उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वैक्सीन वैज्ञानिक डॉ. आकाश यादव की सजा को निलंबित कर दिया है। डॉ यादव को 2015 में अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। अदालत ने राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक स्वास्थ्य में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया। इस निर्णय के साथ, डॉ. यादव को अपनी वैज्ञानिक ड्यूटी पर वापस लौटने की अनुमति दी गई है।

जस्टिस रविंद्र मैथानी की अध्यक्षता वाली बेंच ने डॉ. यादव की अपील पर सुनवाई करते हुए उनकी सजा और पांच साल की सश्रम कैद की सजा को निलंबित कर दिया। 

अदालत ने कहा कि डॉ. यादव का योगदान वैक्सीन कार्यक्रमों और राष्ट्रीय टीकाकरण प्रयासों के लिए बहुत जरूरी है। उनकी सजा के कारण वे सरकारी कंपनी इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (आईआईएल) में अपनी सेवाएं देने में असमर्थ थे। यह कंपनी मानव और जानवरों के इलाज के लिए बनने वाली वैक्सीन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
डॉ. यादव, जो आईआईटी-खड़गपुर से बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी हैं, ने अपनी अपील में तर्क दिया कि उनकी सजा के कारण वे अपने वैज्ञानिक कर्तव्यों को निभाने में असमर्थ हो गए हैं। उनके वकील ने अदालत को बताया कि यह मामला असाधारण परिस्थितियों के अंतर्गत आता है, क्योंकि सजा ने राष्ट्रीय महत्व के काम को प्रभावित किया है।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों, जैसे नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब राज्य (2007) और रमा नारंग बनाम रमेश नारंग (1995) का हवाला देते हुए कहा कि अगर सजा को बरकरार रखने से किसी व्यक्ति की प्रोफेशनल स्थिति या सार्वजनिक हित की जिम्मेदारियों पर अनुचित प्रभाव पड़ता है, तो अपीलीय अदालत सजा को निलंबित कर सकती है। जस्टिस मैथानी ने कहा, "यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और राष्ट्रीय हित का एक बड़ा मुद्दा है।"
इससे पहले, रुद्रपुर के सत्र न्यायाधीश ने 21 जनवरी को डॉ. यादव को धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत पांच साल की सश्रम कैद की सजा सुनाई थी और 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया था। जमानत मिलने के बाद, यादव ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 389(1) के तहत एक अंतरिम आवेदन दायर किया था, जिसमें सजा को निलंबित करने की मांग की गई थी।
यह फैसला राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देने का एक उदाहरण है, जहां एक वैज्ञानिक की विशेषज्ञता को सार्वजनिक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण माना गया। हालांकि, इस फैसले पर लोगों ने सवाल भी उठाए हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कुछ यूजर्स ने इस फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि यह मामला असाधारण नहीं है। लोगों ने सवाल किया है कि अगर किसी वैज्ञानिक पर हत्या का आरोप है तो क्या राष्ट्रीय हित में उसकी हत्या की सजा को इस तरह रोक दिया जाएगा। किसी वैज्ञानिक पर किसी भी तरह का गंभीर आरोप लगने पर क्या उसकी सजा को इस तरह रोका जा सकता है।