अमेरिका ने भारत को जेवलिन और एक्सकैलिबर हथियारों की बिक्री को मंज़ूरी दी है। क्या यह निर्णय ट्रंप के दबाव का नतीजा है? क्या यह रूस-भारत रक्षा संबंधों पर असर डालेगा?
नरेंद्र मोदी, व्लादिमीर पुतिन और डोनाल्ड ट्रंप।
रूस से खरीदारी पर ब्रेक और अमेरिका से सौदे में तेजी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लगातार दबावों के बाद तो इसमें बेहद तेज़ी आ गई। अमेरिका ने भारत को 92.8 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 825 करोड़ रुपये के दो रक्षा सौदों को मंजूरी दी है। इसमें जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइलें और एक्सकैलिबर प्रिसिजन आर्टिलरी प्रोजेक्टाइल्स शामिल हैं। इधर, रिलायंस ने रूस से तेल की ख़रीद बंद कर दी है। कुछ दिन पहले ही एक साल के लिए अमेरिका से बड़ी मात्रा में एलपीजी ख़रीदने का सौदा हुआ है। अब आशंका जताई जा रही है कि अगले कुछ दिनों में व्यापार समझौते के तहत अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए भारतीय बाज़ार को खोला जा सकता है। आर्थिक मामलों के जानकार भारतीय किसानों के लिए बेहद घातक होने की आशंका जताते रहे हैं।
यह सब तब हो रहा है जब भारत-अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर लगातार दबाव बनाते रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने भारत के ख़िलाफ़ सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ़ और 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ रूस से तेल और हथियार ख़रीदने के लिए लगाए हैं। अब 50% के इस टैरिफ से बचने के लिए भारत को अमेरिकी हथियारों की खरीद बढ़ाने का दबाव बताया जा रहा है। सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि यह सौदा रूस से हथियारों की निर्भरता कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन क्या यह भारतीय हितों की क़ीमत पर हो रहा है? और क्या व्यापार समझौते के बदले भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों के बाजार को खोलेगा?
जेवलिन, एक्सकैलिबर ख़रीद की मंजूरी
सबसे ताज़ा मामला जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइलें और एक्सकैलिबर प्रिसिजन आर्टिलरी प्रोजेक्टाइल्स की ख़रीद का है। अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से जारी बयान के अनुसार, यह मंजूरी भारत की मौजूदा और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की क्षमता को मज़बूत करेगी। रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी यानी डीएससीए ने कहा है कि ये हथियार अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों को समर्थन देंगे, साथ ही भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करेंगे।
डीएससीए ने भारत को इंडो-पैसिफिक और दक्षिण एशिया में राजनीतिक स्थिरता, शांति और आर्थिक प्रगति के लिए अहम ताक़त क़रार दिया है। एजेंसी का यह भी कहना है कि भारत को इन उपकरणों को अपनी सशस्त्र सेनाओं में आत्मसात करने में कोई कठिनाई नहीं होगी।जेवलिन व एक्सकैलिबर कितना अहम?
