टाइम मैगजीन ने 2025 के लिए दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली हस्तियों की सूची जारी की है, लेकिन इस बार सूची में एक भी भारतीय का नाम शामिल नहीं होना चर्चा का विषय बन गया है। यह पहली बार नहीं है जब भारत से कोई नाम इस सूची में नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह एक असामान्य घटना है, खासकर तब जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति को मजबूत करने का दावा करता रहा है। पीएम मोदी भारत के विश्व गुरु बनने के जुमले उछालते रहे हैं। उनके चेले तो मोदी को ही विश्व गुरु बताते रहे हैं।

मोदी पांच बार टाइम की प्रभावशाली सूची में शामिल रहे हैं। उन्हें 2014, 2015, 2017, 2020, 2021 में जगह मिली थी। लेकिन इस बार सन्नाटा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
क्या दुनिया में प्रभाव घट रहा है...

दूसरी ओर, बांग्लादेश के नोबेल पुरस्कार विजेता और अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को इस सूची में स्थान मिला है, जिसने भारत में कई सवाल खड़े किए हैं। विशेष रूप से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो पहले पांच बार (2014, 2015, 2017, 2020, 2021) इस सूची में शामिल हो चुके हैं, इस बार गैरहाजिर हैं।

मोहम्मद यूनुस को टाइम मैगजीन ने 'लीडर्स' श्रेणी में शामिल किया है। उनकी यह उपलब्धि बांग्लादेश में 2024 में हुए राजनीतिक उथल-पुथल के बाद उनकी भूमिका को रेखांकित करती है। पिछले साल छात्र आंदोलन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट हुआ, और यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में देश को लोकतंत्र की ओर ले जाने की जिम्मेदारी संभाली। टाइम मैगजीन में पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने यूनुस की प्रशंसा करते हुए लिखा, "उन्होंने बांग्लादेश को दमन के साये से बाहर निकालकर मानवाधिकारों को बहाल करने और जवाबदेही की नींव रखने का काम किया है।"

यूनुस की यह उपलब्धि न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में बांग्लादेश की बढ़ती ग्लोबल प्रासंगिकता को भी दर्शाती है। हालांकि, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं ने भारत के साथ संबंधों को तनावपूर्ण बनाया है। भारत ने अगस्त 2024 से फरवरी 2025 के बीच बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2,374 हिंसक घटनाओं की सूचना दी थी, जिसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने यूनुस के साथ बातचीत में चिंता जताई थी। फिर भी, यूनुस की अंतरराष्ट्रीय छवि और उनकी लोकतांत्रिक प्रयासों ने उन्हें इस सूची में जगह दिलाई।

टाइम मैगजीन की सूची में भारत की अनुपस्थिति ने कई सवाल उठाए हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत से कई हस्तियां इस सूची में शामिल हुई हैं, जिनमें नरेंद्र मोदी, अभिनेत्री आलिया भट्ट, पहलवान साक्षी मलिक, उद्यमी गौतम अडानी, और भारतीय मूल के सत्या नडेला और अजय बंगा जैसे नाम शामिल हैं। इस बार, केवल भारतीय मूल की रेशमा केवलरमानी, जो वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स की सीईओ हैं, को सूची में जगह मिली। रेशमा 11 साल की उम्र में भारत से अमेरिका चली गई थीं और अब अमेरिका की नागरिक हैं।

टाइम मैगजीन का पुराना कवर पेज

क्यों नहीं हैं मोदी





नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति ने सबसे ज्यादा ध्यान खींचा है। 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी ने वैश्विक मंच पर भारत की छवि को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी नीतियों, जैसे डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, और विदेश नीति में सक्रियता, ने उन्हें पहले टाइम की सूची में जगह दिलाई थी। हालांकि, टाइम मैगजीन ने 2020 और 2021 में उनकी आलोचना भी की थी, खासकर हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने, अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर सवाल, और प्रेस की स्वतंत्रता पर कथित अंकुश के लिए मोदी पर तीखी स्टोरी भी टाइम ने की। उसने एक कवर पेज पर मोदी की तस्वीर लगाते हुए उन्हें चीफ डिवाइडर यानी देश तोड़ने वाला मुखिया तक लिखा था।

विश्लेषकों का मानना है कि भारत में हाल के कुछ मुद्दों ने मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित किया हो सकता है:

अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा: भारत में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं और सामाजिक तनाव की खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बनती रही हैं। टाइम ने 2021 में लिखा था कि मोदी सरकार ने "मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कमजोर किया और पत्रकारों को डराने का काम किया।" धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी में भी भारत लगातार पिछड़ रहा है।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल उठते रहे हैं। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भारत को "आंशिक रूप से स्वतंत्र" मीडिया वाला देश करार दिया है। इस मामले में भारत की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग लगातार गिर रही है। कई पत्रकारों की हत्या से भी देश दहलता रहता है।

इस सूची में भारत की अनुपस्थिति ने सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है। कुछ लोगों ने इसे भारत की वैश्विक छवि पर सवाल के रूप में देखा है, जबकि अन्य का मानना है कि यह केवल एक पत्रिका की राय है और इसका दीर्घकालिक प्रभाव नहीं होगा। एक्स पर कुछ यूजर्स ने इसे "भारत का अपमान" करार दिया, खासकर तब जब मोहम्मद यूनुस जैसे क्षेत्रीय नेता को शामिल किया गया। हालांकि अपमान की बात करने वालों को सोशल मीडिया पर ही भक्त कहा जा रहा है।

यह बताना जरूरी है कि टाइम की सूची उसका अपना नज़रिया है। अगर हम तटस्थ होकर बात करें तो भारत ने हाल के वर्षों में कई क्षेत्रों में प्रगति की है, जैसे अंतरिक्ष अनुसंधान (चंद्रयान मिशन), डिजिटल अर्थव्यवस्था। हां, यह सही है कि अल्पसंख्यक के अधिकारों, प्रेस स्वतंत्रता, और सामाजिक समावेश जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताएं भारत की छवि को प्रभावित कर रही हैं।

इससे सबक यह मिलता है कि भारत को अपनी ग्लोबल छवि को और मजबूत करने की जरूरत है। मोदी सरकार को उन मुद्दों पर ध्यान देना होगा जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का कारण बन रहे हैं, जिनमें अल्पसंख्यक सुरक्षा और प्रेस स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। मुस्लिमों पर बढ़ता अत्याचार, उनकी संपत्तियों को बुलडोजर से गिराने आदि की घटनाएं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आए दिन उठ रही हैं।