प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कांग्रेस असम को पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनने दे रही थी लेकिन विरोध के कारण रुक गई। लेकिन क्या पीएम मोदी ने इतिहास के इस सत्य को सही तरीके से पेश किया या तथ्य छिपा लिए। सच जानिएः
महात्मा गांधी के साथ जवाहर लाल नेहरू की ऐतिहासिक तस्वीर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 दिसंबर को गुवाहाटी में एक भाषण में असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की तारीफ की। उन्होंने कहा कि बोरदोलोई ने "अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े होकर" असम को "देश से अलग होने से बचाया"। मोदी ने आरोप लगाया कि "कांग्रेस ने स्वतंत्रता से पहले ही इस जगह की पहचान मिटाने की साजिश रची थी... जब मुस्लिम लीग और ब्रिटिश ताकतें मिलकर भारत को बांटने की जमीन तैयार कर रही थीं, उस समय असम को भी पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की योजना थी। कांग्रेस भी उस साजिश का हिस्सा बनने वाली थी। तब बोरदोलोई जी ने अपनी पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम की पहचान मिटाने की इस कोशिश का विरोध किया और असम को देश से अलग होने से बचाया।" इतिहास के इस घटनाक्रम की पड़ताल जरूरी है। यह जानना बेहद ज़रूरी है कि मोदी कितना सच बता रहे हैं।
1946 के कैबिनेट मिशन प्लान का ऐतिहासिक संदर्भ
द्वितीय विश्व युद्ध के समय और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की हार के बाद भारत से ब्रिटिश वापसी तय मानी जा रही थी। 24 मार्च 1946 को ब्रिटिश कैबिनेट के तीन मंत्री, लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस (भारत सचिव), सर स्टैफोर्ड क्रिप्स (बोर्ड ऑफ ट्रेड के अध्यक्ष) और ए.वी. अलेक्जेंडर (एडमिरल्टी के फर्स्ट लॉर्ड) वायसरॉय लॉर्ड आर्चिबाल्ड वेवेल के साथ भारत आए। कैबिनेट मिशन ने ब्रिटिश भारत के लिए तीन-स्तरीय संवैधानिक ढांचा प्रस्तावित किया: शीर्ष पर फेडरल ढांचा, स्वायत्त प्रांत और बीच में प्रांतों के कुछ समूह। यह भारत को एकजुट रखने की अंतिम कोशिश थी, हालांकि इसमें विरोधाभास थे। कांग्रेस ने सिद्धांत रूप में एक अविभाजित भारत के लिए इस ढांचे का समर्थन किया, और मुस्लिम लीग ने भी इसे स्वीकार कर लिया।
- ग्रुप A: हिंदू बहुल प्रांत (जैसे बॉम्बे, मद्रास, यूपी)।
- ग्रुप B: मुस्लिम बहुल प्रांत (पंजाब, सिंध, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत)।
विवाद का कारण: ग्रुप C में बंगाल मुस्लिम बहुल था, जबकि असम हिंदू बहुल। मुस्लिम लीग चाहती थी कि पूरा ग्रुप C बाद में पाकिस्तान का हिस्सा बने। असम के नेताओं को डर था कि बंगाल के साथ जुड़ने पर असम की पहचान और डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) खत्म हो जाएगी।
इस प्रस्ताव पर गांधी और नेहरू के क्या विचार थे
नेहरू, गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं ने असम के नेताओं को योजना को अस्वीकार करने की सलाह दी। बोरदोलोई द्वारा भेजे गए दूत बिजयचंद्र भगवती और महेंद्र मोहन चौधरी से उन्होंने कहा, "अगर आप सही समय पर सही काम नहीं करेंगे तो असम खत्म हो जाएगा। बोरदोलोई को बताओ कि मुझे जरा भी बेचैनी नहीं है। मेरा मन बना हुआ है। असम को अपनी आत्मा नहीं खोनी चाहिए। उसे पूरी दुनिया के खिलाफ भी इसे बचाना चाहिए। वरना मैं कहूंगा कि असम में केवल पुतले थे, आदमी नहीं। यह बेहूदा सुझाव है कि बंगाल किसी भी तरह असम पर हावी हो... लोगों को बताओ कि अगर गांधीजी हमें रोकने की कोशिश भी करें तो भी हम नहीं मानेंगे।" गांधी की यह सलाह 29 दिसंबर 1946 के 'हरिजन' अखबार में 'गांधीजी की असम को सलाह' शीर्षक से प्रकाशित हुई है। अब मोदी के बयान को याद करिए। उन्होंने गांधी और नेहरू पर आरोप लगाया कि वो असम को पाकिस्तान को सौंपना चाहते थे।
असम पर जवाहरलाल नेहरू ने क्या कहा था
जवाहर लाल नेहरू ने असम को जबरन समूहीकरण में डालने का विरोध किया। 22 जुलाई 1946 को बोरदोलोई को पत्र में लिखा, "समूह के खिलाफ फैसला करना सही और उचित था।" 23 सितंबर 1946 को लिखा, "किसी भी हालत में हम असम जैसे प्रांत को उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ करने के लिए मजबूर करने पर सहमत नहीं होंगे।" अप्रैल 1946 में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में नेहरू ने कहा, "उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में मुस्लिम बहुल होने के बावजूद लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया... असम भी स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के खिलाफ है।" 10 जुलाई 1946 के बॉम्बे प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेहरू ने कहा, "बहुत संभावना है कि असम बंगाल के साथ समूहीकरण के खिलाफ फैसला करेगा... मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अंत में वहां कोई समूहीकरण नहीं होगा, क्योंकि असम इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेगा।" नेहरू ने अंग्रेजों की योजना को "जिन्ना का चेहरा बचाने" की कोशिश माना।
