चा ज़ोरों पर है। बांसुरी स्वराज से लेकर प्रियंका गांधी तक, नेता अब अपने स्टाइल और प्रतीकों से भी दे रहे हैं राजनीतिक संदेश। क्या ये फैशन है या सियासत का नया हथियार?
देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंच संसद अब बहस और क़ानून बनाने का केंद्र ही नहीं रही, बल्कि यह सांकेतिक विरोध का एक नया अखाड़ा भी बन गई है। बीजेपी की सांसद बांसुरी स्वराज ने मंगलवार को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में एक काले बैग के साथ संसद में प्रवेश किया, जिस पर बड़े लाल अक्षरों में लिखा था- 'नेशनल हेराल्ड की लूट'। यह बैग न केवल एक फैशन स्टेटमेंट था, बल्कि कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार पर सीधा हमला था। इस क़दम ने एक बार फिर 'बैग पॉलिटिक्स' को सुर्खियों में ला दिया। इसकी शुरुआत पिछले साल कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने की थी।
बांसुरी स्वराज ने अपने बैग के ज़रिए नेशनल हेराल्ड केस को फिर से चर्चा में ला दिया। इस केस में ईडी ने हाल ही में कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, और अन्य के ख़िलाफ़ दिल्ली के राउज़ एवेन्यू कोर्ट में चार्जशीट दायर की है। इसमें 988 करोड़ रुपये के कथित मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है। बांसुरी ने अपने बैग के ज़रिए न केवल इस मामले को उजागर किया, बल्कि कांग्रेस पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा, 'यह पहली बार है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया में भ्रष्टाचार हुआ है।' उनका इशारा नेशनल हेराल्ड अखबार से जुड़े यंग इंडिया लिमिटेड के कथित अनुचित अधिग्रहण की ओर था, जिसकी 76% हिस्सेदारी गांधी परिवार के पास है।
बांसुरी का यह क़दम कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के पिछले साल के बैग-आधारित विरोध का जवाब माना जा रहा है। यह न केवल एक सियासी तंज था, बल्कि संसद में विरोध जताने के नए तरीके की मिसाल भी थी।
पिछले साल दिसंबर 2024 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रियंका गांधी ने अपने बैग के ज़रिए सियासी संदेश देने की शुरुआत की। 16 दिसंबर को वह एक बैग लेकर संसद पहुंचीं, जिस पर 'फिलिस्तीन' लिखा था और इसमें तरबूज जैसे प्रतीक थे, जो फिलिस्तीनी एकजुटता का प्रतीक माने जाते हैं। इस क़दम ने बीजेपी को हमला करने का मौक़ा दिया, जिसने इसे 'तुष्टिकरण की राजनीति' क़रार दिया था।
अगले ही दिन यानी 17 दिसंबर को प्रियंका ने एक और बैग के साथ संसद में प्रवेश किया, जिस पर लिखा था- 'बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के साथ खड़े हों'। यह क़दम बीजेपी के उस आरोप का जवाब था, जिसमें कहा गया था कि कांग्रेस को बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की पीड़ा नहीं दिखती।
प्रियंका ने इस बैग के ज़रिए न केवल बांग्लादेश में हिंदुओं और ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा का मुद्दा उठाया, बल्कि केंद्र सरकार पर इस मामले में चुप्पी साधने का आरोप भी लगाया।
हालांकि, प्रियंका के इस क़दम को कुछ आलोचकों ने 'खानापूर्ति' क़रार दिया। उनका कहना था कि प्रियंका ने फिलिस्तीन मुद्दे पर तो लगातार आवाज़ उठाई, लेकिन बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए उनका रुख तभी सामने आया, जब उन पर दबाव पड़ा।
संसद में बैग के ज़रिए सियासी संदेश देना कोई नया चलन नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह अधिक प्रमुख हो गया है। बांसुरी और प्रियंका के अलावा भी कई नेताओं ने इस तरह के सांकेतिक विरोध का सहारा लिया है। प्रियंका गांधी के साथ-साथ कई अन्य कांग्रेस सांसदों ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ अत्याचार के विरोध में 'बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के साथ खड़े हों' लिखे बैग के साथ संसद परिसर में प्रदर्शन किया था। उन्होंने 'केंद्र सरकार जवाब दो' और 'वी वॉन्ट जस्टिस' जैसे नारे लगाए था।
प्रियंका गांधी ने एक बैग के ज़रिए गौतम अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथित रिश्तों पर सवाल उठाए। इस बैग पर अडानी से जुड़ा स्टिकर लगा था, जिसने सियासी हलकों में हलचल मचा दी।
पहले भी सांसद विभिन्न मुद्दों पर टी-शर्ट, मास्क, और तख्तियों के ज़रिए संसद में अपनी बात रख चुके हैं। 2024 में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने बाबासाहेब आंबेडकर पर गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी के विरोध में नीले कपड़े पहनकर संसद में प्रदर्शन किया था।
संसद में बैग के ज़रिए विरोध जताना एक सांकेतिक लेकिन प्रभावी तरीक़ा है। यह न केवल मीडिया का ध्यान खींचता है, बल्कि आम जनता तक भी संदेश पहुंचाता है। बांसुरी स्वराज के बैग का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने नेशनल हेराल्ड केस को फिर से चर्चा में ला दिया। इसी तरह, प्रियंका के बैग ने फिलिस्तीन और बांग्लादेश जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को भारतीय राजनीति से जोड़ा था और उनके वीडियो भी वायरल हुए थे।
बांसुरी का बैग कांग्रेस को जवाब देने के लिए मजबूर करता है, खासकर जब नेशनल हेराल्ड केस में 25 अप्रैल 2025 को कोर्ट में सुनवाई होनी है। वहीं, प्रियंका का बैग केंद्र सरकार को बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर क़दम उठाने के लिए दबाव बनाया था।
इस तरह के विरोध को कुछ लोग 'नाटक' या 'ध्यान खींचने की रणनीति' मानते हैं। मिसाल के तौर पर प्रियंका के बांग्लादेश वाले बैग को कुछ ने 'ड्रामा' क़रार दिया था, जबकि बांसुरी के बैग को कांग्रेस ने 'बदले की राजनीति' का हिस्सा बताया है।
'बैग पॉलिटिक्स' भारतीय संसद में एक नया ट्रेंड बन गया है, जो सियासी दलों को अपने विरोध को रचनात्मक और दृश्यात्मक तरीके से व्यक्त करने का मौक़ा देता है। बांसुरी स्वराज और प्रियंका गांधी ने इस रणनीति को न केवल अपनाया, बल्कि इसे और प्रभावी बनाया। हालांकि, यह ट्रेंड सवाल भी उठाता है कि क्या संसद जैसे गंभीर मंच को इस तरह के सांकेतिक विरोध का अखाड़ा बनाना सही है? क्या यह वास्तविक मुद्दों पर बहस को कमज़ोर करता है, या यह जनता तक संदेश पहुंचाने का एक नया और प्रभावी तरीक़ा है?