सुप्रीम कोर्ट में फिर से ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की किरकिरी हुई। अदालत ने दो अलग-अलग मामलों में कड़ी फटकार लगाई और कहा कि वह राजनीतिक लड़ाई लड़ने की कोशिश नहीं करे। सीजेआई बीआर गवई ने तो ईडी से यहाँ तक कह दिया कि वह मुँह न खुलवाए नहीं तो उसके ख़िलाफ़ कड़ी टिप्पणियाँ करने को मजबूर होंगे। हाल में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने लगातार ईडी के ख़िलाफ़ ऐसी ही सख़्त टिप्पणियाँ की हैं।  

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जिन दो मामलों में ईडी के ख़िलाफ़ टिप्पणी की, उसमें से एक मामला कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी को MUDA मामले में दी गई राहत के खिलाफ अपील से जुड़ा है। दूसरा मामला ईडी द्वारा वकीलों को मुवक्किलों को सलाह देने के लिए भेजे गए सम्मन पर स्वतः संज्ञान लेते हुए की गई सुनवाई से जुड़ा है।
ताज़ा ख़बरें

कर्नाटक MUDA घोटाला

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बी.एम. पार्वती और राज्य के शहरी विकास मंत्री बायरथी सुरेश के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों को रद्द कर दिया गया था। यह मामला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण यानी MUDA द्वारा कथित तौर पर अनियमित भूमि आवंटन से जुड़ा है। इस मामले का केंद्र एक 3.2 एकड़ का भूखंड है, जिसे 2010 में बी.एम. पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुनस्वामी ने उपहार में दिया था। बाद में मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण ने इस जमीन का अधिग्रहण कर लिया, जिसके बदले पार्वती को मुआवजे के रूप में 14 भूखंड आवंटित किए गए। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि इन भूखंडों का मूल्य मूल जमीन से कहीं अधिक है और इस घोटाले की कुल राशि 3,000 से 4,000 करोड़ रुपये के बीच हो सकती है।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस विनोद चंद्रन भी शामिल थे। पीठ ने ईडी के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल यानी एएसजी एस.वी. राजू से कड़े शब्दों में कहा, 'श्री राजू, कृपया हमें मुँह खोलने के लिए न मजबूर न करें। नहीं तो, हमें प्रवर्तन निदेशालय के बारे में कुछ कठोर टिप्पणियाँ करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। दुर्भाग्य से, मुझे महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। अब आप देश भर में इस हिंसा को जारी न रखें। राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जाए। आपको क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है?'

कोर्ट ने कहा कि ईडी को ऐसी कार्रवाइयों से बचना चाहिए जो इसे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का संदेश देती हैं। जवाब में राजू ने याचिका वापस लेने की पेशकश की, लेकिन कोर्ट से अनुरोध किया कि इसे नजीर न माना जाए।

अदालत ने मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया, 'हमें एकल न्यायाधीश के नज़रिए में अपनाए गए तर्क में कोई गड़बड़ी नहीं दिखती। मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम इसे खारिज करते हैं।' कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा, 'हमें कर्नाटक उच्च न्यायालय के फ़ैसले में कोई गड़बड़ी नहीं मिली। हम एएसजी को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने हमें कठोर टिप्पणी करने से बचा लिया।'

वरिष्ठ वकीलों को ईडी का समन

दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए वरिष्ठ वकीलों को उनके क्लाइंट्स को दी गई सलाह के लिए ईडी द्वारा जारी किए गए समन की जांच की। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, और इन-हाउस लॉयर्स एसोसिएशन ने हस्तक्षेप याचिकाएँ दायर की थीं। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने ईडी की इस कार्रवाई को भी गलत ठहराया और इसे राजनीतिक दुरुपयोग का हिस्सा माना।
देश से और खबरें
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल न करें। हम बार-बार कह रहे हैं कि कोर्ट को राजनीतिक लड़ाइयों का अखाड़ा न बनाएँ।' कोर्ट ने ईडी को चेतावनी दी कि वह ऐसी कार्रवाइयों से बचे, जो इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाएँ।

सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी और व्यापक प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों में ईडी को सख्त हिदायत दी कि वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि ईडी को उन मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, जो स्पष्ट रूप से राजनीतिक विवादों से प्रेरित हों। मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, 'इस तरह का वायरस पूरे देश में न फैलाएँ।'

ईडी पर पहले भी उठ चुके हैं सवाल

यह पहली बार नहीं है जब ईडी की कार्रवाइयों पर सवाल उठे हैं। हाल के महीनों में, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को कई बार आलोचना का सामना करना पड़ा है। फरवरी 2025 में, कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले में एक पूर्व आबकारी अधिकारी अरुण पति त्रिपाठी को जमानत देते हुए ईडी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने तब कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए का इस्तेमाल लोगों को अनिश्चितकाल तक जेल में रखने के लिए नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा, मई 2025 में तमिलनाडु के TASMAC शराब घोटाले में ईडी की छापेमारी पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि ईडी ने अपनी सीमाओं का उल्लंघन किया और संघीय शासन के सिद्धांतों का पालन नहीं किया।

'ईडी कोई ड्रोन या सुपर कॉप नहीं'

मद्रास हाई कोर्ट ने एक दिन पहले ही कहा है कि ईडी कोई ड्रोन या सुपर कॉप नहीं है, जो अपनी मर्जी से किसी भी आपराधिक गतिविधि पर हमला कर दे। कोर्ट ने साफ़ किया कि ईडी केवल मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत निर्धारित अपराधों और उससे जुड़े अपराध से संबंधित मामलों में ही जाँच कर सकता है। यह टिप्पणी चेन्नई की कंपनी आरकेएम पावरजेन प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई। इसमें ईडी द्वारा कंपनी की 901 करोड़ रुपये की सावधि जमा को फ्रीज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ईडी की शक्तियाँ पीएमएलए की धारा 66(2) के तहत सीमित हैं। ईडी स्वत: संज्ञान लेकर ऐसी जांच नहीं कर सकता, जब तक कि कोई निर्धारित अपराध या उससे जुड़ा नहीं हो। बेंच ने कहा, 'ईडी कोई घूमता हुआ गोला-बारूद या ड्रोन नहीं है, जो किसी भी आपराधिक गतिविधि पर मनमर्जी से हमला कर दे।' कोर्ट ने यह भी नोट किया कि ईडी द्वारा उल्लिखित कथित आपराधिक गतिविधियों के संबंध में कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई थी। इसने यह भी कहा कि ईडी कोई सुपर कॉप नहीं है, जो अपने संज्ञान में आने वाली हर चीज की जांच करे।

अदालतों की इन टिप्पणियों ने ईडी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने साफ़ किया है कि केंद्रीय एजेंसियों को अपनी शक्तियों का इस्तेमाल निष्पक्ष और कानून के दायरे में करना चाहिए, न कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए। इन मामलों ने ईडी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं और यह चर्चा छेड़ दी है कि क्या केंद्रीय जांच एजेंसियाँ स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं या राजनीतिक दबाव में।