दक्षिणपंथी इतिहास को किस शातिर तरीके से बदलते हैं, कर्नाटक में टीपू सुल्तान की हत्या को लेकर फैलाए गए झूठ का पर्दाफाश होने से साफ हो गया है। कर्नाटक में रंगायन नामक संस्था के डायरेक्टर के इस्तीफे के बाद सारा सच सामने आ गया है। जिन्होंने स्वीकार किया है कि टीपू सुल्तान के दोनों हत्यारों की कहानी काल्पनिक है।
स्वतंत्रता सेनानी और मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान का इस्तेमाल एक दशक से अधिक समय से कर्नाटक में हिन्दू-मुस्लिम वोटों को बांटने के लिए किया जाता रहा है। इस बार भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इसका इस्तेमाल हुआ। लेकिन इस बार बीजेपी और आरएसएस बहुत संगठित तरीके से मतदाताओं को धर्म के आधार पर भड़काने और बांटने के लिए दो नए कैरेक्टर (पात्र) भी लेकर आई। ये थे - उड़ी गौड़ा और नन्जे गौड़ा। ये दोनों नाम इस बार दक्षिणपंथियों की बातचीत, रैली, किताब, नाटक आदि में वोक्कालिगा हीरो के रूप में स्थापित किए जाने लगे। दक्षिणपंथी विचारकों, रंगकर्मियों, नेताओं ने जल्द ही दावा कर दिया कि दरअसल इन्हीं दोनों वोक्कालिगा हीरो उड़ी गौड़ा और नन्जे गौड़ा ने टीपू सुल्तान की हत्या की थी। बहुत जल्द ये काल्पनिक कहानी मुसलमानों के खिलाफ वोक्कालिगा को खड़ा करने, भड़काने और राजनीतिक लाभ पाने में भाजपा की मदद करने लगी। लेकिन फौरन ही ये सवाल भी उठ खड़े हुए कि आखिर ये दो पात्र कौन हैं और क्या वाकई इनका अस्तित्व भी था।
इसकी पड़ताल शुरू हुई तो जल्द ही यह बात सामने आ गई कि दक्षिणपंथी विचारों के रंगकर्मी अडांडा करिअप्पा लिखित नाटक में पहली बार इन दो पात्रों को वोक्कालिगा हीरो बनाकर पेश किया गया है। नाटक का नाम था- टीपू निजाकनासुगलु (टीपू के असली सपने)। नाटक का मंचन पहली बार नवंबर 2022 में मैसूरु के भूमिगीता में किया गया और उसी कहानी के साथ एक किताब भी प्रकाशित की गई। दरअसल, करिप्पा ने यह नाटक महान रंगकर्मी और बॉलीवुड अभिनेता गिरीश कर्नाट लिखित टीपू सुल्तान कानाडा कनासु (टीपू सुल्तान के सपने) के जवाब में था। गिरीश कर्नाड के इस नाटक को आजतक किसी इतिहासकार ने चुनौती नहीं दी।
बहरहाल, रंगकर्मी अडांडा करिअप्पा को बोम्मई सरकार ने सरकारी संस्था रंगायन का 2019 से डायरेक्टर बना रखा था। रंगायन के जरिए इतिहास को बदलने की कोशिश लंबे समय से की जा रही थी और रंगकर्मी करिप्पा भाजपा के ताकतवर हथियार बन गए। टीपू सुल्तान के काल्पनिक हत्यारे उड़ी गौड़ा और नन्जे गौड़ा के बारे में किसी भाजपा नेता ने पहले कोई बयान नहीं दिया था। करिप्पा द्वारा लिखित नाटक रंगायन के खर्च पर पूरे कर्नाटक में खेला जाने लगा। लोग इन दोनों पात्रों के बारे में तमाम बातें करने लगे। अभी जब कर्नाटक में बीजेपी हार गई तो करिप्पा ने भी रंगायन से इस्तीफा दे दिया। हालांकि इनका इस्तीफा लंबे समय से राज्य के तमाम इतिहासकार और जागरूक लोग इस आधार पर मांग रहे थे कि इन्होंने दो कथित वोक्कालिगा हीरो के जरिए झूठ फैलाया है। लेकिन बीजेपी सरकार ने करिप्पा से कभी इस्तीफा नहीं मांगा।
