राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 24 नवंबर को जस्टिस सूर्यकांत को भारत के 53वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ दिलाई। वह सीजेआई बी.आर. गवई की जगह लेंगे और 9 फरवरी, 2027 तक इस पद पर रहेंगे। उनके कार्यकाल के दौरान कुछ महत्वपूर्ण फैसले सामने आएंगे।
भारत के नए चीफ जस्टिस सूर्यकांत। उन्होंने 53वें सीजेआई के रूप में शपथ ली है।
जस्टिस सूर्य कांत ने सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में पदभार ग्रहण किया। राष्ट्रपति भवन में आयोजित भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी और कई विदेशी राजनयिकों ने शिरकत की। जस्टिस कांत का कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक चलेगा, जो लगभग 14 महीनों का होगा। वे जस्टिस बी आर गवई का स्थान ले रहे हैं।
जस्टिस सूर्य कांत का सफर हरियाणा के एक सामान्य परिवार से शुरू होकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है। 1981 में हिसार के गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की। हिसार जिला अदालत में वकालत शुरू करने के बाद 1985 में वे चंडीगढ़ चले गए, जहां पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में संवैधानिक, सेवा और सिविल मामलों में विशेषज्ञता हासिल की। मार्च 2001 में उन्हें वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया गया।
हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता के रूप में 7 जुलाई 2000 को नियुक्ति पाने वाले जस्टिस कांत की नियुक्ति ने कानूनी हलकों में खासी चर्चा बटोरी थी। 9 जनवरी 2004 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बने। 5 अक्टूबर 2018 को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर पदस्थापित हुए और 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट में उनके कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक फैसले आए हैं। वे उस बेंच का हिस्सा थे जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को बरकरार रखा। एक संविधान पीठ के फैसले में उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य विधानसभाओं के विधेयकों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा कार्यवाही के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। इसके अलावा, औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून को निलंबित रखने और नई एफआईआर दर्ज न करने के आदेश देने वाली पीठ में भी उनकी भूमिका रही। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बिल्डरों, बैंकों और वित्तीय संस्थानों के कथित गठजोड़ की सीबीआई जांच के निर्देश देने वाली पीठ के प्रमुख सदस्य रहे। वर्तमान में वे पूरे देश में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) मामले की सुनवाई कर रहे हैं। जिसमें 26 नवंबर को यह मामला आने वाला है।
जस्टिस कांत के कार्यकाल में संवैधानिक कानून, साइबर कानून, आपराधिक न्याय व्यवस्था और चुनाव की अखंडता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले आने की उम्मीद है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि उनके लंबे कार्यकाल से हाई प्रोफाइल मामलों पर गहन विचार-विमर्श संभव है। उनके सामने देश की सबसे बड़ी अदालत में 90,000 से अधिक लंबित मामले हैं। जिसकी अक्सर चर्चा होती है।
शपथ लेने से पहले मीडिया से बातचीत में सीजेआई सूर्य कांत ने लंबित मामलों को सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया और कहा कि वे कई संविधान पीठों (5, 7 या 9 जजों वाली) का गठन करेंगे ताकि वर्षों से अटके संवैधानिक सवालों का निपटारा हो सके। उन्होंने मध्यस्थता (mediation) को “गेम-चेंजर” बताया और बैच केसेज (एक साथ जुड़े सैकड़ों मामले) के तेज निपटारे पर जोर दिया।
सीजेआई सूर्य कांत ने साफ कहा है कि वे विदेशी फैसलों के बजाय भारतीय संविधान और परंपराओं पर आधारित न्याय देंगे तथा एआई का सावधानीपूर्वक उपयोग कर केस मैनेजमेंट को तेज करेंगे।
कुछ महत्वपूर्ण फैसले जो उनके कार्यकाल में आएंगे
- राजद्रोह कानून (धारा 124A दंड संहिता)ः औपनिवेशिक राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता पर चुनौती। 2022 में जस्टिस कांत वाली पीठ ने सभी राजद्रोह FIR पर रोक लगाई थी। अब अंतिम फैसला आने की संभावना।
- रोहिंग्या शरणार्थी मामलेः रोहिंग्या मुसलमानों को “शरणार्थी” मानें या “अवैध घुसपैठिया”? अनिश्चितकालीन हिरासत वैध? जुलाई 2025 में जस्टिस कांत की पीठ ने सुनवाई के लिए स्वीकार किया। जल्द सुनवाई संभावित।
- वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधताः गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने और सरकारी नियंत्रण के प्रावधानों पर चुनौती। संविधान पीठ में सुनवाई होगी। धार्मिक स्वायत्तता का बड़ा सवाल है।
- बिहार सहित पूरे देश में SIR और मतदाता सूचीः 2025 बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची संशोधन से लाखों लोगों के नाम कटने का डर था। वो सही साबित हुआ। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला बाकी। जस्टिस कांत पहले भी इसकी निगरानी कर चुके हैं। तत्काल सुनवाई की संभावना।
- तलाक-ए-हसन और ट्रिपल तलाक से जुड़े मामलेः मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक-ए-हसन की स्थिति और सुप्रीम कोर्ट का रुख। यह मामला भी सीजेआई सूर्यकांत की बेंच में पहले से ही है। भारत के मुसलमानों से जुड़े इस फैसले से नए हालात पैदा होंगे।
- राज्यपाल/राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर देरीः तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों के विधेयकों को लटकाना या राष्ट्रपति के पास भेजना। नवंबर 2025 में विशेष संदर्भ सूचीबद्ध। संघवाद (फेडरलिज्म) पर अहम फैसला संभावित।
इनके अलावा साइबर कानून, डेटा प्राइवेसी (पेगासस मामला आगे बढ़ सकता है), आपराधिक न्याय सुधार और “स्वदेशी न्यायशास्त्र” (भारतीय मिसालों को प्राथमिकता) जैसे मुद्दे भी उनके कार्यकाल की पहचान बन सकते हैं।
न्यायिक विशेषज्ञों का मानना है कि 15 महीने का अपेक्षाकृत लंबा कार्यकाल होने से कई जटिल संवैधानिक मामले गहराई से निपटाए जा सकेंगे और भारतीय न्यायपालिका एक नया मोड़ ले सकती है।