भारतीय सरकारी रिफाइनरियों द्वारा रूसी क्रूड तेल की खरीद बंद करने की रिपोर्ट में कितनी सचाई है? जानिए, MEA ने क्या कहा है।
रूसी तेल खरीद पर अमेरिकी राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रंप की हाल की धमकियों के बीच क्या भारतीय सरकारी तेल रिफाइनरियों ने रूसी कच्चे तेल की खरीद रोक दी है? कम से कम रायटर्स ने सूत्रों के हवाले से ख़बर तो यही दी है कि इन्होंने खरीद को पिछले एक सप्ताह से अस्थायी रूप से रोक दिया है। इस निर्णय के पीछे रूसी तेल पर मिलने वाली छूट में कमी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर टैरिफ़ लगाने की धमकी को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। जब मीडिया ब्रीफिंग के दौरान पत्रकारों ने सवाल पूछा कि क्या यह सही है कि भारतीय कंपनियों ने रूस से तेल ख़रीदना बंद कर दिया है तो विदेश मंत्रालय यानी एमईए के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि वह इस मामले से अवगत नहीं हैं।
हालाँकि, रणधीर जायसवाल ने यह भी कहा, 'अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में हम बाज़ार में उपलब्ध सुविधाओं और मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों के आधार पर निर्णल लेते हैं।' इससे पहले सरकारी सूत्रों के हवाले से ख़बरों में कहा गया था कि सरकार ने रूसी कच्चे तेल की खरीद रोकने वाली रिपोर्ट का खंडन किया है।
रूसी तेल पर भारत की निर्भरता
विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश भारत 2022 में यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू होने के बाद से रूसी कच्चे तेल का एक प्रमुख खरीदार बन गया है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण यूरोपीय बाजारों में नुकसान झेल रहे रूस ने अपनी तेल आपूर्ति को भारत और चीन जैसे एशियाई देशों की ओर मोड़ दिया है। फिलहाल रूस भारत के कुल तेल आयात का लगभग 35-40% हिस्सा सप्लाई करता है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन यानी IOC, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन यानी HPCL, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन यानी BPCL, और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड यानी MRPL जैसी सरकारी रिफाइनरियां भारत की 5.2 मिलियन बैरल प्रति दिन की रिफाइनिंग क्षमता का 60% से अधिक हिस्सा संभालती हैं और रूसी तेल पर काफी हद तक निर्भर हैं।
रायटर्स ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि इन रिफाइनरियों ने पिछले एक सप्ताह में रूसी तेल के लिए कोई नया ऑर्डर नहीं दिया है। इसके बजाय वे मध्य पूर्व और पश्चिम अफ्रीका से स्पॉट मार्केट में वैकल्पिक सप्लाई की तलाश कर रही हैं। इस बदलाव का कारण रूसी तेल पर छूट में कमी और राजनीतिक दबाव बताया जा रहा है।
हालाँकि, ईटी ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि रूस के साथ दीर्घकालिक कच्चे तेल की खरीद का समझौता करने वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी अपनी खरीदारी जारी रख सकती हैं। इन कंपनियों ने यूरोपीय बाजारों में संशोधित तेल उत्पाद बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा कमाया है।
ट्रंप की धमकी और दबाव
सरकार का खंडन
भारत सरकार ने रूसी तेल की ख़रीद रोके जाने की खबरों का खंडन किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने रिफाइनरियों को रूसी कच्चे तेल की खरीद रोकने का निर्देश देने के दावों को खारिज कर दिया है और कहा कि अमेरिकी दबाव के बावजूद अपना रुख बरकरार है। रूस भारतीय रिफाइनरियों के लिए कच्चे तेल का मुख्य आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि तेल खरीद के संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं किए गए हैं।
यूक्रेन संघर्ष के बाद कीमतों में भारी लाभ के कारण रूसी तेल भारतीय रिफाइनरियों और खासकर निजी कंपनियों के लिए पसंदीदा विकल्प बन गया है। यूरोपीय देशों और विभिन्न अमेरिकी क्षेत्रों द्वारा रूस से सीधे तेल आयात बंद करने के बाद भारतीय रिफाइनरियों ने इस कच्चे तेल का उपयोग घरेलू खपत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बड़े पैमाने पर निर्यात के लिए भी किया। वित्त वर्ष 2025 में भारत के आयात में रूसी कच्चे तेल का योगदान लगभग 50.3 बिलियन डॉलर था, जो देश के कुल कच्चे तेल व्यय 143.1 बिलियन डॉलर के एक तिहाई से अधिक था।
तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं
रूसी तेल की खरीद में कमी भारत की ऊर्जा लागत को बढ़ा सकती है, क्योंकि मध्य पूर्व और पश्चिम अफ्रीका से तेल की कीमतें रूसी तेल की तुलना में अधिक हैं। इससे तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जो पहले से ही महंगाई से जूझ रहे भारतीय उपभोक्ताओं के लिए चिंता का विषय है।
भारत का तेल ख़रीदना बंद करना रूस के लिए एक झटका हो सकता है। रूस ने भारत को रियायती दरों पर तेल बेचकर अपने राजस्व को बनाए रखा था। इस स्थिति से उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है। भारत-अमेरिका संबंधों पर भी इस घटनाक्रम का असर पड़ सकता है। ट्रंप की सख्त नीतियों और भारत पर व्यापार शुल्क ने पहले ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाया है।