पहला सौदा 45.7 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 406 करोड़ रुपये का है, जिसमें जेवलिन मिसाइल सिस्टम शामिल है। इसमें 100 एफजीएम-148 जेवलिन राउंड्स, एक 'फ्लाई-टू-बाय' मिसाइल और 25 लाइटवेट कमांड लॉन्च यूनिट्स का प्रावधान है। जेवलिन मिसाइलें टैंक-रोधी हमलों के लिए अत्याधुनिक हैं, जो भारतीय सेना को सीमा पर तैनाती के दौरान दुश्मन के कवचयुक्त वाहनों को नष्ट करने में सक्षम बनाएंगी।
दूसरा सौदा 47.1 मिलियन डॉलर यानी 418 करोड़ रुपये का है, जिसमें अधिकतम 216 एम982ए1 एक्सकैलिबर टैक्टिकल प्रोजेक्टाइल्स शामिल हैं। एक्सकैलिबर प्रोजेक्टाइल्स जीपीएस-गाइडेड हैं, जो तोप की सटीकता को बढ़ाते हैं और लंबी दूरी पर निशाना साधने में सक्षम हैं। ये हथियार भारतीय थल सेना की आर्टिलरी यूनिट्स को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, खासकर चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण सीमाओं पर।
ट्रंप का दबाव
यह सौदा फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा के नौ महीने बाद आया है, जहां मोदी और ट्रंप ने रक्षा संबंधों को मजबूत करने का संकल्प लिया था। अक्टूबर में दोनों देशों ने अगले 10 वर्षों के लिए रक्षा सहयोग विस्तार के लिए एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। पर्दे के पीछे ट्रंप का दबाव साफ़ नज़र आता है। ट्रंप ने भारत को रूस से हथियार खरीदने के बजाय अमेरिकी उत्पादों को प्राथमिकता देने की सलाह दी थी।
रूस से ख़रीद आधी हुई
रूस लंबे समय से भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है, लेकिन 2017 से 2023 के बीच इसकी हिस्सेदारी 62% से घटकर 34% रह गई है। इसी अवधि में अमेरिका के साथ भारत का रक्षा व्यापार लगभग शून्य से बढ़कर 20 अरब डॉलर हो गया, जिससे अमेरिका अब रूस और फ्रांस के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बन गया है। जानकारों का मानना है कि इसमें तेज़ी से बदलाव यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद आया। लेकिन सवाल उठता है कि क्या रूसी तेल और हथियार खरीदने पर 25% अतिरिक्त टैरिफ के दंड वाला ट्रंप का दबाव भारत को मजबूर तो नहीं कर रहा?
टैरिफ से बचाव और कृषि बाजार का सौदा?
यह सौदा अमेरिका-भारत व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के प्रयासों के बीच आया है, जो ट्रंप द्वारा लगाए गए 50% टैरिफों से उपजे तनावों को कम करने का हिस्सा लगता है। इन टैरिफों में रूसी तेल और हथियारों की खरीद पर 25% टैरिफ़ का दंड शामिल है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा ज़रूरतों को प्रभावित कर रही है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि ये सौदे न केवल रक्षा सहयोग बढ़ाएंगे, बल्कि द्विपक्षीय व्यापार को संतुलित करने में मदद करेंगे।हालाँकि, व्यापार वार्ताओं में एक बड़ा सवाल है: क्या भारत अमेरिका के सोयाबीन, मकई और डेयरी जैसे कृषि उत्पादों के लिए अपना बाजार खोलेगा? अमेरिका लंबे समय से भारत की उच्च आयात शुल्कों की शिकायत करता रहा है। ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि रक्षा सौदों के बदले कृषि बाजार में छूट मिल सकती है, जो भारत के किसानों और स्थानीय उद्योगों के लिए चुनौती पैदा कर सकता है। भारत की ओर से कहा जा रहा है कि वार्ताएं संवेदनशील हैं और कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। लेकिन यदि टैरिफ़ से बचने के लिए ऐसा होता है तो यह 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का एक और उदाहरण होगा, जहाँ भारत की संप्रभुता पर सवाल उठ सकते हैं।
संतुलन या निर्भरता?
यह सौदा भारत की रक्षा आधुनिकीकरण यात्रा को गति देगा, लेकिन रूस की कीमत पर। रूस अभी भी एस-400 सिस्टम जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स का आपूर्तिकर्ता है, और इसकी कमी से भारतीय सेना प्रभावित हो सकती है। दूसरी ओर, अमेरिका के साथ बढ़ते संबंध इंडो-पैसिफिक में चीन के खिलाफ क्वाड गठबंधन को मजबूत करेंगे। लेकिन ट्रंप के दबाव से उपजे ये सौदे क्या वास्तव में पारस्परिक लाभ के हैं, या अमेरिकी हितों के पक्ष में हैं? अमेरिका से बढ़ते रक्षा सौदे मोदी सरकार के 'आत्मनिर्भर भारत' के नारे पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं।