SC Stays Action Against Karan Thapar and 'The Wire' Editor: सुप्रीम कोर्ट ने द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को राजद्रोह के आरोप में अंतरिम राहत दी है। कोर्ट ने असम पुलिस को राजद्रोह के मामले में कार्रवाई से रोक दिया है।
द वॉयर के संस्थापक संपादक वरदराजन और वरिष्ठ पत्रकार करण थापर (बाएं)
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 'द वायर' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदरजन और वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को राजद्रोह मामले में बड़ी अंतरिम राहत दी। अदालत ने असम पुलिस द्वारा दर्ज FIR में भादंसं (BNS) की धारा 152 के तहत कोई कार्रवाई न करने का अंतरिम आदेश दिया। यह मामला गुवाहाटी पुलिस द्वारा दोनों पत्रकारों को देशद्रोह के आरोप में समन जारी करने से संबंधित है। असम सरकार के इशारे पर वहां की पुलिस उन पत्रकारों पर एफआईआर कर रही है जो असम सरकार की कारगुजारी के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। थापर और वरदराजन के बाद असम पुलिस ने पत्रकार अभिसार शर्मा के खिलाफ भी गुरुवार को एफआईआर दर्ज की है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने असम पुलिस को नोटिस जारी किया और इस FIR No. 03/2025 के संबंध में वरदरजन और थापर के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दोनों पत्रकारों को जांच में सहयोग करना होगा। इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
वरदराजन और थापर के खिलाफ FIR
गुवाहाटी पुलिस की अपराध शाखा ने वरदरजन और थापर को 22 अगस्त को पानबाजार स्थित अपराध शाखा कार्यालय में पेश होने के लिए समन जारी किया था। यह समन भादंसं की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य), धारा 196, 197(1)(डी)/3(6), 353, 45 और 61 के तहत दर्ज FIR (03/2025) से संबंधित है। समन में कहा गया कि जांच के लिए दोनों पत्रकारों से पूछताछ आवश्यक है, और आदेश का पालन न करने पर गिरफ्तारी की चेतावनी दी गई थी।
हालांकि, 'द वायर' ने कहा कि उन्हें FIR की प्रति या कथित अपराध के विवरण की जानकारी नहीं दी गई। वरदरजन और थापर ने जवाब में कहा कि वे जांच में सहयोग करने को तैयार हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और कर्नाटक हाई कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, FIR की प्रति उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
यह दूसरा मौका है जब असम पुलिस ने 'द वायर' के पत्रकारों के खिलाफ धारा 152 के तहत कार्रवाई की है। इससे पहले, 11 जुलाई 2025 को मोरिगांव में एक अन्य FIR (0181/2025) दर्ज की गई थी, जिसमें 'द वायर' द्वारा 28 जून 2025 को प्रकाशित एक लेख ('IAF Lost Fighter Jets to Pak Because of Political Leadership’s Constraints': Indian Defence Attache') के आधार पर कार्रवाई की गई थी। इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को वरदरजन और 'द वायर' के अन्य पत्रकारों को दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम संरक्षण दिया था।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और अन्य पत्रकार संगठनों ने असम सरकार, असम पुलिस की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया और धारा 152 को "राजद्रोह कानून का पुनर्जन्म" करार देते हुए इसे रद्द करने की मांग की। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी इस कार्रवाई की निंदा की और कहा कि "पत्रकारिता को दबाने के लिए राजद्रोह कानून का दुरुपयोग लोकतंत्र के लिए खतरा है।" विपक्षी सांसदों, जिनमें जयराम रमेश, जॉन ब्रिटास और राम गोपाल यादव शामिल हैं, ने भी असम की बीजेपी सरकार पर "स्वतंत्र आवाजों को दबाने" का आरोप लगाया और इन "दुर्भावनापूर्ण मामलों" को तत्काल वापस लेने की मांग की। बता दें कि असम पुलिस ने अब पत्रकार अभिसार शर्मा के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की है।