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प्रदर्शनों से लोकतंत्र होगा मज़बूत: प्रणब मुखर्जी

देश भर में नागरिकता क़ानून यानी सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शन के बीच पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक कार्यक्रम में तानाशाही, असहमति, शांतिपूर्ण प्रदर्शन और लोकतंत्र जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। हालाँकि उन्होंने न तो नागरिकता क़ानून और न ही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी या राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर का ज़िक्र किया। लेकिन उन्होंने लोकतंत्र में असहमति यानी विरोध का महत्व बताने के क्रम में कहा कि देश भर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतंत्र को तरोताज़ा कर देंगे। 

पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी दिल्ली में गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा, 'सहमति लोकतंत्र की जीवनदायिनी है। लोकतंत्र सुनने, विचार करने, चर्चा करने, बहस करने, यहाँ तक ​​कि असहमति रखने पर पनपता है... आत्मसंतुष्टि तानाशाही प्रवृत्ति को जड़ जमाने में सक्षम बनाती है।'  'पीटीआई' के अनुसार, उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र हर बार खरा उतरा है। प्रणब मुखर्जी ने यह भी कहा कि पिछले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में, ख़ासकर, युवा अपने विचार व्यक्त करने के लिए सड़कों पर आए हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत के संविधान में उनकी दृढ़ता और आस्था अभिभूत करने वाली है। 

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प्रणब मुखर्जी का यह भाषण ऐसे समय में आया है जब देश भर में लोग नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार संविधान और लोकतंत्र पर हमला कर रही है। जामिला मिल्लिया इसलामिया के छात्रों के ऐसे ही प्रदर्शन के दौरान उनके ख़िलाफ़ पुलिस की कार्रवाई की आलोचना हुई है। विपक्षी दलों ने भी आरोप लगाया कि सरकार देश के भविष्य छात्रों को दरकिनार कर रही है और उनके ख़िलाफ़ सख्ती से पेश आ रही है। बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि नागरिकता क़ानून से पीछे हटने का सवाल ही नहीं है और यह जारी रहेगा।

हालाँकि, मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में ही प्रसिद्ध संगीतकार भूपेन हजारिका और संघ से जुड़े नेता नानाजी देशमुख के साथ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। मुखर्जी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं। इससे पहले वह 2018 में आरएसएस के नागपुर में एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। तब यह भी एक बहस का मुद्दा बना था। राष्ट्रपति के रूप में मुखर्जी का कार्यकाल जुलाई 2017 में ही समाप्त हो गया था।

अवार्ड की घोषणा के बाद प्रणब मुखर्जी ने ट्वीट में लिखा था, 'भारत के लोगों के प्रति विनम्रता और कृतज्ञता व्यक्त करते हुए मैं इस महान भारत रत्न सम्मान को स्वीकार करता हूँ। मैंने हमेशा कहा है और मैं दोहराता हूँ कि मैंने अपने महान देश के लोगों को जितना दिया है, उससे कहीं अधिक उन्होंने मुझे दिया है।'

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बहरहाल, प्रणब मुखर्जी समय-समय पर लोकतंत्र और असहमति जैसे मुद्दों पर अपनी राय बेबाकी से रखते रहे हैं। 

राष्ट्रपति के पद पर रहने के दौरान भी प्रणब मुखर्जी कई बार हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते रहे थे और देश के मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान करने की अपील करते रहे थे। उनके सामने जब ऑर्डिनेंस लाया गया था तब उन्होंने बोलने की आज़ादी और राष्ट्रवाद का ज़िक्र किया था। उनके इस बयान पर भी देश में तब ख़ूब चर्चा हुई थी।

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क़मर वहीद नक़वी
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