मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन कई विवादों में घिर गए हैं। उनके खिलाफ संसद में महाअभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया गया है। दीपम विवाद सामने आने से पहले ही उन पर ब्राह्मणवादी होने का आरोप भी लग चुका है।
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ महाअभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस लोकसभा स्पीकर को दिया गया है। लेकिन अब पता चल रहा है कि स्वामीनाथन के खिलाफ विपक्षी सांसदों और वकीलों ने राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र लिखकर उनके ऊपर तमाम आरोप लगाए थे।
जस्टिस स्वामीनाथन थिरुप्परंकुंड्रम मंदिर-दरगाह विवाद को लेकर चर्चा में चल रहे हैं। इस विवाद से पूरे चार महीने पहले ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और तत्कालीन चीफ जस्टिस बी.आर. गवई को इस जज के खिलाफ इंडिया गठबंधन के सांसदों ने शिकायत दर्ज कराई थी। अगस्त 2025 में लिखे गए इन पत्रों में जस्टिस स्वामीनाथन पर ब्राह्मण समुदाय और दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े वकीलों को पक्षपातपूर्ण तरीके से तरजीह देने का गंभीर आरोप लगाया गया था।
हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में तैनात जस्टिस स्वामीनाथन ने थिरुप्परंकुंड्रम स्थित सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे पहाड़ी पर स्थित दरगाह के पास दीपस्तंभ पर कार्तिगई दीपम जलाने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। इस आदेश ने धार्मिक संवेदनशीलता को लेकर विवाद खड़ा कर दिया। विपक्ष ने इसे न्यायपालिका की निष्पक्षता से जोड़ा और सवाल उठाए। लेकिन अब सामने आया है कि यह पहली बार नहीं है जब इस जज के आचरण पर सवाल उठे हैं।
इंडिया गठबंधन के सांसदों ने 11 अगस्त 2025 को राष्ट्रपति मुर्मू और चीफ जस्टिस गवई को अलग-अलग एक जैसे ही पत्र भेजे थे। इन पत्रों में आरोप लगाया गया कि जस्टिस स्वामीनाथन एकल पीठ जज के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान ब्राह्मण समुदाय के वकीलों और दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े वकीलों को सुनवाई में प्राथमिकता दे रहे हैं। जस्टिस स्वामीनाथन न्यायिक प्रक्रिया में जातिगत पक्षपात और वैचारिक भेदभाव का प्रदर्शन कर रहे हैं। पत्रों में इसे "सिद्ध दुराचार और घोर कदाचार" करार दिया गया, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता, पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्ष कार्यप्रणाली को प्रभावित कर रहा है।
सांसदों ने पत्रों में जस्टिस के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियां और आदेश संविधान में निहित मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यक संरक्षण से जुड़े मामलों में दक्षिणपंथी राजनीतिक दर्शन की ओर झुकाव दिखाते हैं। एक प्रमुख उदाहरण के रूप में करूर जिले के एक मंदिर मामले का जिक्र किया गया, जहां जस्टिस ने 'अन्नदान' (भक्तों को मुफ्त भोजन दान) और 'अंगप्रदक्षिणम' (भोजन के बाद बचे पत्तों पर लोटने की प्रथा) की अनुमति दी, जबकि इससे पहले डिवीजन बेंच ने इसे अमानवीय बताकर प्रतिबंधित कर दिया था। सांसदों का कहना था कि ऐसे फैसले न्यायिक तटस्थता पर जनता का भरोसा कम करते हैं और अदालतों को राजनीतिक या सामाजिक संबद्धताओं से अलग रखने की अपेक्षा को चुनौती देते हैं।
