पुणे के चंदननगर इलाके में करगिल युद्ध में हिस्सा ले चुके एक पूर्व सैनिक और उनके परिवार से भारतीय नागरिकता के सबूत मांगे गए। यह घटना 26 जुलाई (शनिवार) की है। पुलिस सारे मामले में लीपापोती कर रही है। परिवार ने पुलिस में जो शिकायत की है, उसके मुताबिक करीब 80 लोगों की भीड़ उनके घर में आधी रात को घुस गई। उनके साथ कुछ पुलिस वाले भी थे। इन लोगों ने परिवार के साथ बदसलूकी की और घर की महिलाओं से आधार कार्ड दिखाने के लिए जबरदस्ती की। भीड़ में में आए लोग हिन्दू संगठन से थे और धार्मिक नारे लगा रहे थे।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हकीमुद्दीन शेख ने करगिल युद्ध में हिस्सा लिया था। वो वर्ष 2000 में इंजीनियर्स रेजिमेंट से हवलदार के पद से रिटायर हुए थे। उनके छोटे भाई इरशाद शेख (48) ने बताया कि तीन भाइयों का परिवार कई दशक से पुणे में रहता है। ये लोग यूपी में प्रतापगढ़ के रहने वाले हैं।


इरशाद ने कहा, "शनिवार (26 जुलाई) आधी रात करीब 80 लोग अचानक हमारे घर आ धमके और दरवाज़ा पीटने लगे। जब हमने दरवाजा खोला, तो कुछ लोग अंदर घुस आए और हमसे सभी का आधार कार्ड मांगने लगे। हमने जब दस्तावेज दिखाए तो उन्हें फर्जी बता दिया गया। महिलाओं और बच्चों को भी दस्तावेज दिखाने के लिए मजबूर किया गया।"

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कभी बांग्लादेशी, कभी रोहिंग्या बताया

हकीमुद्दीन के परिवार ने समझाने की कोशिश की कि वे पिछले 60 सालों से वहीं रह रहे हैं और उनके अलावा दो और चाचा भी सेना में सेवा दे चुके हैं। पर भीड़ सुनने को तैयार नहीं थी। इरशाद ने कहा- "उन्होंने गालियां दीं और हमें कभी बांग्लादेशी तो कभी रोहिंग्या कहा। मैंने उनसे कहा कि अगर जांच करनी है तो करें, लेकिन रात के समय बच्चों से दस्तावेज मांगना और घर में घुसना गलत है।"

‘जय श्री राम’ के नारे और पुलिस की चुप्पी 

भीड़ में शामिल दो लोग पुलिसवाले थे। वो सादी वर्दी में थे और खुद को पुलिसकर्मी बता रहे थे। हिंदू संगठन के लोग 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए उन्हें थाने ले जाने का दबाव बनाने लगे, तो दोनों पुलिसकर्मी मूकदर्शक बने रहे। चंदननगर थाने में जब वे पहुंचे तो एक महिला एएसआई ने उनके दस्तावेज लिए और उन्हें बाहर बैठने को कहा। फिर उसने "दो घंटे इंतजार के बाद हमसे कहा गया कि अगली सुबह आओ, वरना तुम्हें बांग्लादेशी घोषित कर दिया जाएगा।"

पुलिस की भूमिका पर सवाल 

इरशाद ने बताया कि जब वे अगली सुबह थाने गए तो पुलिस ने उन्हें समझाया कि मामले को तूल न दें और कोई शिकायत दर्ज न कराएं।" अब पुलिस हम पर दबाव बना रही है कि हम यह न कहें कि कोई हमारे घर में घुसा था। लेकिन अगर हमारे दस्तावेज में कोई गड़बड़ी होती, तो पुलिस अब तक कार्रवाई कर चुकी होती।"

करगिल वॉर के पूर्व सैनिक हकीमुद्दीन

उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास 400 वर्षों से भारतीय नागरिक होने के सबूत मौजूद हैं। उन्होंने कहा- "मेरे चाचा 1971 की लड़ाई में बम विस्फोट में घायल हुए थे और उन्हें सम्मानित किया गया था। एक और चाचा 1965 के भारत-पाक युद्ध में अब्दुल हमीद के साथ लड़े थे।"

पूर्व सैनिक हकीमुद्दीन शेख का बयान

परिवार ने सामाजिक कार्यकर्ता और नेशनल कांफ्रेंस फॉर माइनॉरिटीज के अध्यक्ष राहुल डांबले से संपर्क किया, जिन्होंने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से मिलवाया। अधिकारी ने कार्रवाई का आश्वासन दिया, लेकिन तीन-चार दिन बीत जाने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पूर्व सैनिक हकीमुद्दीन शेख ने कहा, "हम 50 वर्षों से पुणे में रह रहे हैं। मेरे चाचा मोहम्मद सलीम को पुणे में रहते हुए सेना में भर्ती किया गया था। मेरे परिवार के साथ जो हुआ, वह गलत है। अगर ज़रूरत पड़ी, तो मैं खुद पुलिस से संपर्क करूंगा।"

पुलिस की सफाई 

हालांकि, जोन 4 के डीसीपी सोमैया मुंडे ने कहा कि ऐसा कोई मामला नहीं है कि 80 लोगों की भीड़ ने घर में घुसपैठ की हो। उन्होंने यह जरूर माना कि अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ अभियान के तहत पुलिस दस्तावेजों की जांच करने गई थी। "रात होने की वजह से महिलाओं को थाने नहीं बुलाया गया, केवल पुरुषों से पूछताछ की गई। किसी दस्तावेज में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई।" उन्होंने बताया कि पुलिस के पास इस पूरी जांच का वीडियो फुटेज है।
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नेशनल कांफ्रेंस फॉर माइनॉरिटीज के अध्यक्ष राहुल डांबले ने कहा कि हिंदुत्व संगठन से जुड़े लोगों ने युद्धवीर के परिवार को डराने की कोशिश की। "हमने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने की मांग की है और पुणे पुलिस आयुक्त अमितेश कुमार से मिलकर कार्रवाई की मांग करेंगे।"
यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आज भी देशभक्ति का सबूत देने वाले परिवारों को संदेह की नजर से देखा जाता है। ऐसे में सवाल उठता है। क्या भारतीयता का प्रमाण आधार कार्ड से तय होगा या उस खून से, जो इस देश की सरहदों के लिए बहाया गया?