सोनिया गांधी ने ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियानों को 'नरसंहार' करार दिया और और इस पर चुप्पी साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने
मोदी सरकार की ग़ज़ा संकट पर चुप्पी को 'मानवता के खिलाफ अपमान' और 'भारत के संवैधानिक मूल्यों के साथ कायरतापूर्ण विश्वासघात' बताया। ‘गजा संकट पर मूकदर्शक मोदी सरकार’ शीर्षक से दैनिक जागरण में प्रकाशित अपने लेख में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री से भारत की ऐतिहासिक विरासत के अनुरूप 'स्पष्ट, साहसिक और निष्पक्ष' ढंग से बोलने की अपील की है।
सोनिया गांधी ने अपने लेख में लिखा कि ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियानों ने पिछले क़रीब दो वर्षों में 55,000 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिकों की जान ले ली है, जिनमें 17,000 बच्चे शामिल हैं। उन्होंने कहा कि
ग़ज़ा में अधिकांश आवासीय इमारतें, अस्पतालों सहित, निरंतर हवाई बमबारी से ध्वस्त हो चुकी हैं, जिसके कारण सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह से चरमरा गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मानवीय सहायता को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की 'घृणित रणनीति' ने ग़ज़ा के लोगों को भूख, बीमारी और अभाव के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।
उन्होंने लिखा, 'अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के रूप में और इससे भी अधिक मानव के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम स्वीकार करें कि ग़ज़ा की नागरिक आबादी के खिलाफ इसराइल सरकार की प्रतिक्रिया और जवाबी कार्रवाइयां न केवल गंभीर हैं, बल्कि पूरी तरह से आपराधिक हैं।' सोनिया गांधी ने इसराइल के कार्यों को अंतरराष्ट्रीय कानून, मानवाधिकार और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों की अवहेलना बताया।
भारत हमेशा से वैश्विक न्याय का प्रतीक
सोनिया गांधी ने भारत की ऐतिहासिक भूमिका की बात करते हुए कहा कि भारत हमेशा से वैश्विक न्याय का प्रतीक रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 1974 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत पहला गैर-अरब देश बना जिसने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी पीएलओ को फिलिस्तीनी लोगों का एकमात्र और वैध प्रतिनिधि माना। इसके बाद, 1988 में भारत उन पहले देशों में शामिल था जिन्होंने फिलिस्तीन राज्य को आधिकारिक रूप से मान्यता दी। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा इसराइल और फिलिस्तीन के बीच ‘दो-राष्ट्र समाधान’ और न्यायपूर्ण शांति का समर्थन किया है।
उन्होंने लिखा,
भारत ने औपनिवेशिक विरोधी आंदोलनों को प्रेरित किया, शीत युद्ध के दौरान साम्राज्यवादी वर्चस्व के खिलाफ आवाज उठाई और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व किया।
उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि जब निर्दोष लोग क्रूरता से मारे जा रहे हैं, तब भारत का अपनी मूल्यों से पीछे हटना 'हमारी राष्ट्रीय चेतना पर एक धब्बा, हमारी ऐतिहासिक योगदान की अवहेलना और हमारे संवैधानिक मूल्यों के साथ कायरतापूर्ण विश्वासघात' है।
हमास के हमलों की निंदा
सोनिया गांधी ने अपने लेख में साफ़ किया कि 7 अक्टूबर 2023 को इसराइल में निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर हमास के बर्बर हमलों और उसके बाद इसराइली बंधकों को बनाए रखने को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने इन हमलों की बार-बार और स्पष्ट रूप से निंदा की। हालांकि, उन्होंने इसराइल की प्रतिक्रिया को भी उतना ही आपराधिक बताया, विशेष रूप से गजा में नागरिकों के खिलाफ अंधाधुंध बमबारी और मानवीय सहायता को रोकने की रणनीति को।
उन्होंने यह भी कहा कि
इसराइल में ही विरोध की आवाजें बढ़ रही हैं, जहां एक पूर्व प्रधानमंत्री ने गजा में इसराइली युद्ध अपराधों की वास्तविकता को स्वीकार किया है। सोनिया गांधी ने कहा कि इस मानवीय संकट और इसके प्रति बढ़ती वैश्विक चेतना के बीच, भारत का मूकदर्शक बने रहना 'राष्ट्रीय शर्मिंदगी' है।
कांग्रेस नेताओं का समर्थन
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोनिया गांधी के विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि गजा संकट में मोदी सरकार का मूकदर्शक बने रहना नैतिक कायरता की पराकाष्ठा है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, 'अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री स्पष्ट और साहसिक शब्दों में उस विरासत की ओर से जोरदार आवाज उठाएं, जिसका प्रतिनिधित्व भारत करता आया है। आज, ग्लोबल साउथ फिर से भारत के नेतृत्व की प्रतीक्षा कर रहा है।'
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी पहले गजा में इसराइल के कार्यों को 'नरसंहार' करार देते हुए मोदी सरकार की चुप्पी की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री की चुप्पी शर्मनाक है और यह भारत की नैतिक और राजनीतिक साख को कम कर रही है।
ग्लोबल साउथ की उम्मीदें
सोनिया गांधी ने अपने लेख में ‘ग्लोबल साउथ’ का जिक्र करते हुए कहा कि यह क्षेत्र आज फिर से भारत के नेतृत्व की ओर देख रहा है। उन्होंने कहा कि गजा संकट ने वैश्विक व्यवस्था में एक गंभीर कमजोरी को उजागर किया है, और भारत को इस मुद्दे पर अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उन प्रस्तावों की अनदेखी की भी आलोचना की, जो गजा में तत्काल और बिना शर्त युद्धविराम की मांग करते हैं।
सोनिया गांधी का यह लेख न केवल गजा संकट पर भारत सरकार की चुप्पी को लेकर एक तीखी आलोचना है, बल्कि यह भारत की ऐतिहासिक और नैतिक जिम्मेदारी को भी सामने लाता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वे भारत की वैश्विक न्याय की विरासत को आगे बढ़ाएं और गजा में मानवता के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ बोलें।