भारत के मुख्य न्यायाधीश यानी सीजेआई पर कथित तौर पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर को काउंसिल ऑफ इंडिया यानी बीसीआई ने तत्काल प्रभाव से क़ानूनी प्रैक्टिस से निलंबित कर दिया है। 71 वर्षीय किशोर ने सोमवार को कोर्ट की कार्यवाही के दौरान सीजेआई जस्टिस बी आर गवई पर कथित तौर पर जूता फेंका। इसे बीसीआई ने 'कोर्ट की गरिमा के अनुरूप नहीं' करार दिया। यह निलंबन एडवोकेट्स एक्ट, 1961 और बार काउंसिल रूल्स के उल्लंघन की वजह से है। 

बीसीआई के चेयरमैन और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा कि किशोर का यह कृत्य ‘प्राइमा फेसी कोर्ट की गरिमा के विरुद्ध है’। दिल्ली बार काउंसिल को आदेश लागू करने का निर्देश दिया गया है, जबकि अनुशासनात्मक जांच जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट की सिक्योरिटी यूनिट ने भी घटना की जांच शुरू कर दी है।
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सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ था?

घटना सोमवार सुबह करीब 11:35 बजे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायालय कक्ष में घटी, जब सीजेआई गवई की अगुवाई वाली बेंच वकीलों द्वारा केसों की मेंशनिंग सुन रही थी। रिपोर्टों में प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से कहा गया है कि राकेश किशोर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन यानी एससीबीए के पंजीकृत सदस्य हैं। वह मयूर विहार के निवासी हैं। वह अचानक डेस के पास पहुँचे। उन्होंने अपना स्पोर्ट्स शू उतारा और उसे सीजेआई की ओर फेंका। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि यह जूता था।

सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत कार्रवाई की और किशोर को कोर्ट कक्ष से बाहर ले गए। रिपोर्टों में कहा गया है कि वहाँ मौजूद वकीलों ने बताया कि बाहर जाते हुए वकील ने चिल्लाया, 'सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान!'। इस घटना ने न्यायिक प्रक्रिया को कुछ देर के लिए बाधित कर दिया। 

कोर्ट में मौजूद वकीलों ने बताया कि वातावरण अचानक तनावपूर्ण हो गया, लेकिन सीजेआई गवई ने शांति बनाए रखी। उन्होंने वकीलों से कहा कि इससे विचलित न हों, हम विचलित नहीं हैं, ये चीजें मुझे प्रभावित नहीं करतीं। कार्यवाही बिना रुकावट जारी रही।

खजुराहो मंदिर विवाद से जुड़ा है मामला

यह घटना सीजेआई गवई की 16 सितंबर की टिप्पणी से जुड़ी लगती है, जब एक बेंच ने मध्य प्रदेश के यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज खजुराहो मंदिर कॉम्प्लेक्स के जावरी मंदिर में सात फुट की भगवान विष्णु की पुनर्स्थापित करने की याचिका खारिज कर दी थी। याचिका में पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ़ इंडिया यानी एएसआई को निर्देश देने की मांग की गई थी।

सीजेआई ने टिप्पणी की थी, 'यह शुद्ध पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी पीआईएल है। जाइए और खुद देवता से कहिए कि अब कुछ करे। आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं तो जाइए और प्रार्थना कीजिए।' इस बयान को सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से आलोचना मिली, जहाँ कई लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं का अपमान बताया। 18 सितंबर को ओपन कोर्ट में सीजेआई ने सफ़ाई दी कि उनकी टिप्पणी का ग़लत अर्थ निकाला गया है और वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं।
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बीसीआई की कार्रवाई

बीसीआई अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा द्वारा हस्ताक्षरित आदेश में कहा गया है, 'प्रथम दृष्टया साक्ष्यों के आधार पर ऐसा लगता है कि सुबह 11.35 बजे... भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अदालत संख्या 1 में, आपने, यानी दिल्ली बार काउंसिल में नामांकित अधिवक्ता राकेश किशोर ने... चल रही कार्यवाही के दौरान अपने स्पोर्ट्स शूज़ उतारे और उन्हें भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश की ओर फेंकने का प्रयास किया, जिसके बाद आपको सुरक्षाकर्मियों ने हिरासत में ले लिया। रिकॉर्ड के अनुसार, यह आचरण... नियमों और न्यायालय की गरिमा के विरुद्ध है।' इसके साथ ही कहा गया है कि अधिवक्ता राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से वकालत से निलंबित किया जाता है।

तीन घंटे की पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस ने किशोर को जाने दिया क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने उनके खिलाफ आरोप लगाने से इनकार कर दिया।

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निलंबन आदेश में आगे कहा गया है, 'यह आदेश दिल्ली बार काउंसिल के माध्यम से भी भेजा जाएगा, जो अधिवक्ता को उनके पंजीकृत पते और पंजीकृत ईमेल पर भेजेगा और इस आदेश की प्राप्ति के दो दिनों के भीतर बार काउंसिल ऑफ इंडिया के समक्ष अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करेगा।' आदेश में यह भी कहा गया है कि 48 घंटों के भीतर बार काउंसिल ऑफ इंडिया और दिल्ली बार काउंसिल कार्यालय में भौतिक रूप से अनुपालन का एक हलफनामा दाखिल करना होगा और यह पुष्टि की जाएगी कि निलंबन अवधि के दौरान आप किसी भी मामले में उपस्थित नहीं हो रहे हैं।

मयूर विहार फेज 1 में रहने वाले किशोर को बीसीआई ने भारत की किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या प्राधिकरण में उपस्थित होने, कार्य करने, पैरवी करने या प्रैक्टिस करने से प्रतिबंधित कर दिया है।

बीसीआई के आदेश में कहा गया है, 'इस आदेश की तामील से 15 दिनों के भीतर आपको एक कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा जिसमें यह साफ़ किया जाएगा कि यह कार्रवाई क्यों न जारी रखी जाए और आगे उचित समझे जाने वाले अन्य आदेश क्यों न पारित किए जाएँ।' इसमें आगे कहा गया है, 'कानून के अनुसार आपके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाएगी।'