इस घटना ने तालिबान शासन की महिला अधिकारों को लेकर लगातार लग रही वैश्विक आलोचना को फिर से सामने ला दिया है। अफगानिस्तान में तालिबान का महिलाओं के प्रति रवैया क्रूर और दमनकारी रहा है, जो 2021 में सत्ता हथियाने के बाद और तेज हो गया। संयुक्त राष्ट्र महिला एजेंसी की 2024 अफगानिस्तान जेंडर इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान ने 70 से अधिक डिक्री और निर्देश जारी किए हैं, जो महिलाओं और लड़कियों को सार्वजनिक जीवन से हटाने का प्रयास हैं। यह महिलाओं के अधिकारों का दुनिया का सबसे गंभीर संकट है, जहां महिलाओं को 'जेंडर अपार्थीड' का शिकार बनाया जा रहा है।
शिक्षा पर प्रतिबंध: अफगानिस्तान दुनिया का इकलौता देश है जहां लड़कियों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा से पूरी तरह वंचित रखा गया है। तालिबान ने सह-शिक्षा पर रोक लगाई और पुरुष शिक्षकों को लड़कियों को पढ़ाने से वर्जित किया। छठी कक्षा से ऊपर पढ़ाई पर रोक है। सितंबर 2025 में, तालिबान ने विश्वविद्यालयों से 600 से अधिक पुस्तकों को हटा दिया, जिनमें अधिकांश महिलाओं द्वारा लिखी गई थीं, और जेंडर स्टडीज कोर्स बंद कर दिए।
रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता: महिलाओं को सिविल सर्विस, एनजीओ, सौंदर्य सैलून और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में काम करने से प्रतिबंधित किया गया है। परिणामस्वरूप, केवल 25% महिलाएं काम कर रही हैं या तलाश रही हैं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 90% है।
स्वतंत्रता और सुरक्षा: महिलाओं को बिना महरम (पुरुष रिश्तेदार) के घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं। आवाज उठाने पर गिरफ्तारी, यातना और बलात्कार की घटनाएं आम हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में दर्जनों महिलाओं को हिजाब नियमों के उल्लंघन पर गिरफ्तार किया गया, जहां उन्हें अपमानजनक व्यवहार और यौन हिंसा का सामना करना पड़ा।
राजनीतिक भागीदारी: महिलाओं को डी फैक्टो कैबिनेट या स्थानीय कार्यालयों में कोई पद नहीं। 2020 में संसद में 25% महिलाएं थीं, लेकिन अब शून्य। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की पहली तिमाही में तालिबान ने महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से हटाने के लिए कई प्रतिबंध थोपे, जिसमें मीडिया पर भी सेंसरशिप शामिल है।