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कंटेनर में 120 मजदूरों को बंद कर राज्य से बाहर भेज दिया गुजरात पुलिस ने

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है, इसकी एक हृदय विदारक मिसाल गुज़रात के वापी में देखने को मिली है।

मामला क्या है? 

‘द वायर’ ने अपनी एक ख़बर में कहा है कि गुजरात के वापी में पुलिस ने 120 मज़दूरों को, जिनमें बच्चे व स्त्रियाँ भी थीं, एक कंटेनर ट्रक में ज़बरन बैठा दिया और राज्य की सीमा से बाहर ट्रक ले जाने को कह दिया। ये मज़दूर राजस्थान के रहने वाले थे। ये मज़दूर कर्नाटक के बेंगलुरू से पैदल आ रहे थे।
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‘द वायर’ ने इन मज़दूरों में से एक प्रकाश  बिश्नोई से बातचीत के आधार पर ख़बर तैयार की है। बिश्नोई उस कंटेनर ट्रक में भेजे जाने वाले मजदूरों में एक थे। उन्होंने कहा, 'हम 31 मार्च को दोपहर बाद वापी पहुँचे। वहाँ पुलिस ने हमे रोक दिया और कहा कि हम आगे नहीं जा सकते। पुलिस वालों ने हमे खाने-पीने की चीजें दीं, हमने सोचा कि वे हमारा ख्याल रख रहे हैं और हमारे लिए कुछ व्यवस्था कर रहे हैं। पर शाम 7 बजे यकायक वे वहाँ पहुँचे जहां हम रुके हुए थे और हमे पीटने लगे।'
प्रकाश ने दावा किया कि बाद में पुलिस वालों ने सभी 120 लोगों को दो कंटेनरों में ज़बरन बैठा दिया और कहा कि उन्हें राजस्थान पहुँचा दिया जाएगा।

कंटेनर में बंद लोग

इन मज़दूरों का कहना है कि उन्हें राजस्थान नहीं ले जा कर वापी से 40 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र ले जाया गया। प्रकाश बिश्नोई ने ‘द वायर’ से कहा : 

'अंदर हमारा दम घुट रहा था, कुछ लोग बेहोश होने लगे थे। बच्चे रोने लगे और सांस के लिए तड़पने लगे थे। हमारे बीच ही किसी ने पता लगाया कि हमें वापस पालघर पहुँचा दिया गया है। हम घबरा गए और कंटेनर के ढक्कन पर ज़ोर-ज़ोर से लात मारने लगे। किसी तरह एक दरवाजा खुल गया और हमने ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए मजबूर कर दिया।’


प्रकाश बिश्नोई, प्रवासी मज़दूर

श्रम आयुक्त का हस्तक्षेप

इस बीच एक मज़दूर फोन पर किसी तरह मजदूर संगठन आजीविका ब्यूरो से संपर्क करने में कामयाब रहा। इस संगठन ने महाराष्ट्र के श्रम आयुक्त को इसकी जानकारी दी और महाराष्ट्र के श्रम आयुक्त ने राजस्थान सरकार और महाराष्ट्र पुलिस को पूरे मामले की जानकारी दी।
महाराष्ट्र पुलिस और राजस्थान राज्य सरकार ने प्रकाश बिश्नोई के दावों की पुष्टि कर दी है। फ़िलहाल, पालघर ज़िले के तलसारी तालुका में एक जगह 30 मजदूरों को एक शेल्टर होम में रखा गया है।
बाकी मजदूर घबरा कर वहां से कहीं चले गए हैं और पुलिस उनकी तलाश कर रही है। 

ग़रीब-पिछड़े मज़दूर

इन 120 मजदूरों में 20 बच्चे थे और 20 महिलाएं थीं। वे सभी गडिया-लोहार, भिश्ती और लबाना समुदायों के लोग थे। ये लोग राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। ये मज़दूर कर्नाटक में अलग-अलग जगह वेल्डिंग का काम करते थे। जब स्थिति बिगड़ी तो इन्हें वहाँ ले जाने वाला एजेन्ट गायब हो गया। इन्हें बकाया का भुगतान भी नहीं किया गया।  

पैदल चलने को मजबूर

जब इनके पास काम नहीं रहा और भुखमरी की स्थिति पैदा होने लगी तो ये घबरा गये। इन लोगों ने बेंगलुरू में अपने समुदाय के लोगों को एकत्रित किया और बेंगलुरू से पैदल ही चल पड़े और 80 किलोमीटर चल कर तुमकूर पहुँचे।

पुलिस की पिटाई

बेलगाम में भी पुलिस वालों ने इन लोगों को पीटा। लेकिन उन्हें इन पर दया आ गई और इन्हें छोड़ दिया। ये फिर150 किलोमीटर पैदल चले। एक ट्रक ड्राइवर ने कुछ पैसे लेकर इन्हे महाराष्ट्र की सीमा पर छोड़ दिया।
लेकिन वापी पुलिस ने इन तमाम आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उसने कहा है कि 31 मार्च को उस ज़िले में कोई मज़दूर पहुँचा ही नहीं था। पर भीलाड़ पुलिस स्टेशन ने इसकी पुष्टि की है कि मज़दूरों के एक जत्थे को वापस कर दिया गया था। पर पुलिस ने किसी तरह की ज़्यादती से इनकार किया है।
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क़मर वहीद नक़वी
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