संसद भवन परिसर में बुधवार 3 दिसंबर को विपक्षी दलों के सांसदों ने नए श्रम संहिताओं के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, नेता विपक्ष राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में यह धरना मकर द्वार के सामने आयोजित किया गया। प्रदर्शनकारियों ने "कॉर्पोरेट जंगल राज के खिलाफ नहीं, श्रम न्याय के पक्ष में" का बैनर पकड़ रखा था। विपक्ष ने चारों नई श्रम संहिताओं को वापस लेने की मांग की और केंद्र की मोदी सरकार पर बड़े कॉर्पोरेट्स के हित में पर्यावरण को तबाह करने का गंभीर आरोप लगाया।

यह प्रदर्शन संसद के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन हुआ, जब लोकसभा में पहली बार बिना किसी व्यवधान के प्रश्नकाल चला। इंडिया गठबंधन के सांसदों ने प्लेकार्ड और बैनर के साथ नारे लगाए, जिसमें "श्रम संहिताएं वापस लो" प्रमुख था। प्रदर्शन में प्रियंका गांधी वाड्रा, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन, डीएमके की कनीमोजी और ए. राजा, सीपीआई(एम) के जॉन ब्रिटास, सीपीआई(एमएल) लिबरेशन के सुदामा प्रसाद समेत कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी और वाम दलों के सांसद शामिल हुए।

सोनिया गांधी ने प्रदर्शन के दौरान सरकार की नीतियों पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने द हिंदू अखबार में प्रकाशित अपने लेख का हवाला देते हुए कहा, "कुछ गिने-चुने लोगों के लाभ के लिए भविष्य की पीढ़ियों की भलाई को सरकार दांव पर लगा रही है?" राहुल गांधी ने कहा कि भारत को पर्यावरण के लिए एक नई डील चाहिए। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार प्राकृतिक संसाधनों का लापरवाही से दोहन कर रही है और पर्यावरण संरक्षण के प्रति उदासीन है। विपक्ष ने इसे "कॉर्पोरेट जंगल राज" करार दिया, जो मजदूरों के अधिकारों को कुचलने वाला बताया।

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विपक्ष ने संसद में श्रम संहिताओं पर तत्काल चर्चा की मांग की है, जबकि सरकार ने इन्हें श्रमिक सुधार के रूप में पेश किया है। प्रदर्शन नारेबाजी और भाषणबाजी तक सीमित रहा। लेकिन विपक्ष ने चेतावनी दी कि अगर संहिताएं नहीं हटीं तो आंदोलन तेज होगा। इधर, प्रियंका गांधी ने वायु प्रदूषण पर भी बहस की मांग की, जिसके समर्थन में कुछ सांसद गैस मास्क पहने संसद पहुंचे।

बुधवार का प्रदर्शन इंडिया गठबंधन की रणनीति का हिस्सा था, जो सुबह 9:45 बजे हुई बैठक में तय हुआ। इस बैठक में खड़गे और राहुल गांधी मौजूद थे। विशेष गहन संशोधन (SIR) पर बहस की मांग पूरी होने के बाद विपक्ष ने श्रम संहिताओं पर फोकस किया है। संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि 8 दिसंबर को 'वंदे मातरम' के 150 वर्ष पर बहस और 9 दिसंबर को चुनाव सुधारों पर चर्चा होगी। हालांकि चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान विपक्ष एसआईआर और बीएलओ की मौत का मुद्दा उठाएगा।

नई श्रम संहिताएं क्या हैं

चार संहिताएं- वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति संहिता 2020 से लंबित थीं, जो पिछले महीने नोटिफाई की गईं। इनमें 29 पुराने श्रम कानूनों को एकीकृत किया गया है। ट्रेड यूनियनों और विपक्ष का कहना है कि ये संहिताएं अस्पष्ट हैं, जिसमें छंटनी के प्रावधान अस्पष्ट हैं, सरकारों को असाधारण शक्तियां मिलती हैं। कंपनियां जिनमें 100 से 300 तक श्रमिक काम करते हैं, बिना सरकारी मंजूरी छंटनी कर सकते हैं। इसके अलावा, फैक्ट्री में काम के घंटे 9 से बढ़ाकर 12 और दुकानों में 10 घंटे कर दिए गए हैं। 
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हालांकि, संहिताओं में गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, कॉन्ट्रैक्ट और प्रवासी मजदूरों के लिए यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी, न्यूनतम मजदूरी, महिलाओं को रात्रि शिफ्ट की अनुमति, शिकायत समितियां और 40 वर्ष से अधिक उम्र के श्रमिकों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य जांच जैसी सुविधाएं भी शामिल हैं। विपक्ष का दावा है कि ये प्रावधान कॉर्पोरेट्स को फायदा पहुंचाने वाले हैं और मजदूरों के हितों की अनदेखी करते हैं।