अदालत को यह जांचना होगा कि जो प्रथा है वो प्रचलित है या नहीं, वो प्रथा कहीं दुर्भावनापूर्ण तो नहीं है। किसी बाहरी संस्था या निकाय यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि ये चीज धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। जजों को धर्म के मामले में कानूनदां नहीं बनना चाहिए।
उन्होंने तर्क दिया कि अगर यह मान भी लिया जाए कि कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत संरक्षित सांस्कृतिक प्रथा तो जरूर होगी। अगर किसी को हिजाब के नाम पर उकसाया भी जा रहा है, तो राज्य की प्राथमिकता क्या होना चाहिए - शिक्षा या फिर हिजाब विरोधियों का समर्थन? क्या हिजाब से इतना नुकसान हो रहा है कि आप इसे प्रतिबंधित करके लड़कियों को शिक्षा से वंचित कर दें।