असम कांग्रेस कमेटी भी खिलाफ थी
असम की प्रांतीय कांग्रेस कमिटी ने भी समूहीकरण (ग्रुप सी प्रस्ताव) को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया, क्योंकि डर था कि असम को लीग को खुश करने के लिए मुस्लिम बहुल क्षेत्र से जोड़ दिया जाएगा। पीएम मोदी को क्या सबूत चाहिए। आखिर उनके बयान को इतिहास ही झुठला रहा है। गांधी और नेहरू के स्टैंड के बारे में आप ऊपर पढ़ चुके हैं। लेकिन असम की कांग्रेस तो इस बात पर और भी स्पष्ट थी।
बोरदोलोई और मोदी का बयान
यह सच है कि कांग्रेस नेता गोपीनाथ बोरदोलोई ने असम को बंगाल के साथ जोड़ने का विरोध किया। उन्होंने योजना का विरोध करने का संकल्प लिया, लेकिन पहले गांधीजी से परामर्श किया और अपने दूतों को उनसे मिलने भेजा। मोदी कह रहे हैं कि बोरदोलोई ने अपनी पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम बचाया। तथ्य बता रहे हैं कि बोरदोलोई, गांधी और नेहरू असम के मुद्दे पर एक थे।
योजना का अंतिम नतीजा
कांग्रेस के जबरदस्त विरोध के बाद अंग्रेजों ने असम को पाकिस्तान में मिलाने की योजना को रद्द कर दिया। कैबिनेट मिशन प्लान को कांग्रेस ने पूरी तरह नाकाम कर दिया। नेहरू के 10 जुलाई 1946 के प्रेस कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस की स्पष्ट अस्वीकृति और असहमति माना गया। असम ने बंगाल के साथ समूहीकरण के खिलाफ फैसला किया और कोई समूहीकरण नहीं हुआ। यह घटना भारत के विभाजन की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है, जहां गांधी, नेहरू, बोरदोलोई और कांग्रेस के विरोध के कारण अंग्रेजों की योजना नाकाम हो गई।
कांग्रेस का बयान
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस आरोप का करारा जवाब दिया, जिसमें उन्होंने पार्टी पर आजादी से पहले असम को पाकिस्तान को सौंपने की साजिश रचने का आरोप लगाया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद मणिकम टैगोर ने X पर एक पोस्ट लिखकर इस आरोप का खंडन किया और इसे ऐतिहासिक रूप से गलत और राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया। टैगोर ने लिखा, “असम को पाकिस्तान को सौंपने का कोई प्रस्ताव नहीं था। असम हिंदू बहुसंख्यक प्रांत था और विभाजन योजना के तहत इसे कभी भी पाकिस्तान के लिए निर्धारित नहीं किया गया था। केवल असम का सिलहट जिला ही विवादित था, जो मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र है।”
टैगोर ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि इतिहास कुछ और ही कहानी बयां करता है। उन्होंने बताया कि जुलाई 1947 में, ब्रिटिश शासन के तहत, सिलहट में जनमत संग्रह हुआ था, जिसमें पूर्वी बंगाल (बाद में पूर्वी पाकिस्तान) में शामिल होने के पक्ष में मतदान हुआ था।
टैगोर ने कहा, “यह कांग्रेस का निर्णय नहीं था। गोपीनाथ बोरदोलोई के प्रयासों के कारण करीमगंज उपखंड भारत में ही रहा।” उन्होंने जोर देकर कहा, “यह लिखित इतिहास है। ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि कांग्रेस पार्टी ने असम को पाकिस्तान को देने की साजिश रची हो।” कांग्रेस नेता ने कहा कि विभाजन “ब्रिटिश जल्दबाजी” और मुस्लिम लीग की मांग के कारण हुआ था, और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर “एक जटिल, दुखद इतिहास को चुनावी नारा बनाने” का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए टैगोर ने उन्हें “आरएसएस का प्रशिक्षित व्यक्ति” बताया जो “झूठ फैलाकर जीता है।”
इतिहास का यह महत्वपूर्ण घटनाक्रम झुठलाया नहीं जा सकता। क्योंकि बातें बहुत पुरानी नहीं है। उस समय के अखबार आर्काव्स में मौजूद हैं। सच यही है कि अगर गांधी, नेहरू, बोरदोलोई और कांग्रेस एकजुट होकर विरोध नहीं करते तो असम पाकिस्तान का हिस्सा बन जाता। महात्मा गांधी का लिखित बयान हरिजन अखबार में छपा हुआ है। कुल मिलाकर मोदी ने ऐतिहासित तथ्यों को छिपाकर उसका एक ही पहलू बताया। इतिहास का सत्य कुछ और है, पीएम मोदी का बयान कुछ और है।