जिस एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले यानी मंगलवार को योगेंद्र यादव की दलीलों की तारीफों के पुल बांधे थे, उसी पर वह बुधवार को चुनाव आयोग की दलीलों से सहमत होता दिखा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही विशेष गहन संशोधन यानी SIR प्रक्रिया में दिए गए 11 दस्तावेजों को मतदाताओं के लिए आसान और सही ठीक बताया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चुनाव आयोग यानी ईसीआई ने मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए 11 दस्तावेजों को पहचान के तौर पर स्वीकार किया है। इससे यह प्रक्रिया सभी के लिए खुली है और आसान है। यह टिप्पणी उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आयी, जिनमें एसआईआर प्रक्रिया को मतदाताओं के लिए परेशानी वाला और कुछ लोगों को वोटिंग से रोकने वाला बताया गया था। चुनाव आयोग ने दावा किया है कि यह प्रक्रिया बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को सही करने के लिए शुरू की गई है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि 2003 में बिहार में मतदाता सूची ठीक करने के लिए सिर्फ 7 दस्तावेज स्वीकार किए गए थे, लेकिन अब एसआईआर में 11 दस्तावेजों को मंजूरी दी गई है। इससे मतदाताओं को अपनी पहचान साबित करना आसान हो गया है। कोर्ट ने कहा, 'यह प्रक्रिया मतदाताओं को परेशान करने वाली नहीं है, बल्कि उनके लिए मददगार है।' मतदाताओं को इन 11 दस्तावेजों में से सिर्फ एक दिखाना होगा। 

हालाँकि, याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिहार में कई लोगों के पास ये दस्तावेज नहीं हैं। जैसे, पासपोर्ट सिर्फ 1-2% लोगों के पास है, और कुछ दस्तावेज, जैसे स्थायी निवास प्रमाणपत्र, बिहार में मिलते ही नहीं। जवाब में कोर्ट ने कहा कि बिहार में 36 लाख लोग पासपोर्ट धारक हैं, जो अच्छी संख्या है। कोर्ट ने यह भी कहा कि दस्तावेजों की सूची सरकारी विभागों से बात करके बनाई गई है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका फायदा उठा सकें। 

SIR प्रक्रिया क्या है?

बिहार में SIR प्रक्रिया मतदाता सूची को अपडेट करने और गैर-नागरिकों के नाम हटाने के लिए शुरू की गई है। यह 2003 के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हो रही है। इस प्रक्रिया में जिन लोगों का नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं है, उन्हें अपने जन्म स्थान का प्रमाण और भारतीय नागरिकता की स्व-घोषणा देनी होगी। ईसीआई ने साफ किया है कि आधार कार्ड, वोटर आईडी, और राशन कार्ड को नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा, क्योंकि ये सिर्फ पहचान के लिए हैं।

ईसीआई का कहना है कि बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 6.5 करोड़ लोगों को कोई अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देना होगा, क्योंकि उनके या उनके माता-पिता का नाम 2003 की सूची में है। लेकिन विपक्षी दलों को आशंका है कि करीब 2 करोड़ लोगों के नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं।

याचिकाकर्ताओं की चिंता

वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि एसआईआर प्रक्रिया का समय गलत है। उन्होंने पूछा कि 2003 में यह प्रक्रिया चुनाव से एक साल पहले शुरू हुई थी, लेकिन इस बार जुलाई में, जब विधानसभा चुनाव इतने करीब हैं, क्यों शुरू की गई? उन्होंने सुझाव दिया कि इसे दिसंबर से शुरू करना चाहिए और एक साल का समय देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पहले यह माना जाता था कि हर मतदाता नागरिक है, जब तक कोई सबूत न दे। लेकिन अब चुनाव आयोग हर किसी से नागरिकता साबित करने को कह रहा है, जो गलत है।

प्रशांत भूषण की दलीलें     

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का दावा है कि राहुल गांधी द्वारा 4 अगस्त को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाने के बाद चुनाव आयोग की वेबसाइट ने कम्प्यूटर से ढूंढे जाने वाली मतदाता सूची को हटा दिया। उनके अनुसार यह सूची 4 अगस्त तक उपलब्ध थी।

