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अमेरिका में पीएम मोदी के सामने प्रेस की आज़ादी का मुद्दा उठाने की मांग क्यों?

इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट यानी आईपीआई ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उठाने का आह्वान किया है। मीडिया संघ ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति पर चिंता जताई है और कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के शासन में महत्वपूर्ण पत्रकारों के खिलाफ कानून का हथियार की तरह इस्तेमाल आम हो गया है।

प्रधानमंत्री मोदी तीन दिवसीय आधिकारिक राजकीय यात्रा पर अमेरिका में हैं। मीडिया संघ ने कहा है कि बाइडेन को इस अवसर का उपयोग भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिए करना चाहिए, जिसमें कश्मीरी पत्रकारों की दुर्दशा और आलोचना करने वाले पत्रकारों को चुप कराने के लिए 'क़ानून' का दुरुपयोग शामिल है। इसने कहा है कि मोदी को देश में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए माहौल में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने के लिए मजबूर करना चाहिए।

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आईपीआई ने कहा है कि पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से एक दशक में मीडिया पर कार्रवाई आम हो गई है। आईपीआई ने पिछले महीने मोदी को एक खुला पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें उनसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तत्काल और ठोस कार्रवाई करने का आग्रह किया था। यह सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया गया था कि भारतीय जनता विविध, स्वतंत्र समाचार और जानकारी प्राप्त करने के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर सके।

कुछ दिन पहले ही आईपीआई ने वाशिंगटन पोस्ट की प्रेस फ्रीडम पार्टनरशिप के सहयोगी के रूप में सात अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता समूहों के साथ मिलकर एक अखबार में विज्ञापन प्रकाशित किया। इसमें वर्तमान में भारतीय सुरक्षा कानूनों के कथित उल्लंघन के लिए हिरासत में लिए गए छह पत्रकारों की दुर्दशा का ज़िक्र किया गया है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार आईपीआई की एडवोकेसी निदेशक एमी ब्रोइलेट ने कहा, 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत को प्रेस की स्वतंत्रता की वकालत करने और उसकी रक्षा करने में अग्रणी होना चाहिए, जिसकी गारंटी भारत के संविधान के तहत दी गई है।' उन्होंने कहा कि पत्रकारों पर हमले स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अभिशाप हैं। उन्होंने कहा कि बाइडेन प्रशासन को इस राजकीय यात्रा का उपयोग इन महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिए करना चाहिए और मांग करनी चाहिए कि मोदी सरकार भारतीय पत्रकारों को स्वतंत्र और सुरक्षित रूप से अपना काम करने में आने वाली बाधाओं को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई करे।
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बता दें कि पिछले वर्ष आईपीआई ने 200 से अधिक प्रेस स्वतंत्रता खतरों या उल्लंघनों का दस्तावेज इकट्ठा किया था जिसमें न्यायिक उत्पीड़न, लक्षित ऑनलाइन घृणा अभियान, शारीरिक हमले और मोदी की राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी की आलोचना करने वाले पत्रकारों की हिरासत शामिल है। इसमें विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक सदस्यों को निशाना बनाया गया है।  

रिपोर्ट में 2019 में जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा छीने जाने के दौरान 'सक्रिय स्वतंत्र मीडिया पर कठोर कार्रवाई', इंटरनेट और मोबाइल सेवा बंद होने, यात्रा प्रतिबंध, छापे, निगरानी और कश्मीरी पत्रकारों से पूछताछ जैसे मुद्दों को उठाया गया है।

बता दें कि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान कई अधिकार समूहों और यहां तक कि अमेरिकी सांसदों ने भी बाइडेन से भारत में मानवाधिकार के मुद्दों और लोकतांत्रिक गिरावट का मुद्दा उठाने का आग्रह किया है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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