Delhi Riots 2020 SC: दिल्ली दंगे के मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफिशा फातिमा ने शुक्रवार को कहा कि वो लोग 5 वर्षों से जेल में हैं। उनके खिलाफ हिंसा के सबूत पेश किए जाएं। वकीलों की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर की तारीख दे दी।
उमर खालिद शरजील इमाम आदि को फिर ज़मानत नहीं मिली। ये लोग पांच साल से जेल में हैं।
दिल्ली दंगों से जुड़ी ‘बड़ी साजिश’ मामले में आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफिशा फातिमा और अन्य की जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 31 अक्टूबर को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। लेकिन शुक्रवार को भी इन्हें ज़मानत नहीं मिली। इन लोगों पर यूएपीए के तहत केस दर्ज किए गए हैं। आरोपियों ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। लेकिन ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ऐसा 19वीं बार हुआ, जब तारीख लगी लेकिन ज़मानत नहीं मिली। अगली तारीख 3 नवंबर है।
Live Law के मुताबिक जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने मामले की सुनवाई की। अदालत ने अन्य आरोपियों मीरान हैदर, मोहम्मद सलीम खान और शिफा उर रहमान की दलीलों के साथ-साथ दिल्ली पुलिस की दलीलें सुनने के लिए मामले को सोमवार (3 नवंबर) तक के लिए स्थगित कर दिया है। दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर आरोपियों की जमानत का विरोध किया था। दिल्ली पुलिस ने कहा था कि यह अखिल भारतीय साजिश का मामला है। उमर खालिद, शरजील इमाम आदि आरोपी सरकार को गिराना चाहते थे।
वरिष्ठ वकील डॉ अभिषेक मनु सिंघवी की खास दलीलें
लाइव लॉ के मुताबिक गुलफिशा फातिमा की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि गुलफिशा फातिमा 11 अप्रैल, 2020 से, यानी 5 साल और 5 महीने से अधिक समय से हिरासत में हैं, लेकिन ट्रायल अभी तक शुरू नहीं हुआ है। चार्जशीट दाखिल हुए भी पाँच साल हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं और गवाहों की संख्या लगभग 800 है, जिससे ट्रायल में अत्यधिक समय लगेगा। उन्होंने कहा, "6-7 साल बाद जमानत मिलने का क्या मतलब है?" डॉ सिंघवी ने तर्क दिया कि फातिमा ने केवल CAA विरोध प्रदर्शनों के लिए महिलाओं को संगठित किया था। उन्होंने कहा, "आरोप है कि मैंने (गुलफिशा) धरना स्थल बनाए। किसी भी धरना स्थल पर हिंसा का कोई फोटो, वीडियो या सबूत नहीं है जहाँ मैंने आयोजन किया।" उन्होंने नजीब और जलालुद्दीन खान मामलों का हवाला दिया, जहाँ UAPA के सख्त प्रावधानों के बावजूद लंबी हिरासत के आधार पर ज़मानत दी गई थी।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की दलीलें
लाइव लॉ के मुताबिक उमर खालिद की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें रखीं। सिब्बल ने ज़ोर देकर कहा कि दंगे के समय उमर खालिद दिल्ली में मौजूद ही नहीं थे। खालिद के खिलाफ हिंसा के लिए कोई भौतिक साक्ष्य, हथियार की बरामदगी, या फंड जुटाने का कोई आरोप नहीं है। खालिद के खिलाफ एकमात्र कथित कार्रवाई 17 फरवरी को अमरावती में दिया गया एक भाषण है, जिसमें उन्होंने गाँधीवादी अहिंसा के सिद्धांतों का आह्वान किया था, जिसे किसी भी तरह से भड़काऊ नहीं माना जा सकता। उन्होंने सह-आरोपी आसिफ इकबाल तन्हा, देवंगाना कलिता और नताशा नरवाल को दी गई जमानत का हवाला दिया, जो दंगों के समय दिल्ली में मौजूद थे, जबकि खालिद नहीं थे। उन्होंने पूछा, "वे तीन दिल्ली में थे, उन्हें जमानत मिल गई। मैं (उमर) दिल्ली में मौजूद भी नहीं था, और मुझे जमानत से इनकार कर दिया गया!"
एडवोकेट सिद्धार्थ दवे की दलीलें
लाइव लॉ के मुताबिक शरजील इमाम के वकील सिद्धार्थ दवे ने भी हिरासत की लंबी अवधि पर अपनी दलीलें पेश कीं। दवे ने बताया कि शरजील इमाम दंगों से एक महीना पहले, 25 जनवरी, 2020 से ही हिरासत में हैं। उन्होंने सवाल किया, जब वह पहले से ही हिरासत में थे, तो उन्हें साजिश के लिए जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है? उन्होंने तर्क दिया कि इमाम के खिलाफ दिसंबर 2019 के भाषणों को कोट किया जा रहा है, जो दंगों से दो महीने पहले दिए गए थे। ये भाषण CAA के विरोध में ‘चक्का-जाम’ के आह्वान के बारे में थे, और उन्हें दंगों से जोड़ना ‘गलत’ है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 सितंबर 2025 को जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने इनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिकाएं (एसएलपी) दाखिल की गईं। पहले ही कई आरोपी जमानत पा चुके हैं, जैसे आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कालिता, नताशा नरवाल, सफूरा जरगर, इशरत जहां अलग-अलग वजहों से 2021 और 2022 से जमानत पर हैं।।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 12 सितंबर से शुरू होनी थी, लेकिन फाइलें देरी से मिलने के कारण स्थगित हुई। 19 सितंबर को जस्टिस मनमोहन ने खुद को मामले से अलग कर लिया, क्योंकि वे कपिल सिब्बल के चैंबर में पूर्व सहयोगी रहे थे। 22 सितंबर को नोटिस जारी कर सुनवाई 7 अक्टूबर के लिए तय की गई, जो 27 अक्टूबर को टली। 27 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस ने दो सप्ताह का समय मांगा, लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया। इसलिए दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को हलफनामा देकर ज़मानत दिए जाने का विरोध किया।
विशेषज्ञों का कहना है कि न्याय व्यवस्था का "मजाक" है, जहां सैकड़ों गवाहों के कारण मुकदमा सालों चलेगा। हाल के बेंगलुरु दंगों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल की हिरासत के आधार पर जमानत दी थी, जिसका हवाला दिया गया। 751 दंगा एफआईआरों में से अधिकांश में कोई साजिश का प्रमाण नहीं, लेकिन यूएपीए का इस्तेमाल विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए हो रहा है।