प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन दिन पहले ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में हो रहे डेमोग्राफिक बदलाव पर गहरी चिंता व्यक्त की। पीएम ने कहा कि अवैध घुसपैठ के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है, जिससे भूमि पर कब्जा, महिलाओं की सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा पैदा हो रहा है। तो क्या सच में ऐसा है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है? सरकार द्वारा कराई गई जनगणना के आँकड़े क्या सीमावर्ती राज्यों में इस संतुलन बिगड़ने के दावे की पुष्टि करते हैं? 

इन सवालों के जवाब ढ़ंढने से पहले दो सीमावर्ती और मध्य भारत के दो राज्यों के आँकड़ों को देख लें। असम में जनसंख्या वृद्धि 1951-61 के दशक में 35 से घटकर 1991-2001 में 16.9 फीसदी रह गई। पश्चिम बंगाल में यह इस दौरान 27.6, से घटकर 13.9 फ़ीसदी हो गई। जबकि मध्य भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में यह 1951-61 में 13.8 फीसदी थी और 1991-2001 में 20.1 फीसदी थी। बिहार में इस दौरान क्रमश: 19.1 और 25.1 फीसदी रही। 

सीमावर्ती राज्यों की स्थिति कितनी अलग?

यदि इन चारों राज्यों का इन सभी दशकों की जनगणना में जनसंख्या वृद्धि दर को देखा जाए तो असम में 1951-61, 1961-71, 1971-81, 1981-91 और 1991-2001 दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर क्रमश: 35, 34.9, 23.3, 24.2, 18.9 और 16.9 फीसदी रही। पश्चिम बंगाल में यह 27.6, 23.2, 24.3, 23.2, 17.8 और 13.9 फ़ीसदी रही। जबकि उत्तर प्रदेश में इस दौरान 13.8, 25.8, 28.6, 25.5, 25.8 और 20.1 फीसदी रही। बिहार में यह 19.1, 27.1, 29.8, 23.0, 28.6 और 25.1 फीसदी रही। इन आँकड़ों को देखने से सीमावर्ती और मध्य भारत के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि को लेकर क्या तस्वीर बनती है?

अब पूरे देश की सीमावर्ती और गैर सीमावर्ती राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की तुलना करें तो और स्थिति साफ़ होती है। द इंडियन एक्सप्रेस में दीप्तिमान तिवारी ने आँकड़ों का विश्लेषण किया है। इन आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि आज़ादी के बाद के अधिकांश समय में त्रिपुरा, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों के साथ ही उत्तर में जम्मू और कश्मीर ने राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक वृद्धि दर दर्ज की।

पूर्वोत्तर राज्यों में दर घटी

त्रिपुरा ने 1951-61 में 78.7% की आश्चर्यजनक वृद्धि दर्ज की। यह वह समय था जब पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) से बड़े पैमाने पर प्रवास हुआ था। लेकिन राज्य में 1991-2001 के दौरान यह घटकर 14.8 फीसदी रह गई। असम में कई दशकों में (1951-61 में 35%; 1961-71 में 34.9%) दोहरे अंकों की बढ़ोतरी हुई, लेकिन बाद में यह घटकर क़रीब 17 फीसदी तक पहुँच गई। नगालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर में भी 1980 के दशक तक काफ़ी वृद्धि दर (30%-60% प्रति दशक) रही। लेकिन बाद में यह धीमी पड़ी। नगालैंड ने 2001-11 में नकारात्मक वृद्धि दर (-0.5%) दर्ज की।

जम्मू और कश्मीर में भी लगातार तेज वृद्धि होती रही, जो अक्सर प्रति दशक 20 और 30 के आसपास रही। हालाँकि, हिमाचल प्रदेश की दरें कई दशकों में राष्ट्रीय औसत के करीब रहीं और असम भी 2001-11 में राष्ट्रीय औसत से नीचे चला गया।

मध्य भारत में बढ़ोतरी सीमावर्ती राज्यों जैसी

उत्तर में तेज़ वृद्धि दर केवल सीमावर्ती राज्यों तक सीमित नहीं रही। हिंदी हार्टलैंड के रूप में जाने जाने वाले मध्य भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी लगातार औसत से अधिक वृद्धि दरें रहीं। यह बढ़ोतरी भी सीमावर्ती राज्यों जैसी या कभी-कभी ज्यादा ही रहीं। 

