Delhi Riots 2020 Umar Khalid Sharjeel Imam: दिल्ली पुलिस ने 2020 के दंगों की साजिश मामले में उमर खालिद और शरजील इमाम वगैरह की जमानत का कड़ा विरोध करते हुए तर्क दिया कि वो दंगे 'शासन परिवर्तन अभियान' का हिस्सा थे। लेकिन ये बात उसने पांच साल बाद कही।
उमर खालिद (बाएं) और शरजील इमाम (दाएं)।
दिल्ली पुलिस ने जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य तीन आरोपियों की जमानत का विरोध किया है। इस संबंध में उसने एक हलफनामा पेश करते हुए अपना स्टैंड ही बदल दिया है। यानी अब तक जिस स्टैंड के आधार पर दिल्ली पुलिस केस लड़ रही थी, यह स्टैंज उससे अलग है। दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया है कि इन कथित अपराधों में "राज्य को अस्थिर करने का जानबूझकर किया गया प्रयास" शामिल है, जिसके लिए उन्हें "ज़मानत नहीं, जेल" मिलनी चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई (31 अक्टूबर) से ठीक एक दिन पहले दायर किए गए 177-पृष्ठ के हलफनामे में पुलिस ने दावा किया है कि फरवरी 2020 में हुई हिंसा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में अचानक नहीं भड़की थी। बल्कि यह "नागरिक असहमति की आड़ में एक कोऑर्डिनेटेड 'शासन परिवर्तन ऑपरेशन' (Regime Change Operation) का हिस्सा थी।"
अभियोजन पक्ष के अनुसार, इस योजना का मकसद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान सांप्रदायिक तनाव भड़काना था, ताकि अशांति को 'अंतर्राष्ट्रीय' स्तर पर ले जाया जा सके और भारत सरकार को भेदभावपूर्ण (discriminatory) के रूप में पेश किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और UAPA का पैमाना
अदालत में यह हलफनामा दो दिन बाद आया है जब जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने पुलिस से विचार करने को कहा था कि क्या आरोपियों को ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है, जो लगभग पाँच साल से विचाराधीन कैदी के रूप में न्यायिक हिरासत में हैं। बेंच ने सोमवार को टिप्पणी की थी, "देखिए, अगर आप कुछ सोच सकते हैं... पाँच साल पहले ही हो चुके हैं," यह संकेत देते हुए कि मुकदमे में ठोस प्रगति के बिना लंबी क़ैद अस्थायी रिहाई के पक्ष में जा सकती है।
सामान्य आपराधिक क़ानून के तहत, 'ज़मानत नियम है और जेल अपवाद' है। लेकिन गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत, ज़मानत देने से पहले अदालतों को यह तय करना होता है कि आरोप प्रथम दृष्टया (prima facie) भी आतंकवादी गतिविधि में संलिप्तता का सुझाव नहीं देते हैं। दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया है कि इस मामले में यह सीमा पूरी नहीं होती है।
हलफनामे में सबूतों का जिक्र
अधिवक्ता रजत नायर के माध्यम से दायर किए गए हलफनामे में दिल्ली पुलिस ने ज़ोर दिया है कि जाँचकर्ताओं ने मौखिक, दस्तावेज़ी और तकनीकी सबूत जुटाए हैं। जिनसे पता चलता है कि आरोपी सांप्रदायिक आधार पर तैयार की गई "गहरी साज़िश" का हिस्सा थे। पुलिस का दावा है कि एन्क्रिप्टेड चैट और संदेश बताते हैं कि विरोध प्रदर्शनों को जानबूझकर फरवरी 2020 में ट्रंप की यात्रा के साथ जोड़ा गया था ताकि पूरी दुनिया में संदेश भेजा जा सके।
अपने दावों को मज़बूती देने के लिए दिल्ली पुलिस ने कहा कि हिंसा का एक सुनियोजित पैटर्न था। अभियोजन पक्ष ने उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और बिहार के हिस्सों में लगभग उसी समय भड़की अशांति की घटनाओं का हवाला दिया। पुलिस ने इसे अलग-थलग घटनाक्रम के बजाय "एक पैन-इंडिया योजना" के सबूत के रूप में बताया है।
5 साल से सिर्फ तारीखें लेकिन देरी का आरोप उमर खालिद, शरजील इमाम पर
पुलिस ने हलफनामे में आरोपियों पर जानबूझकर मुकदमे में देरी करने का आरोप लगाया है। पुलिस का कहना है कि अकेले दस्तावेज़ों की आपूर्ति की कार्यवाही में दो साल में 39 सुनवाई लगीं, जबकि आरोप तय करने में लगभग 50 सुनवाई में देरी हुई है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी पिछले महीने एक फैसले में टिप्पणी की थी कि बचाव पक्ष ने देरी में योगदान दिया है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के दौरान कथित तौर पर छिपाया है।
आरोपी पक्ष का स्टैंड
आरोपी (खालिद, इमाम, मीरान हैदर, गुलफ़िशा फ़ातिमा, और शिफ़ा-उर-रहमान) लगातार यह कहते रहे हैं कि वे शांतिपूर्ण विरोध के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे थे और 'बड़ी साज़िश' का मामला असहमति को आपराधिक बनाने का प्रयास है। उनका तर्क है कि बिना मुकदमे के अनिश्चितकालीन क़ैद सज़ा से पहले दंड के समान है।
इसी मामले में 2021 में हाईकोर्ट ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ़ इक़बाल तन्हा को ज़मानत दी थी। उमर खालिद, शरजील इमाल, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर आदि ने मांग की है कि उन्हें भी नताशा, देवांगना और आसिफ की तरह जमानत दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करने वाला है। ऐसे में इस एफिडेविट के ज़रिए पूरे मामले को नए सिरे से देखने की कोशिश होगी।