Judicial System Viksit Bharat Sanjeev Sanyal: पीएम मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) के सदस्य संजीव सान्याल ने देश की न्याय व्यवस्था पर हमला बोला और विकसित भारत के रास्ते में रोड़ा बताया। लेकिन वो पहले महत्वपूर्ण शख्स नहीं हैं, जिन्होंने ऐसा बयान दिया।
पीएम मोदी के साथ आर्थिक विशेषज्ञ संजीव सान्याल
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) के सदस्य संजीव सान्याल ने न्यायपालिका को भारत के ‘विकसित भारत (Viksit Bharat)’ बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा करार देते हुए कहा है कि न्यायिक प्रणाली में बड़े बदलाव के बिना देश का तेजी से विकास संभव नहीं है।
संजीव सान्याल के बयान की प्रमुख बातें
- सान्याल ने “Nyaya Nirmaan 2025” सम्मेलन के दौरान कहा कि न्यायपालिका और कानूनी ईको सिस्टम विशेषकर न्यायिक तंत्र, अब विकास की राह में सबसे बड़ा अवरोध बन गए हैं।
- उन्होंने अदालतों की प्री-लिटिगेशन मध्यस्थता (pre-litigation mediation) की बाधाओं और उसकी विफलताओं का उदाहरण देते हुए कहा कि मध्यस्थता जरूरी करना कई मामलों में सिर्फ समय, लागत और जटिलता बढ़ाने का कारण बनता है।
- अदालतों की लंबी छुट्टियों और पारंपरिक शिष्टाचारों (जैसे “माई लॉर्ड”, या “योर लॉर्डशिप”) को उन्होंने औपनिवेशिक काल का बताया, जिन्हें बदलने की आवश्यकता है।
- संजीव सान्याल ने यह भी कहा कि न्यायिक प्रोफेशन की संरचनाएं एक तरह की “मध्ययुगीन गिल्ड” की तरह हो गई हैं- जैसे वरिष्ठ वकील, एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड आदि की विशेष स्थिति, प्रक्रियात्मक जटिलताएँ आदि विकास को रोक रही हैं।
'विकसित भारत' अभियान के तहत भारत सरकार का लक्ष्य 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था के रूप में उभरना है, लेकिन सान्याल का मानना है कि न्यायिक देरी और जटिलताएं इस लक्ष्य में बाधा रही हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कानूनी क्षेत्र को आंतरिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि राष्ट्रीय विकास उद्देश्यों का समर्थन किया जा सके। यह बयान कानूनी और आर्थिक सुधारों पर व्यापक बहस का हिस्सा प्रतीत होता है, जहां न्यायिक प्रणाली की भूमिका पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
संजीव सान्याल से पहले बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, किरण रिजिजू और पूर्व मंत्री भी न्यायपालिका को निशाने पर ले चुके हैं।
बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे ने अप्रैल 2025 में न्यायपालिका पर निशाना साधा था। दुबे ने कहा था- अगर सुप्रीम कोर्ट ही कानून बनाने का काम करेगा, तो संसद को बंद कर देना चाहिए। यह आरोप कि अदालतें पारित कानूनों को खारिज कर रही हैं, राष्ट्रपति को निर्देश दे रही हैं, आदि। यह बात उन्होंने वक्फ कानून (संशोधन) पर बहस के दौरान कही थी।
पूर्व उपराष्ट्रपति के धनखड़ के विवादित बयान
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ तो न्यायपालिका पर अपने कार्यकाल के दौरान कई बार बयान देकर गए हैं। धनखड़ ने न्यायपालिका पर “judicial overreach” यानी जजों के जरूरत से ज्यादा दखल की प्रवृति पर चिंता जताई। धनखड़ ने उस समय यह भी आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट कभी-कभी संसद जैसे कानून बनाने वाली निर्धारक संस्थाओं की तरह व्यवहार कर रहा है। हालांकि सत्तारूढ़ सरकार ने हाल ही में बाहर का रास्ता दिखा दिया।
दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा NJAC (नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन) को रद्द करने पर भी पूर्व उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की आलोचना की थी। इसे "संविधान-विरोधी" कदम बताया जो न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भूमिका को कम करने वाला था।
केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने मार्च 2023 में कुछ रिटायर्ड जजों और एक्टिविस्टों पर आरोप लगाया था कि वे न्यायपालिका का इस्तेमाल सरकार की निंदा करने वा नीतियों को अदालती चुनौतियों से प्रभावित करने के लिए कर रहे हैं। रिजिजू ने इन लोगों को “anti-India gang” (भारत विरोधी गैंग) कहा था।
रिजिजू ने जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम सिस्टम को "संविधान-विरोधी" (alien to Constitution) बताया और कहा कि जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका बढ़नी चाहिए। रिजिजू का यह बयान न्यायपालिका पर दबाव बनाने वाले लगातार बयानों की श्रृंखला का हिस्सा था।
सुप्रीम कोर्ट ने जज गोपाल सुब्रामण्यम की नियुक्ति पर सरकार के कथित दबाव पर चुप्पी साधी। उस घटनाक्रम को भी न्यायिक स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप के रूप में देखा गया। बीच-बीच में कुछ ऐसे मामले आते रहे हैं, जब न्यायपालिका से बेहतर फैसले की आपेक्षा की गई।