Farmers Struggles for Fertilizer: अच्छे मानसून के बावजूद, यूरिया की कमी के कारण भारतीय किसानों को खरीफ फसलों की पैदावार में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सप्लाई चेन में रुकावट और वर्ल्ड मार्केट में खाद की कीमतों ने दिक्कतें बढ़ा दी हैं।
देश में इस साल मानसून की अच्छी बारिश ने किसानों के लिए बेहतर हालात पैदा किए, लेकिन यूरिया खाद की कमी ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। यूरिया के स्टॉक में कमी के कारण किसानों को अपनी फसलों की बुआई और देखभाल में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यूपी, बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल में किसानों को खाद वितरण केंद्रों के बाहर 8-8 घंटे लाइन में लगना पड़ रहा है, लेकिन बिना खाद की बोरी लिए उन्हें लौटना पड़ रहा है। इस वजह से खरीफ की फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। यह संकट ऐसे समय आया है जब पीएम मोदी उठते-बैठते किसान समर्थक होने का दावा करते हैं। उन्होंने यह तक कहा कि मैं किसानों के साथ चट्टान की तरह खड़ा हूं, यह बात उन्होंने अमेरिका के संदर्भ में कही थी। अमेरिका अपने कृषि उत्पाद भारत में उतारना चाहता है।
केंद्र सरकार के आँकड़ों के अनुसार, अगस्त 2025 तक देश में यूरिया का स्टॉक पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम है। यह कमी मुख्य रूप से ग्लोबल सप्लाई चेन में रुकावट और एक्सपोर्ट में देरी के कारण पैदा हुई है। यूरिया, जो नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत है, खरीफ फसलों जैसे धान, गन्ना और मक्का के लिए बहुत ही कीमती है। इसकी कमी से किसानों की उत्पादन लागत बढ़ रही है और फसल की पैदावार पर भी असर पड़ सकता है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार यूरिया की सप्लाई बढ़ाने के लिए घरेलू प्रोडक्शन को बढ़ावा दे रही है और एक्सपोर्ट प्रक्रिया को तेज करने के प्रयास कर रही है। हालांकि, ग्लोबल बाजार में यूरिया की कीमतों में वृद्धि और रूस-यूक्रेन संकट जैसे जियो पोलिटिकल मुद्दों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। अभी जब चीन के विदेश मंत्री भारत आए थे तो मोदी सरकार ने फर्टिलाइज़र आयात करने पर बात की है। सवाल यह है कि ऐसे इंतजाम में सरकार शुरू से आगे क्यों नहीं रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसान संगठनों ने सरकार से फौरन हस्तक्षेप की माँग की है। उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे प्रमुख कृषि राज्यों में किसानों ने यूरिया की किल्लत के कारण विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। एक किसान नेता ने कहा, "मानसून अच्छा होने के बावजूद, अगर समय पर खाद नहीं मिली तो हमारी मेहनत बेकार चली जाएगी।"
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यूरिया की कमी को दूर करने के लिए सरकार को वैकल्पिक खादों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए और दीर्घकालिक नीतियाँ बनानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचा जा सके।
सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सभी संभव कदम उठा रही है। फिर भी, किसानों के बीच बढ़ती बेचैनी और यूरिया की कमी का मुद्दा आने वाले दिनों में और गंभीर हो सकता है।
मार्केट में लूट, किसान करे तो करे क्या
यूरिया समेत तमाम प्रीमियम खाद का आयात अन्य देशों से होता है। केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए इसका कोटा बांधा हुआ है। सरकारी खाद केंद्रों से किसानों खाद खरीदने जाते हैं। लेकिन इंतजार के बावजूद उन्हें खाद की बोरी नहीं मिलती। क्योंकि स्टॉक इतना कम होता है कि आने के साथ ही खत्म हो जाता है। लेकिन प्राइवेट दुकानों पर प्रति बोरी 800 से 1000 रुपये तक वही खाद उपलब्ध है। यानी खाद की खुलेआम ब्लैक हो रही है और इसमें हर राज्य में सरकारी अधिकारी और दुकानदारों का नेक्सस शामिल है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में तो दो दिन पहले किसानों ने खाद की ब्लैकमार्केटिंग के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन भी किया। छत्तीसगढ़ में भी प्रदर्शन हो रहे हैं।
भारत अभी भी कृषि प्रधान देश है। लेकिन खेती-किसानी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है। मोदी सरकार एक बार तीन कृषि कानून लाने की कोशिश भी कर चुकी है लेकिन किसान आंदोलन की वजह से उसे तीनों कानून वापस लेने पड़े। भारत में अब इन्हें तीन काले कानून के रूप में जाना जाता है। पीएम मोदी ने कभी किसानों की आमदनी दोगुनी करने का भी वादा किया था लेकिन वो वादा ही रहा। उस पर कुछ महत्वपूर्ण काम नहीं हुआ।