ऑपरेशन सिंदूर के लिए गठित डेलिगेशन में कांग्रेस की संस्तुत सूची से केवल एक ही नाम चुना गया। क्या यह राजनीतिक संतुलन है या जानबूझकर किया गया चयन? जानिए इस चयन प्रक्रिया को लेकर उठते सवाल और विपक्ष की प्रतिक्रिया।
केंद्र सरकार ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत की नीति और 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत की गई कार्रवाइयों को वैश्विक मंच पर पेश करने के लिए सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों की अंतिम सूची जारी की है। इस सूची में कांग्रेस द्वारा सुझाए गए चार नामों आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और अमरिंदर सिंह राजा वडिंग में से केवल आनंद शर्मा को ही शामिल किया गया है। वहीं, केंद्र ने अपनी ओर से कांग्रेस के तीन अन्य नेताओं शशि थरूर, अमर सिंह और मनीष तिवारी को चुना, जिनके नाम पार्टी की सिफारिश सूची में शामिल नहीं थे। इस कदम ने कांग्रेस में असंतोष पैदा कर दिया है।
केंद्र सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है। ये विभिन्न देशों की यात्रा कर ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत की आतंकवाद विरोधी नीति और कार्रवाइयों की जानकारी देंगे। इनका नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के बैजयंत जय पांडा और रविशंकर प्रसाद, जेडीयू के संजय झा, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, कांग्रेस के शशि थरूर, डीएमके की कनिमोझी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) की सुप्रिया सुले करेंगे।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने एक्स पर इस पहल की जानकारी साझा करते हुए कहा, 'एक मिशन। एक संदेश। एक भारत। सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जल्द ही ऑपरेशन सिंदूर के तहत प्रमुख देशों के साथ संवाद करेंगे, जो आतंकवाद के खिलाफ हमारी सामूहिक दृढ़ता को दिखाता है।' उन्होंने प्रतिनिधिमंडलों की अंतिम सूची भी साझा की।
प्रमुख प्रतिनिधिमंडलों की जिम्मेदारियां हैं:
कांग्रेस ने केंद्र को चार नेताओं आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और अमरिंदर सिंह राजा वडिंग के नाम सुझाए थे। लेकिन सरकार ने केवल आनंद शर्मा को चुना और उनकी सिफारिश सूची से बाक़ी तीन नामों को शामिल नहीं किया। इसके बजाय, केंद्र ने कांग्रेस के तीन अन्य सांसदों शशि थरूर, अमर सिंह और मनीष तिवारी को चुना। इनके नाम पार्टी की सूची में नहीं थे।
कांग्रेस ने इस चयन को बीजेपी नीत केंद्र सरकार की ओर से विपक्षी दल में आंतरिक कलह पैदा करने की कोशिश के रूप में देखा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह कदम सर्वदलीय एकजुटता की भावना को कमजोर करता है, जो राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर जरूरी है। मीडिया रिपोर्टों में पार्टी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि 'हमने चार अनुभवी नेताओं के नाम सुझाए थे, लेकिन केवल एक को चुना गया। केंद्र का अपने मन से तीन अन्य नेताओं को चुनना एक सोची-समझी रणनीति लगती है, जिसका मकसद पार्टी में असंतोष पैदा करना हो सकता है।'
पहले राजनयिक रह चुके और बाद में पूर्णकालिक राजनीति में आए शशि थरूर हाल के समय में केंद्र सरकार की कुछ नीतियों का समर्थन करते नज़र आए हैं। थरूर ने एक बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए आंतरिक चुनाव भी लड़ा था। उनके इस रुख और केंद्र द्वारा उनकी सिफारिश के बिना चयन ने राजनीतिक हलकों में अटकलों को जन्म दिया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि थरूर का चयन उनकी कूटनीतिक पृष्ठभूमि और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्वीकार्यता को देखते हुए किया गया हो सकता है। हालांकि, कुछ लोग इसे कांग्रेस के भीतर असंतोष पैदा करने की रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर भारत की आतंकवाद विरोधी नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसके तहत पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की गई है। बीजेपी नेता बैजयंत जय पांडा ने कहा, 'हमने ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए पाकिस्तान को महंगा सबक़ सिखाया है। जिस तरह से वे आतंकवाद को समर्थन दे रहे हैं और वहां आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया जाता है, उसका जवाब देना ज़रूरी है।'
पांडा ने आगे कहा, 'पाकिस्तान ने स्वतंत्रता के बाद से जो दुष्प्रचार किया है, उसका जवाब भी देना होगा। हम राष्ट्रीय हित में एकजुट हैं, चाहे सत्तारूढ़ गठबंधन हो या विपक्षी दल। हम उन देशों में मीडिया, बुद्धिजीवियों और नीति निर्माताओं के साथ चर्चा करेंगे।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देने में सक्षम रहा है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस मुद्दे पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा, 'यह आउटरीच अभियान जरूरी है। हमें उनके बनाए नैरेटिव का जवाब देना होगा। सभी दलों के नेता एक साथ जाकर एक मजबूत संदेश देंगे।'
कांग्रेस ने केंद्र के इस कदम को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है। पार्टी का मानना है कि उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज करना राष्ट्रीय एकता के संदेश को कमजोर करता है।
दूसरी ओर, बीजेपी ने इस आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि प्रतिनिधिमंडलों का चयन राष्ट्रीय हित और कूटनीतिक प्रभावशीलता को ध्यान में रखकर किया गया है। एक बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, 'यह समय राजनीति करने का नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर दुनिया को भारत का संदेश देने का है।'
ये सात प्रतिनिधिमंडल जल्द ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियों के तहत विभिन्न देशों की यात्रा शुरू करेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत की कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करने में अहम साबित हो सकता है, बशर्ते सभी पक्ष मिलकर काम करें। हालांकि, कांग्रेस की सिफारिशों को नजरअंदाज करने का मुद्दा विपक्षी दलों के बीच असंतोष का कारण बना हुआ है।
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को वैश्विक मंच पर ले जाना एक महत्वपूर्ण कदम है। सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन इस दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। हालांकि, कांग्रेस की सिफारिशों को आंशिक रूप से स्वीकार करने और केंद्र द्वारा अपने मन से नेताओं के चयन ने इस पहल को विवादों में घेर लिया है।