देश के 44 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6,074 पद रिक्त हैं, जिनमें से 75 प्रतिशत पद आरक्षित श्रेणी के हैं। अन्य पिछड़े वर्ग के आधे से ज़्यादा पद खाली पड़े हैं। प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट में ओबीसी, एससी, एसटी की स्थिति और ख़राब है, जहाँ इस वर्ग के लिए सृजित कुल पदों में 60 प्रतिशत से ज़्यादा खाली पड़े हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के 80 प्रतिशत पद खाली हैं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 15 मार्च 2021 को ओडिशा के कोरापुट से कांग्रेस सांसद सप्तगिरि शंकर उलाका, केरल के चालाकुडी लोकसभा से कांग्रेस के सांसद बैन्नी बेनहन और तमिलनाडु के विरुधनगर लोकसभा से कांग्रेस सांसद बी मणिक्कम टैगोर की ओर से पूछे गए कई सवालों के जवाब में विस्तार से ब्योरा दिया। निशंक ने कहा कि नियुक्तियों में एससी, एसटी, और ओबीसी के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 12 जुलाई, 2019 को केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम 2019 अधिसूचित किया गया, ताकि विश्वविद्यालय को एक इकाई मानकर केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में शिक्षक संवर्ग में सीधी भर्ती में पदों का आरक्षण प्रदान किया जा सके। इसके बाद ओबीसी आरक्षण सभी स्तरों पर लागू किया गया।
इसके बाद यूजीसी ने 4 जून, 2019 को अपने अ.शा. पत्रांक एफ. 1-14/2019 (सीपीपी-2) द्वारा भर्ती के लिए चयन प्रक्रिया और समय सीमा निर्धारित करते हुए विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और संबंधित विश्वविद्यालयों में संकाय की भर्ती के लिए दिशानिर्देश तैयार किए, जो सभी विश्वविद्यालयों को भेजे गए। विश्वविद्यालयों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि विश्वविद्यालयों के साथ संबद्ध कॉलेजों में रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाए।
यूजीसी ने जून 2019 में स्पष्ट रूप से सभी विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर रिक्तियाँ भरने के लिए 6 महीने का वक़्त दिया था और चेतावनी दी थी कि अगर दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता है तो अनुदान रोक दिया जाएगा। उसके बावजूद 15 मार्च 2021 तक 42 विश्वविद्यालयों में 6,074 पद खाली थे और इनमें से 75 प्रतिशत पद आरक्षित श्रेणी के थे।
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उत्तम कुमार रेड्डी द्वारा पूछा गया सवाल था- “अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए स्वीकृत पदों में रिक्तियों की अधिक संख्या का क्या कारण है?” इसका मंत्री द्वारा बहुत मासूम सा जवाब आया। मंत्री ने कहा, “विभिन्न स्तरों पर ओबीसी के लिए स्वीकृत पदों में रिक्तियाँ गतिशील प्रक्रियाओं के कारण होती हैं, जो कि अन्य बातों के साथ-साथ सेवानिवृत्ति, त्यागपत्र, मृत्यु, प्रतिनियुक्ति, सेवा विस्तार और नए संस्थान खोलते जाने पर निर्भर है।” मंत्री के इस मासूम जवाब में रेड्डी यह पूरक सवाल पूछ सकते हैं कि मंत्री महोदय क्या स्पष्ट करेंगे कि विश्वविद्यालयों में ओबीसी की सेवानिवृत्ति, त्यागपत्र, मृत्यु, प्रतिनियुक्ति और सेवा विस्तार की दर सामान्य वर्ग के प्रोफेसरों की तुलना में बहुत ज़्यादा क्यों है?
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