भाजपा के वरिष्ठ नेता और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ
आरक्षण की आग में सुलगता देशः योगी आदित्यनाथ
जन्मना जाति व्यवस्था का दुष्परिणाम इस देश को कितना नुकसान पहुँचाएगा कहना कठिन है। लेकिन इसके कारण जो सामाजिक असमानता फैली थी, उस सामाजिक असमानता को समाप्त करने के लिए स्वतन्त्र भारत ने जो तैयारी और तरकीब निकाली उसने यह खाई और बढ़ाई है।
आरक्षण की जायज नाजायज माँगों की समीक्षा के बजाय इसका दायरा बढ़ता गया और बढ़ाया भी जा रहा है।
सामाजिक अथवा आर्थिक रूप से अत्यंत कमजोर तबके को आरक्षण अथवा किसी भी प्रकार की सुविधा प्रदान करने का विरोध किसी को नहीं है, लेकिन जब उन सुविधाओं को वह व्यक्ति अथवा समुदाय ही निगल जाता है जो पहले ही उस सुविधा से लाभान्वित हो चुका है अथवा पहले से ही उसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहतर हो चुकी है तो विरोध स्वाभाविक भी है। यही कारण है कि आजादी के बाद आरक्षण प्राप्त होने वाले समुदाय के अन्दर भी एक नया समूह बन गया है जो पहले से ही आरक्षण का लाभ पा रहा था वह ही आज भी लाभान्वित हो रहा है; जो वंचित था वह आज भी वंचित है।
देखा देखी करके आज आरक्षण के दायरे में तमाम जातियों ने अपने को लाने के लिए हिंसा का मार्ग भी अपनाना प्रारम्भ कर दिया है। राजस्थान का गुर्जर आंदोलन इसी कड़ी का हिस्सा है।
सामान्य जातियों में पिछड़ी जाति में शामिल होने की होड़, पिछड़ी जातियों में अनुसूचित जाति अथवा जनजाति में शामिल होने की होड़, भारत की मातृशक्ति के अन्दर भी आरक्षण पाने की प्रबल लालसा उन्हें स्वावलंबी बनाने के बजाय क्या बना रही है कहना कठिन है। लेकिन देश की विभाजनकारी राजनीति ने अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस दायरे को बढ़ाने में कोई संकोच नहीं किया। आज इस खाई को और भी चौड़ा करके जहाँ समाज में वर्ग संघर्ष की स्थिति पैदा कर दिया है वहीं इस आरक्षण के आर्थिक रूप से समुन्नत बनाने के लिए यह व्यवस्था की गई थी, उसकी ईमानदारी से समीक्षा नहीं हुई।
ईमानदारी से समीक्षा हुई होती तो आरक्षण का यह भयावह दृश्य सामने नहीं आता।
जब आरक्षण के साथ राजनीति ही जुड़ गई और जब भी किसी अच्छे उद्देश्य के साथ राजनीति जुड़ेगी तो उसका बंटाधार होना ही है। आरक्षण का लाभ प्रारम्भ में जिसने प्राप्त किया, सामाजिक और आर्थिक रूप से उसके समुन्नत होने के बाद भी उसे ही यह लाभ प्राप्त होता गया। क्रीमीलेयर की बात यहीं से शुरू भी होती है।
आज इस खाई को और भी चौड़ा करके जहाँ समाज में वर्ग संघर्ष की स्थिति पैदा कर दिया है, वहीं इस आरक्षण के दायरे ने संविधान की धज्जियाँ उड़ाने में भी कोई कोताही नहीं बरती।
(भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ का यह लेख उनकी वेबसाइट पर अभी भी मौजूद है। कल को यह हटा दिया जाए तो अलग बात है। लेकिन इसके सबूत सुरक्षित हैं कि यह लेख उनकी वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था। इस लेख साफ है कि भाजपा का एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण पर क्या विचार है। इस लेख पर जयराम रमेश की टिप्पणी आए हुए कई घंटे हो चुके हैं लेकिन भाजपा अभी तक खंडन या सफाई नहीं दे पाई है। इसी तरह 2015 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पान्चजन्य को दिए गए इंटरव्यू में आरक्षण का विरोध करते हुए इसकी समीक्षा की बात कही थी। वही बात योगी आदित्यनाथ भी कह रहे हैं। ये अलग बात है कि मोहन भागवत अपने बयान से मुकर गए और खंडन कर दिया)