अमेरिकी सरकार ने 327 अंतरराष्ट्रीय छात्रों का वीजा कैंसल कर दिया है। इनमें से आधे छात्र भारतीय हैं। वीजा कैंसल होने वाले इन छात्रों में आधे से ज़्यादा वे हैं ओपीटी यानि ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर थे। यानि वे छात्र जिन्होंने पढ़ाई पूरी कर ली थी और अब अमेरिका में वैध रूप से काम कर रहे थे।

ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग अमेरिकी वीजा में मिलने वाली एक खास सुविधा है। इसमें छात्रों को ग्रैजुएशन या पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद एक साल तक काम करने की सुविधा मिलती है। अगर स्टूडेंट साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स जैसे विषयों का हो तो 24 महीने का एक्स्ट्रा समय मिलता है। यहाँ एक अलग मामाला भी है। ये मामला है SEVIS रिकॉर्ड का। जिन छात्रों का SEVIS रिकॉर्ड खत्म कर दिया गया, उनके लिए अब अमेरिका में रहना या काम करना मुश्किल हो गया है। SEVIS एक सरकारी डाटा सिस्टम है, जो स्टूडेंट्स वीज़ा पर नज़र रखता है। 

हर छात्र का एक SEVIS रिकॉर्ड होता है। जब यह रिकार्ड बंद हो जाता है तो छात्र का वीज़ा अमान्य हो जाता है। ऐसी हालत में उक्त छात्र अमेरिका में रह भी नहीं सकता और वापस भी नहीं लौट सकता है। ICE एजेंसियां ऐसे छात्रों की जांच भी कर सकती हैं।

इसलिए इस पूरे मामले में काफी हंगामा मचा हुआ है। अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन (AILA) ने 17 अप्रैल को एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वीज़ा रद्द करने के कारण स्पष्ट रूप से नहीं बताये गये हैं। कई जगह वे तर्कहीन भी नज़र आ रहे हैं। 

AILA ने इस मामले में कई खुलासे किये। असोसिएशन ने बताया कि जिन छात्रों का वीज़ा खारिज किया गया है उनमें 86% छात्रों का पुलिस से कभी न कभी संपर्क हुआ था। बाक़ी 34% पूरी तरह निर्दोष थे। उनपर कभी कोई आरोप नहीं लगा।

गौर करने वाली बात यह है कि छात्रों पर लगे आरोप भी एकदम साधारण किस्म के हैं, जैसे किसी ने तेज़ गाड़ी चलाई, किसी ने बिना लाइसेंस गाड़ी चलाई, किसी ने पार्किंग में कोई गलती कर दी या फिर कोई किसी दुकान में एक सामान स्कैन करवाना भूल गया।

एक छात्र को तो सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया था कि उसने पुलिस की गाड़ी को फायर ट्रक समझकर लेन बदल ली। ऐसा भी नहीं था कि ये स्टूडेंट्स पॉलिटिकली मूव्ड थे। यानि उनका कोई राजनीतिक झुकाव था।

AILA ने कहा कि केवल दो छात्र ही किसी राजनीतिक प्रदर्शन में शामिल थे, बाकी सभी छात्रों का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। इस मामले में ज्यादातर छात्रों को ईमेल से बताया गया कि उनका वीज़ा रद्द हो गया है। यह जानकारी उनके कॉलेज ने उन्हें दी जबकि कायदन अमेरिकी सरकार की ओर से जानकारी मिलनी चाहिए थी।

इस पूरे मामले के बाद भारत में चिंता बढ़ गई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है और विदेश मंत्री एस. जयशंकर को इसमें दखल देना चाहिए। जयराम रमेश का जवाब देते हुए भारत सरकार ने बताया कि इस मामले की उसे जानकारी है। वह छात्रों की मदद कर रही है। भारतीय दूतावास और काउंसलेट छात्रों के संपर्क में हैं। इसे लेकर छात्र परेशानी में हैं। उन्हें अब तक यह नहीं पता कि वे अपनी स्थिति कैसे सुधारें, काम पर कैसे लौटें या अमेरिका में रहना कैसे जारी रखें।

2023-24 में अमेरिका में 11.26 लाख विदेशी छात्र थे, जिनमें 3.31 लाख भारतीय थे – यानी लगभग हर तीसरा छात्र भारतीय था। इस मामलें में एक्स्पर्ट्स का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों का वीज़ा एक साथ रद्द होना सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं माना जा सकता।

अब बड़ा सवाल यह है – क्या यह सिर्फ वीज़ा की कहानी है या इसके पीछे कोई और गहरा संकेत छिपा है? क्या अमेरिका भारतीय छात्रों को कठोर तरीके से टारगेट कर रहा है? इसमें भारत सरकार कौन सी भूमिका निभा रही है? हालांकि छात्रों को सरकार आश्वासन दे रही है, पर ऊहापोह कायम है!