राजस्थान ने 1951-61 में 28%, 1971-81 में 29.1%, 1991-2001 में 28.3% बढ़ोतरी दर्ज की। एक सीमावर्ती राज्य होने के बावजूद राजस्थान में बढ़ोतरी मध्य भारत के समान रही।

गुजरात में भी 1991-2001 तक 24% से 27% के बीच दशकीय वृद्धि दर्ज की। मध्य प्रदेश ने 1951-61 में 21% से 1971-81 में लगभग 30% तक उतार-चढ़ाव देखा और 2001-2011 में 20 के आसपास वापस आ गया।

उत्तर प्रदेश और बिहार

उत्तर प्रदेश और बिहार भी कई जनगणनाओं में राष्ट्रीय औसत से काफी ऊपर रहे। 1951-61 में उत्तर प्रदेश की दशकीय वृद्धि 13.8% थी। लेकिन बाद के सभी दशकों में यूपी में यह वृद्धि दर 25% से अधिक रही। 2001-2011 में 20% तक गिर गई। बिहार भी 1951-61 के बाद से 25%-30% की सीमा में रहा।

एक सीमावर्ती राज्य पंजाब की जनसंख्या वृद्धि 1980 के दशक तक 20-30 के उच्च स्तर तक रही, जो 2001-2011 में घटकर केवल 13% रह गई।

पश्चिम बंगाल की स्थिति

अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में वृद्धि दर का एक अलग पैटर्न रहा है। राज्य ने 1951-61 के बीच अपनी सबसे ज़्यादा वृद्धि दर्ज की। यही वह एकमात्र दशक था जिसमें वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक रही। यह उछाल विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान से भारी प्रवास से जुड़ा है। इसके बाद के तीन दशकों (1961-91) में बंगाल की वृद्धि 23%-24% के आसपास स्थिर रही, जो राष्ट्रीय औसत के लगभग बराबर थी। 1991-2001में राज्य की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से नीचे चली गई और यह 13.8% तक पहुंची। 

दक्षिणी राज्यों में वृद्धि दर कम रही

केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी तटीय राज्यों में वृद्धि दर कम रही। माना जाता है कि तेजी से प्रजनन दर में कमी, साक्षरता में वृद्धि और उच्च शहरीकरण के कारण ऐसा हुआ। केरल की गिरावट सबसे उल्लेखनीय है। राज्य में शुरुआती दशकों में दोहरे अंकों की वृद्धि से, यह 2001-11 में 4.9% तक गिर गई। तमिलनाडु ने भी कई दशकों में राष्ट्रीय औसत की तुलना में कम वृद्धि दरें दर्ज कीं। ये कमी दक्षिण में तेजी से प्रजनन दर में कमी, उच्च साक्षरता और अधिक व्यापक शहरीकरण और स्वास्थ्य कवरेज को दिखाती हैं।  

जनसंख्या में उछाल

कई ऐतिहासिक घटनाओं ने देश के जनसांख्यिकीय में बड़ा बदलाव किया। इनमें 1947 का विभाजन शामिल है। यह पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में बड़े पैमाने पर जनसंख्या विस्थापन ले आया। शुरुआती जनगणनाओं ने इस उथल-पुथल को दर्ज किया। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (1971) ने असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में वृद्धि में उछाल देखा। माना जाता है कि ऐसा शरणार्थियों की बढ़ोतरी के कारण हुआ। 2001-11 तक तेज़ बढ़ोतरी वाले सीमावर्ती राज्यों और देश के बाकी हिस्सों के बीच का अंतर कम हो गया। 

कई विशेषज्ञों का मानना है कि जनसांख्यिकीय बदलाव एक जटिल मुद्दा है, जिसे केवल घुसपैठ से जोड़ना सही नहीं है। कहा जाता है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या परिवर्तन का कारण प्राकृतिक वृद्धि, आर्थिक प्रवास, ग़रीबी और अशिक्षा जैसे दूसरे सामाजिक कारण भी हैं। इसे केवल एक समुदाय या घुसपैठ से जोड़ना सरलीकरण होगा। वहीं, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।