मोदी सरकार का सेमीकंडक्टर मिशन
2021 में कोविड महामारी के दौरान चीन-ताइवान से चिप सप्लाई बाधित होने के बाद ऑटोमोबाइल सेक्टर को भारी नुक़सान हुआ था। इसके बाद मोदी सरकार ने ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ शुरू किया और हजारों करोड़ रुपये की सब्सिडी देने का ऐलान किया। योजना यह थी कि जो कंपनी प्लांट लगाएगी, उसकी कुल लागत का 50 फीसदी केंद्र और कुछ हिस्सा राज्य सरकार उठाएगी।
157 साल पुराने टाटा ग्रुप की सेमीकंडक्टर में दिलचस्पी भी काफी है। 2021 में टाटा संस ने एक टेलीकॉम कंपनी खरीदी, जिसने बाद में एक भारतीय चिप डिजाइन कंपनी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी ली। 2022-23 में जापान की रेनेसास और अमेरिका की माइक्रोन के साथ साझेदारी की।
फरवरी 2024 में जब मोदी कैबिनेट ने तीन प्लांट को हरी झंडी दिखाई। इसमें से दो गुजरात में और एक असम में प्लांट लगाने की बात कही गई। दो बीजेपी शासित राज्य में हैं। तो टाटा को दो प्लांट मिल गए-
- धोलेरा (गुजरात)– ताइवान की पावरचिप के साथ मिलकर सिलिकॉन वेफर से तैयार चिप बनाना।
- मोरीगाँव (असम) – चिप असेंबली, टेस्टिंग और पैकेजिंग यूनिट।
टाटा इन दोनों प्लांट में कुल 1.18 लाख करोड़ रुपये निवेश करने जा रहा है और क़रीब 46000 नौकरियाँ पैदा करने का दावा है। इसमें से 44203 करोड़ रुपये की सब्सिडी केंद्र सरकार देगी।
रिपोर्ट के अनुसार इस पर स्क्रॉल ने टाटा संस के प्रवक्ता से चंदे की टाइमिंग के बारे में सवाल पूछे थे, लेकिन कंपनी की ओर से कोई जवाब नहीं आया। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को भी सवाल भेजे गए, उसका भी कोई उत्तर नहीं मिला।
टाटा और बीजेपी के बीच यह वित्तीय लेन-देन सब्सिडी और चंदे के बीच संयोग है या कुछ और, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है। लेकिन आँकड़े एक साफ़ पैटर्न दिखा रहे हैं- जिस कंपनी को सेमीकंडक्टर में सबसे बड़ी सब्सिडी मिली, वही बीजेपी की सबसे बड़ी दानदाता बन गई।