टीपू सुल्तान के बारे में ढेरों किताबें, दस्तावेज और सामग्री भारत में और ब्रिटेन में मौजूद है। जो यह बताने के लिए काफी है कि टीपू सुल्तान ब्रिटिश सेना से मुकाबला करते हुए शहीद हुए थे। इतिहास में दर्ज है कि 1798-99 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान टीपू को अंग्रेजों ने मार डाला था। अंग्रेजों ने हैदराबाद के मराठों और निज़ाम के साथ मिलकर श्रीरंगपट्टनम पर हमला किया। टीपू के दरबार में एक मंत्री मीर सादिक का इस्तेमाल करते हुए, वे टीपू को हराने और मारने में कामयाब रहे। लेकिन दक्षिणपंथी इतिहासकारों की मनगढ़ंत के अनुसार, मैसूर के पूर्व शासक को दो वोक्कालिगा सरदारों ने 'मैसूर वोडेयार को धोखा देने' के लिए मार डाला था। एक इतिहासकार का मानना है कि ये दोनों वोक्कालिगा हीरो टीपू के पिता हैदर अली की सेना में थे। लेकिन ज्यादातर इतिहासकारों का कहना है कि उड़ी और नन्जे गौड़ा का इतिहास की किताबों में कहीं भी उल्लेख नहीं है।
उड़ी गौड़ा और नन्जे गौड़ा का पहला राजनीतिक उल्लेखः जब पीएम मोदी मैसूरु-बेंगलुरु राजमार्ग का उद्घाटन करने के लिए कर्नाटक गए थे, तो मार्ग पर चार मेहराब बनाए गए थे। उनमें से एक का नाम केम्पे गौड़ा के नाम पर रखा गया था, जो विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख थे, जिन्हें बेंगलुरु के विकास का श्रेय दिया जाता है, दूसरे का नाम मैसूर के पूर्व शासक कृष्णराज वोडेयार के नाम पर और तीसरे का नाम सर एम विश्वेश्वरैया, मैसूर के पूर्व दीवान और भारत के अग्रणी इंजीनियरों के रूप में था। चौथी मेहराब में उड़ी गौड़ा और नन्जे गौड़ा के नाम थे। कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार समेत तमाम कांग्रेसी नेताओं ने चौथी मेहराब पर आपत्ति की और यह मुद्दा विवादास्पद बन गया। सरकार दबाव में आ गई तो मेहराब को हटाकर बदल दिया गया। इस तरह कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले कांग्रेसियों की सजगता से उड़ी और नन्जे गौड़ा को स्थापित करने की सरकारी कोशिश नाकाम हो गई।
लेकिन असली काम रंगायन के पूर्व निदेशक अडांडा करिअप्पा द्वारा लिखित नाटक टीपू निजाकनासुगलु ने कर दिया था। इस नाटक को अदालत में भी चुनौती दी गई। जिला वक्फ बोर्ड समिति के पूर्व अध्यक्ष बीएस रफीउल्ला ने एक रिट याचिका दायर कर नाटक और पुस्तक पर रोक लगाने की मांग की और आरोप लगाया कि इसमें "इतिहास से कोई समर्थन नहीं मिलता और नाटक व किता में गलत जानकारी शामिल है। इससे मुस्लिम समुदाय की भावना को चोट पहुंच रही है।
रंगायन के पूर्व निदेशक अडांडा करिअप्पा
प्रोफेसर एनवी नरसिम्हा, एक अनुभवी इतिहासकार जो मैसूर साम्राज्य के इतिहास में माहिर हैं, इससे सहमत हैं। उनका कहना है कि महीनों से वह इन दोनों नामों के बारे में जानने के लिए किताबों का सहारा ले रहे हैं। इन दो काल्पनिक पात्रों के बारे में इतिहास में कोई संदर्भ नहीं है। रंगायन के एक पूर्व निदेशक अडांडा करियप्पा ने एक नाटक लिखा था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि इन पात्रों ने टीपू सुल्तान को मार डाला था। सब बकवास है। क्या वह एक इतिहासकार है? उन्होंने इतिहास का बिल्कुल भी अध्ययन नहीं किया है।” नरसिम्हा कहते हैं दशकों से सभी इतिहास की किताबों में दावा किया गया है कि टीपू चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में मारे गए थे, जब ब्रिटिश सेना के गवर्नर जनरल वेलेस्ली ने टीपू के खिलाफ लड़ने के लिए मराठों और हैदराबाद के निज़ाम पर जीत हासिल की थी। मीर सादिक नाम का टीपू की सेना में एक गद्दार था। उसने टीपू को मारने में मदद की थी, उसे मैसूर राज्य की पेशकश की गई थी।