भारत सरकार ने गृह मंत्रालय के सहयोग पोर्टल से पाँच महीनों में 130 सेंसरशिप आदेश जारी किए गए। जिनमें ऑनलाइन सामग्री को टारगेट किया गया। दूसरी तरफ भारत में अभिव्यक्ति की पूरी आजादी के दावे किए जाते हैं।
मोदी सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा संचालित सहयोग पोर्टल के माध्यम से पिछले पांच महीनों में 130 सेंसरशिप आदेश जारी किए गए हैं। यह जानकारी द इंडियन एक्सप्रेस की एक विशेष रिपोर्ट में सामने आई है। ये आदेश सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 की धारा 79(3)(बी) के तहत जारी किए गए हैं, जो सामग्री को हटाने या उसकी पहुंच को रोकने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
सहयोग पोर्टल, जिसे 2024 में गृह मंत्रालय ने शुरू किया था। इसका मकसद आपत्तिजनक ऑनलाइन सामग्री को फौरन हटाने के लिए एक प्लेटफॉर्म बनना है। यह पोर्टल भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी) द्वारा चलाया जाता है। इसकी शुरुआत विभिन्न सरकारी एजेंसियों, आईटी मध्यस्थों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को एक मंच पर लाने के लिए की गई थी ताकि साइबरस्पेस को सुरक्षित रखने के लिए त्वरित और समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।
रिपोर्ट के अनुसार, इस पोर्टल पर अब तक 38 प्रमुख आईटी मध्यस्थ शामिल हो चुके हैं, जिनमें गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, टेलीग्राम, ऐपल, शेयरचैट, स्नैपचैट, लिंक्डइन और यूट्यूब जैसे नाम शामिल हैं। 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने अधिकारियों को इस पोर्टल पर पंजीकृत किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस पोर्टल के माध्यम से गूगल अपने प्ले स्टोर ऐप, यूट्यूब वीडियो और ड्राइव लिंक को ब्लॉक कर सकता है, जबकि व्हाट्सएप नंबर, चैनल या ग्रुप को ब्लॉक कर सकता है। इसी तरह, फेसबुक और इंस्टाग्राम सामग्री, प्रोफाइल और विज्ञापन पोस्ट को हटा सकते हैं।
हालांकि, इस पोर्टल को लेकर विवाद भी सामने आया है। एलन मस्क के स्वामित्व वाली सोशल मीडिया कंपनी एक्स ने इसे "सेंसरशिप पोर्टल" करार देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया है। एक्स का तर्क है कि धारा 79(3)(बी) का उपयोग करके सरकार एक समानांतर और गैरकानूनी सेंसरशिप तंत्र बना रही है, जो आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत निर्धारित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करता है। धारा 69ए में सामग्री को ब्लॉक करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था जैसे विशिष्ट आधारों पर ही कार्रवाई की अनुमति है, साथ ही इसमें प्रक्रियात्मक सुरक्षा जैसे लिखित औचित्य और स्वतंत्र समीक्षा शामिल है।
केंद्र सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट में दाखिल अपने जवाब में एक्स के इस दावे को "दुर्भाग्यपूर्ण" और "निंदनीय" बताया है। सरकार का कहना है कि सहयोग पोर्टल एक सुविधाजनक तंत्र है, जो गैरकानूनी सामग्री को हटाने की प्रक्रिया को तेज करता है और इसमें कोई सामग्री बिना उचित प्रक्रिया के ब्लॉक नहीं की जाती।
इसके बावजूद, विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि सहयोग पोर्टल में पारदर्शिता की कमी है। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने अपने विश्लेषण में उल्लेख किया है कि इस पोर्टल के माध्यम से कितने यूआरएल या खातों को ब्लॉक किया गया, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पोर्टल बिना स्पष्ट विधायी ढांचे या वैधानिक सुरक्षा के सामग्री को हटाने की प्रक्रिया को केंद्रीकृत करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है।
सहयोग पोर्टल का मामला अब कर्नाटक हाईकोर्ट में विचाराधीन है, जहां एक्स ने इस पोर्टल से जारी आदेशों को अमान्य करने और इसके उपयोग पर रोक लगाने की मांग की है। इस मामले में अगली सुनवाई पर सभी की नजरें टिकी हैं, क्योंकि यह भारत में ऑनलाइन सामग्री के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।