राज्यसभा में गुरुवार को वंदे मातरम पर बहस के दौरान बीजेपी के अध्यक्ष और सदन के नेता जेपी नड्डा और सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे में तीखी नोक-झोंक हुई। वंदे मातरम पर बहस हो रही थी, लेकिन नड्डा पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर हमलावर थे। खड़गे ने तंज कसते हुए पूछा कि बहस वंदे मातरम पर है या नेहरू पर। नड्डा ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस की नीतियों को निशाना बनाते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस ने इतिहास में कई समझौते किए, जिससे देश को नुक़सान पहुँचा। इस पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पलटवार किया और बहस के विषय पर सवाल उठाया।

वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर हो रही बहस के दौरान नड्डा ने कहा कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम के कुछ छंदों को हटा दिया था। नेहरू पर हमला करते हुए उन्होंने कहा, "सबसे पहले, आपने मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम के छंदों को हटा दिया। जून 1947 में आपने भारत को 'खंडित' आज़ादी दी और जिन्ना के सपनों को साकार किया। उसके बाद आपने पाकिस्तान की गुरिल्ला सेनाओं के सामने पीओके को 'समर्पित' कर दिया, 'खंडित' कश्मीर लिया और फिर अनुच्छेद 370 लाए... देश समझौतों से नहीं चलता - यह हमारी विचारधारा है। यह इतिहास की सच्चाइयों और बिना शर्त राष्ट्रीय भावनाओं को ध्यान में रखकर चलता है। वंदे मातरम हमारे राष्ट्रवाद से जुड़ा गीत है। इसे वही स्थान मिलना चाहिए जो हमने राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को दिया है।"
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नड्डा के इन आरोपों ने सदन में हंगामा खड़ा कर दिया। उन्होंने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पार्टी ने देश की एकता को कमजोर करने वाले फ़ैसले लिए, जैसे कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके को 'समर्पित' करना और अनुच्छेद 370 को लागू करना। नड्डा ने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम राष्ट्रवाद का प्रतीक है और इसे राष्ट्रीय महत्व दिया जाना चाहिए।

इस पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कड़ा ऐतराज जताया। खड़गे ने कहा, 'क्या चर्चा का विषय वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ है या जवाहरलाल नेहरू पर केंद्रित है?' उन्होंने नड्डा के बयान को बहस से भटकाने वाला करार दिया और कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका का बचाव किया। खड़गे ने कहा कि नेहरू ने देश की आजादी और एकता के लिए अहम योगदान दिया, और ऐसे आरोप राजनीतिक लाभ के लिए लगाए जा रहे हैं।
यह बहस वंदे मातरम के ऐतिहासिक महत्व पर केंद्रित थी, लेकिन जल्द ही नेहरू और कांग्रेस की नीतियों पर केंद्रित हो गई। विपक्षी सदस्यों ने नड्डा के बयान पर आपत्ति जताई, जबकि सत्तापक्ष के सदस्यों ने उनका समर्थन किया। सदन में कुछ देर के लिए हंगामा हुआ, लेकिन स्पीकर ने स्थिति को संभाला। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकती है, जहां इतिहास और राष्ट्रवाद के मुद्दे अक्सर उठाए जाते हैं।

कांग्रेस ने इस हमले को 'राजनीतिक द्वेष' करार दिया है, जबकि बीजेपी ने कहा कि यह इतिहास की सच्चाई को सामने लाने का प्रयास है।

ई-सिगरेट पीने के आरोप पर लोकसभा में हंगामा

लोकसभा में गुरुवार को एक नया विवाद खड़ा हो गया जब बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी के सदस्यों पर सदन के अंदर ई-सिगरेट पीने का आरोप लगाया। इस आरोप से सदन में कुछ देर के लिए शोर-शराबा हुआ, और दोनों पक्षों के सदस्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप हुए। स्पीकर ओम बिरला ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि अगर लिखित शिकायत मिली तो कार्रवाई की जाएगी।
प्रश्नकाल के दौरान ठाकुर ने स्पीकर से सदन के नियमों पर सवाल किया। उन्होंने कहा, 'पूरे देश में ई-सिगरेट पर प्रतिबंध है। क्या सदन में इसकी अनुमति है?' इसके बाद ठाकुर ने आरोप लगाया कि टीएमसी के सदस्य सदन में बैठकर ई-सिगरेट पी रहे हैं। उन्होंने कहा, 'वे सदन में बैठकर इसे पी रहे हैं... आपको इसकी जाँच करानी चाहिए।'

ठाकुर के इन आरोपों से सदन में हंगामा हो गया। टीएमसी सदस्यों ने इसका कड़ा विरोध किया और पलटवार में कुछ आरोप लगाए। बीजेपी के कुछ सांसदों ने भी टीएमसी पर सदन के नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए शोर मचाया। स्पीकर बिरला ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, 'मैं सदस्यों से फिर अनुरोध करता हूं कि सदन के नियमों और परंपराओं का पालन किया जाए। अगर ऐसा कोई मुद्दा मेरे संज्ञान में आता है, तो कार्रवाई की जाएगी।'
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ठाकुर ने आरोप को दोहराया, लेकिन स्पीकर ने उन्हें लिखित शिकायत देने की सलाह दी। टीएमसी सदस्यों ने इसे 'बेबुनियाद' आरोप बताया और कहा कि यह विपक्ष को बदनाम करने की साजिश है।

बता दें कि 2019 में केंद्र सरकार ने ई-सिगरेट के उत्पादन, आयात, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों ने इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन) प्रतिबंध विधेयक, 2019 पारित किया था। यह प्रतिबंध स्वास्थ्य जोखिमों को ध्यान में रखकर लगाया गया था।

यह घटना संसद में अनुशासन और नियमों के पालन पर सवाल उठाती है। राजनीतिक दलों के बीच बढ़ते तनाव के बीच ऐसे विवाद संसद की कार्यवाही को प्रभावित कर रहे हैं। स्पीकर ने मामले की जांच का आश्वासन दिया है, लेकिन अभी तक कोई औपचारिक कार्रवाई नहीं हुई है।