कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर मनरेगा को कमजोर करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मनरेगा में कटौती करना और इसको लागू करने की प्रक्रिया में बाधा डालना संविधान के ख़िलाफ़ अपराध है। खड़गे ने दावा किया कि मोदी सरकार गरीबों की जीवन-रेखा मनरेगा को तड़पा-तड़पा कर ख़त्म करने की कवायद में जुटी है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने बयान में खड़गे ने कहा, "मोदी सरकार ने मनरेगा के ख़र्च को वर्ष के पहले छह महीनों के लिए 60% तक सीमित कर दिया है। यह योजना संविधान के तहत 'काम का अधिकार' सुनिश्चित करती है और इसमें कटौती करना संविधान का उल्लंघन है।" उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की नीतियां गरीब विरोधी हैं और मनरेगा को धीरे-धीरे ख़त्म करने की साज़िश रची जा रही है। उन्होंने इस पर मोदी सरकार से पाँच सवाल किए हैं।
खड़गे के पाँच सवाल
- क्या ऐसा मोदी सरकार केवल इसलिए कर रही है क्योंकि वो गरीबों की जेब से क़रीब 25,000 करोड़ रुपये छीनना चाहती है, जो कि हर साल, साल के अंत तक, डिमांड ज़्यादा होने पर उसे अगले वित्तीय वर्ष में अलग से ख़र्च करने पड़ते हैं?
- चूंकि मनरेगा एक माँग आधारित योजना है, इसलिए यदि आपदाओं या प्रतिकूल मौसम की स्थिति में पहली छमाही के दौरान मांग में वृद्धि होती है तो क्या होगा? क्या ऐसी सीमा लागू करने से उन गरीबों को नुक़सान नहीं होगा जो अपनी आजीविका के लिए मनरेगा पर निर्भर हैं?
- सीमा पार हो जाने पर क्या होगा? क्या राज्य मांग के बावजूद रोज़गार देने से इनकार करने के लिए मजबूर होंगे या श्रमिकों को समय पर भुगतान के बिना काम करना होगा?
- क्या ये सच नहीं कि एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, केवल 7% परिवारों को वादा किए गए 100 दिन का काम मिल पाया है? -(लिब टेक, 21 मई तक)। क़रीब 7 करोड़ पंजीकृत वर्करों को मनरेगा से AADHAAR Based Payment की शर्त लगा बाहर क्यों किया गया?
- 10 सालों में मनरेगा बजट का पूरे बजट के हिस्से में सब से कम आवंटन क्यों किया गया? ग़रीब विरोधी मोदी सरकार, मनरेगा मज़दूरों पर जुल्म ढाने पर क्यों उतारू है?
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने मांग की कि मनरेगा श्रमिकों को प्रतिदिन 400 रुपये की मजदूरी दी जाए और सालाना कम से कम 150 दिनों का रोजगार सुनिश्चित किया जाए।
कांग्रेस अध्यक्ष ने मनरेगा को ग्रामीण भारत की रीढ़ बताते हुए कहा कि यह योजना ग़रीबों के लिए आर्थिक सुरक्षा और आजीविका का प्रमुख स्रोत है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने तकनीक और आधार के नाम पर श्रमिकों को योजना से बाहर कर दिया है। खड़गे ने कहा, 'यह गरीबों के साथ धोखा है। मनरेगा को कमजोर करके सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है।'
उन्होंने कहा, 'मनरेगा पर ख़र्च रोकने की कुल्हाड़ी, हर ग़रीब के जीवन पर मोदी सरकार द्वारा किया गया गहरा आघात है! कांग्रेस पार्टी इसका घोर विरोध करेगी।'
तीन चरणों में ख़त्म करने की साज़िश?
कांग्रेस ने दावा किया कि सरकार ने मनरेगा को ख़त्म करने के लिए तीन चरणों की रणनीति अपनाई है। पहला, आधार-आधारित भुगतान प्रणाली के जरिए लाखों श्रमिकों के जॉब कार्ड हटाना; दूसरा, बजट में भारी कटौती करना; और तीसरा, बकाया भुगतान के बाद बजट की कमी के कारण काम बंद करना। खड़गे ने इसे 'मनरेगा को तड़पा-तड़पा कर खत्म करने की कवायद' क़रार दिया।
बीजेपी ने खड़गे के आरोपों को निराधार और राजनीति से प्रेरित बताया है। इसने कहा है कि मोदी सरकार ने मनरेगा के लिए पर्याप्त फंड आवंटित किए हैं और इस योजना को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए तकनीकी सुधार किए हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि कांग्रेस शासित राज्यों में मनरेगा फंड का दुरुपयोग हुआ है, जिसे केंद्र सरकार ने रोका है।
खड़गे का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब विपक्षी दल केंद्र सरकार पर ग्रामीण विकास और सामाजिक कल्याण योजनाओं को कमजोर करने का आरोप लगा रहे हैं।
क़रीब दो महीने पहले राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने कहा था, 'मनमोहन सिंह सरकार का यह ऐतिहासिक क़ानून करोड़ों ग्रामीण गरीबों के लिए जीवन रेखा रहा है। यह चिंताजनक है कि बीजेपी सरकार ने इसे व्यवस्थित रूप से कमजोर किया है।' उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के लिए बजट आवंटन 86000 करोड़ पर स्थिर है, जो जीडीपी के प्रतिशत के हिसाब से पिछले 10 सालों में सबसे कम है। महंगाई को ध्यान में रखते हुए हालिया केंद्रीय बजट में यह राशि वास्तव में 4000 करोड़ कम हो गई है। इसके अलावा, अनुमान है कि आवंटित धन का क़रीब 20% हिस्सा पिछले वर्षों के बकाया भुगतान में खर्च होगा।
बता दें कि सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए। यह पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में योजना के वास्तविक व्यय 1.05 लाख करोड़ रुपये से 19,297 करोड़ रुपये कम था। बहरहाल, एक रिपोर्ट के अनुसार 2024 के अंतरिम बजट में सरकार द्वारा इस योजना के लिए आवंटित किए गए 86,000 करोड़ रुपये कम पड़ने के बावजूद केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने मंत्रालय के कई अनुरोधों के बाद भी योजना के लिए बजट में संशोधन नहीं किया।
मनरेगा को लेकर यह पहला मौका नहीं है जब विवाद हुआ हो। पीएम मोदी ने 2015 में इस योजना को 'कांग्रेस की विफलताओं का जीवंत स्मारक' क़रार दिया था। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान इस योजना की उपयोगिता साबित हुई, जब लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए यह रोजगार का एकमात्र जरिया बनी।