इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद संसद के मानसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। उधर, जस्टिस वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उस जांच समिति की रिपोर्ट और इसके आधार पर की गई महाभियोग की सिफारिश को चुनौती दी है जिसमें समिति ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया था। इसके बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी।

यह मामला तब शुरू हुआ जब 14 मार्च को यशवंत वर्मा के दिल्ली के तुगलक क्रीसेंट स्थित सरकारी बंगले में आग लग गई थी। आग बुझाने के लिए दमकल विभाग और पुलिस पहुँची और वहाँ से भारी मात्रा में जली हुई नकदी बरामद की गई। जाँच में पता चला कि ये नकदी 500 रुपये के नोटों की थी और यह बड़ी मात्रा थी। जस्टिस वर्मा ने दावा किया कि उन्हें इस नकदी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और यह उनके या उनके परिवार द्वारा नहीं रखी गई थी। उन्होंने इसे उनके ख़िलाफ़ साज़िश बताया।
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इस घटना के बाद तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने 22 मार्च को एक तीन सदस्यीय जाँच समिति बनाई, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थे। इस समिति ने 55 गवाहों के बयान और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के आधार पर अपनी रिपोर्ट में कहा कि जस्टिस वर्मा के स्टोररूम में नकदी थी और वह इसका कोई विश्वसनीय जवाब नहीं दे पाए कि यह नकदी कहाँ से आई। समिति ने इसे गंभीर कदाचार माना और उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की।

जस्टिस वर्मा का सुप्रीम कोर्ट में पक्ष

जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जाँच समिति की रिपोर्ट को खारिज करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि समिति ने उन्हें अपनी बात रखने का पूरा मौक़ा नहीं दिया और बिना ठोस सबूतों के निष्कर्ष निकाले। उनकी याचिका में दावा किया गया है कि यह प्रक्रिया उनके संवैधानिक अधिकारों और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन करती है। जस्टिस वर्मा ने यह भी कहा कि समिति ने उन पर यह साबित करने का दबाव डाला कि नकदी उनकी नहीं थी।

जस्टिस वर्मा ने 11 साल के अपने करियर का हवाला देते हुए कहा कि उनका रिकॉर्ड बेदाग रहा है और इस मामले में उनके ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं है।

जस्टिस वर्मा को सीजेआई ने इस्तीफा देने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने इसे 'अनुचित' बताकर ठुकरा दिया। इसके बाद उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उन्हें कोई न्यायिक काम नहीं सौंपा गया है।

लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव

संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 12 अगस्त 2025 तक चलेगा। इसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने की संभावना है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज को हटाने का अधिकार संसद के पास है। यह सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई से अलग है।' रिजिजू ने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत शुरू की है ताकि इस मामले में सहमति बनाई जा सके। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार का मामला होने के कारण इसे राजनीतिक नहीं बनाया जाना चाहिए।
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जजेज (इनक्वायरी) एक्ट 1968 के तहत, महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए। अगर यह प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है तो लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा सभापति तीन सदस्यीय जांच समिति बनाएंगे, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, किसी हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होंगे। यदि यह समिति जज को दोषी पाती है तो संसद में इस पर बहस होगी और दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश देंगे। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सरकार इस प्रक्रिया को मानसून सत्र में ही पूरा करने की कोशिश में है। विपक्षी दलों ने भी इस मामले में सरकार का समर्थन करने का भरोसा दिया है।

जस्टिस वर्मा के मामले में पहले क्या हुई कार्रवाई?

जस्टिस वर्मा के घर में नकदी मिलने के बाद 20 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने इस मामले की प्रारंभिक जाँच की थी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपनी समिति बनाई। 10 गवाहों ने जाँच में जली हुई नकदी देखने की बात कही और समिति ने इसे पुख्ता सबूत माना।
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जस्टिस वर्मा को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बात रखने का मौक़ा दिया था, लेकिन समिति ने उनके जवाब को असंतोषजनक माना। इसके बाद तत्कालीन सीजेआई खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महाभियोग की सिफारिश की।

महाभियोग प्रक्रिया में क्या होगा?

जस्टिस वर्मा को महाभियोग प्रक्रिया के दौरान तीन मौके मिलेंगे अपनी बात रखने के लिए-
  • संसद द्वारा बनाई गई जाँच समिति के सामने।
  • संसद में महाभियोग प्रस्ताव पर बहस के दौरान।
  • अगर प्रस्ताव पारित हो जाता है तो राष्ट्रपति के समक्ष।
अगर जस्टिस वर्मा इस्तीफा दे देते हैं तो वे अपने रिटायरमेंट लाभ बचा सकते हैं, लेकिन अगर संसद उन्हें हटा देती है तो वे ये लाभ खो देंगे। भारत के इतिहास में अभी तक किसी जज को महाभियोग के ज़रिए हटाया नहीं गया है। 1993 में जस्टिस वी. रामास्वामी और 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाए गए थे, लेकिन दोनों ने इस्तीफा दे दिया था।