प्रशांत भूषण का कहना है कि चुनाव आयोग की दुर्भावना SIR कराने में उसकी जल्दबाजी, आधार या EPIC स्वीकार करने से इनकार, 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम और नाम हटाने के कारणों को प्रकाशित करने से इनकार और मसौदा मतदाता सूची में नामों की खोज करने की व्यवस्था को हटाने से साफ़ है। उन्होंने यह भी कहा, "मैं गारंटी दे सकता हूँ कि बीएलओ गणना फ़ॉर्म भर रहे थे और उन पर हस्ताक्षर कर रहे थे। यही कारण है कि बहुत से 'मृत' लोग मसौदा मतदाता सूची में आ गए हैं।"
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ECI का जवाब

चुनाव आयोग ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और सभी के लिए खुली है। जिनके पास 11 दस्तावेजों में से कोई नहीं है, उनके लिए निर्वाचन अधिकारी उनकी जांच करके नाम दर्ज कर सकते हैं। ईसीआई ने यह भी कहा कि आधार, राशन कार्ड, और ड्राइविंग लाइसेंस को नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा।

11 दस्तावेज कौन से हैं?

ईसीआई ने 11 दस्तावेजों में पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल सर्टिफिकेट जैसे दस्तावेज शामिल हैं। आधार, पैन कार्ड, और ड्राइविंग लाइसेंस को इस लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है।
  • जन्म प्रमाण पत्र: किसी नगर निकाय, पंचायत या अन्य सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया।
  • पासपोर्ट: विदेश मंत्रालय द्वारा जारी।
  • मैट्रिक या उच्च शिक्षा प्रमाण पत्र: किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय द्वारा जारी।
  • सरकारी पहचान पत्र या पेंशन आदेश: केंद्र या राज्य सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा जारी।
  • स्थायी निवास प्रमाण पत्र: जिला मजिस्ट्रेट या समकक्ष प्राधिकरण द्वारा जारी।
  • वन अधिकार प्रमाण पत्र: वन अधिकार अधिनियम के तहत जारी।
  • जाति प्रमाण पत्र (SC/ST/OBC): सक्षम प्राधिकरण द्वारा जारी।
  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) दस्तावेज: जहां लागू हो।
  • परिवार रजिस्टर: स्थानीय निकायों द्वारा जारी।
  • जमीन या मकान आवंटन प्रमाण पत्र: सरकारी कार्यालय द्वारा जारी।
  • 1987 से पहले के सरकारी या PSU पहचान दस्तावेज: सरकार, स्थानीय प्राधिकरण, बैंक, डाकघर, एलआईसी, PSU द्वारा 1 जुलाई 1987 से पहले जारी दस्तावेज।
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तो योगेंद्र यादव की तारीफ़ क्यों की थी?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता और विश्लेषक योगेंद्र यादव की दलीलों और विश्लेषण की सराहना की। जस्टिस सूर्यकांत ने विशेष रूप से योगेंद्र यादव के विश्लेषण की प्रशंसा करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया। यादव ने कोर्ट में दो ऐसे व्यक्तियों को पेश किया था, जिन्हें निर्वाचन आयोग ने मृत घोषित कर मतदाता सूची से हटा दिया था, जबकि वे जीवित थे। इस कदम ने एसआईआर प्रक्रिया की खामियों को उजागर किया। जस्टिस बागची ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक अनजाने में हुई त्रुटि हो सकती है, जिसे ठीक किया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने यादव के तर्कों को गंभीरता से लिया और कहा कि आपके बिंदु अच्छे हैं।

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि एसआईआर प्रक्रिया में विश्वास की कमी की समस्या है और यादव के तर्कों ने इस मुद्दे को और स्पष्ट किया। यादव ने अपनी दलील में कहा कि एसआईआर एक बड़े पैमाने पर मताधिकार छीनने की कवायद है, जिसमें 65 लाख से अधिक मतदाताओं को हटाया गया और कोई नया मतदाता जोड़ा नहीं गया। उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया और कहा कि यह प्रक्रिया बिहार में 1 करोड़ से अधिक लोगों को मतदाता सूची से बाहर कर सकती है।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर को मतदाता के अनुकूल बताया है, लेकिन विपक्ष और याचिकाकर्ताओं की चिंताएं बनी हुई हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और इस प्रक्रिया का असर वोटिंग पर पड़ सकता है। कोर्ट इस मामले की सुनवाई गुरुवार को करेगा।