डुप्लीकेट नाम हटाने वाले सॉफ्टवेयर को खराब घोषित करने के कुछ ही दिनों बाद, चुनाव आयोग ने 12 राज्यों में एसआईआर के बीच में ही इसे फिर से सक्रिय कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में उसने इसे खराब बताया था। जानिए पूरी खबरः
चुनाव आयोग ऑफ इंडिया (ईसीआई) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उसका डुप्लीकेशन सॉफ्टवेयर दोषपूर्ण है और इसे 2023 के बाद इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। लेकिन अब, 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची की विशेष गहन संशोधन (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन - एसआईआर) प्रक्रिया के बीच में ही आयोग ने इस सॉफ्टवेयर को फिर से सक्रिय कर दिया है। साथ ही, एक दूसरा अज्ञात एल्गोरिदम भी लागू किया गया है, जो मतदाताओं की मैपिंग करता है। दोनों ही मामलों में कोई लिखित प्रोटोकॉल, मैनुअल या स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रक्रिया (एसओपी) जारी नहीं की गई है। ईसीआई का ऐसा झूठ लगातार पकड़ा जा रहा है लेकिन वो अपने ढंग से सफाई पेश कर देता है। बीएलओ मामले में ही उसे अपने कदम पीछे खींचने पड़े, जब अंतिम तारीख को दो बार बदलना पड़ा।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने इस मामले की जांच की। उसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट को ईसीआई ने बताया था कि डुप्लीकेशन सॉफ्टवेयर की सटीकता बदलती रहती है और यह प्रभावी नहीं है। आयोग ने मैनुअल तरीके से बूथ लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) पर निर्भर रहने का फैसला किया था। लेकिन नवंबर के अंत में, एसआईआर के चौथे सप्ताह में, इस सॉफ्टवेयर को फिर से चालू कर दिया गया। इसमें मैनुअल में बताई गई कड़ी ग्राउंड वेरिफिकेशन प्रक्रिया को भी छोड़ दिया गया। अब बीएलओ अपनी जानकारी के आधार पर एंट्री को 'वेरिफाइड' या 'अनकलेक्टेबल' मार्क कर रहे हैं, बिना किसी लिखित दिशानिर्देश के।
इसके अलावा, एक दूसरा एल्गोरिदम मतदाताओं को 2002-2004 की पुरानी मतदाता सूची से जोड़ने (मैपिंग) के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह 'लॉजिकल डिस्क्रेपेंसी' जैसे नाम में अंतर, उम्र में असंगति आदि को फ्लैग करता है। दिसंबर 18-20 के आसपास उत्तर प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बीएलओ ऐप पर ऐसी सूचियां आने लगीं, जब ड्राफ्ट मतदाता सूची की डेडलाइन नजदीक थी। उत्तर प्रदेश में इस कारण ड्राफ्ट सूची प्रकाशन की तारीख 31 दिसंबर तक बढ़ा दी गई।
यूपी में एक जिला चुनाव अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “एसआईआर के हर दिन बीएलओ ऐप पर नए टेक प्रोटोकॉल और सूचियां आ रही थीं। इससे लगता है कि एल्गोरिदम चलाते समय ईसीआई की कोई स्पष्ट योजना नहीं थी।” एक अन्य अधिकारी ने बताया कि डुप्लीकेट मामलों को बीएलओ “जैसा ठीक समझें” हल कर रहे हैं, बिना फील्ड वेरिफिकेशन या मतदाता को नोटिस के।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने अक्टूबर 2025 में एसआईआर की घोषणा करते हुए कहा था कि डुप्लीकेशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं होगा। लेकिन अब इन एल्गोरिदम के अचानक इस्तेमाल से अफरातफरी मच गई है। एसआईआर में अब तक 11 राज्यों में 86.46 लाख लोग 'अनमैप्ड' चिह्नित हो चुके हैं और 3.7 करोड़ नाम ड्राफ्ट सूची से हटा दिए गए हैं।
चुनाव आयोग ने प्रोटोकॉल की कॉपी मांगने पर कोई जवाब नहीं दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि बिना पारदर्शिता के ऐसे एल्गोरिदम का इस्तेमाल मतदाता सूची की अखंडता और चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। एसआईआर प्रक्रिया अभी जारी है और इसके परिणाम आने वाले चुनावों पर असर डाल सकते हैं।