चुनाव नियमों में संशोधन कर पहले चुनाव से जुड़े सीसीटीवी फुटेज जैसे डाटा तक लोगों की पहुँच को रोक दिया गया था और अब चुनाव आयोग ने एक चौंकाने वाले फ़ैसले में मतदान के वीडियो और तस्वीरों को सुरक्षित रखने के समय को घटाकर सिर्फ़ 45 दिन कर दिया है। यानी 45 दिनों बाद इन्हें डिलीट कर दिया जाएगा यानी इसके बाद कोई सबूत नहीं रहेगा और शिकायत होने पर भी इसकी जाँच नहीं की जा सकती है। पहले चुनाव के अलग-अलग चरणों को तीन महीने से 1 साल तक इसे रखा जाता था। 'दुरुपयोग' का हवाला देकर यह कदम उठाया गया है, लेकिन अब इस फ़ैसले की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है। क्या यह निर्णय लोकतंत्र की नींव को कमजोर करेगा या प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक क़दम है?