इन पत्रों के चार महीने बाद, दिसंबर 2025 में विपक्ष ने संसद में जस्टिस स्वामीनाथन को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश की। इंडिया गठबंधन के सांसदों ने लोकसभा स्पीकर को पत्र सौंपा, जिसमें 13 गंभीर आरोपों का उल्लेख किया गया। राज्यसभा सदस्य तिरुचि सीवा ने कहा, "हमने जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ 13 आरोपों पर महाभियोग प्रस्ताव जमा किया है।" हालांकि, राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस की ओर से इन पत्रों पर कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया नहीं आई है।
यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर व्यापक बहस छेड़ने वाला है। विपक्ष का दावा है कि ऐसे उदाहरण न्याय व्यवस्था में जाति और विचारधारा के दखल को उजागर करते हैं, जबकि सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। थिरुप्परंकुंड्रम विवाद के बाद यह खुलासा राजनीतिक हलकों में तूफान ला सकता है, खासकर जब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा हो।
इस साल अक्टूबर में, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के. चंद्रू ने आरोप लगाया कि जस्टिस स्वामीनाथन ने धर्मनिरपेक्षता और विधि के शासन के विरुद्ध बयान देकर संविधान के प्रति अपनी शपथ का उल्लंघन किया है। जस्टिस चंद्रू की यह टिप्पणी हरियाणा में आरएसएस के एक कार्यक्रम में जस्टिस स्वामीनाथन द्वारा दिए गए उन बयानों के बाद आई, जिनमें उन्होंने कहा था कि संविधान को भारत सरकार अधिनियम, 1935 से "कॉपी" किया गया है। एक कार्यक्रम में बोलते हुए, जस्टिस चंद्रू ने जज को उनकी टिप्पणियों के लिए "अजीब व्यक्ति" बताया और कहा कि हाईकोर्ट के जज की ये टिप्पणियां डॉ. बी.आर. आम्बेडकर द्वारा परिकल्पित संवैधानिक व्यवस्था के मूल सिद्धांतों पर प्रहार करती हैं।
इस प्रस्ताव के बारे में जस्टिस चंद्रू ने कहा कि किसी जज को उसके "दुर्व्यवहार" के लिए पद से हटाने का एकमात्र तरीका संसद में महाभियोग प्रस्ताव है। उन्होंने कहा कि पहला चरण शुरू हो चुका है, लेकिन प्रस्ताव को अभी लंबा सफर तय करना है। जस्टिस चंद्रू ने कहा, “उनके द्वारा पारित न्यायिक आदेशों से कहीं अधिक, एक जज के रूप में उनका आचरण अशोभनीय है, उनके आदेशों की तो बात ही छोड़िए। उनका व्यवहार ऐसा है मानो वे आरएसएस और उसके अन्य संगठनों के प्रचार सचिव हों। वे निःसंकोच उनकी बैठकों में भाग लेते हैं और उस संविधान की निंदा करते हुए भाषण देते हैं जिसके तहत उन्होंने पद की शपथ ली थी।”
पूर्व जज ने आगे कहा, “वेदों में आस्था रखने के संबंध में विभिन्न मंचों पर दिए गए जस्टिस स्वामीनाथन के भाषण एक मौजूदा जज से बिल्कुल भी अपेक्षित नहीं हैं। यदि कोई निष्पक्ष रूप से उनके न्यायिक आचरण का आकलन करे तो आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुंच जाएगा कि न्यायपालिका वह स्थान नहीं है जहां उन्हें सेवा करनी चाहिए।”
‘वेद आपकी रक्षा करेंगे’- जस्टिस स्वामीनाथन
इस साल की शुरुआत में जस्टिस स्वामीनाथन उस समय विवादों में घिर गए, जब वकील एस. वंचिनाथन ने उन पर “अपमानजनक आरोप” लगाए कि वे अपने न्यायिक कर्तव्यों के निर्वहन में “सांप्रदायिक और जातिगत भेदभाव” कर रहे हैं। जस्टिस स्वामीनाथन सहित दो जजों की पीठ ने फैसला सुनाया कि वकील के आरोप प्रथम दृष्टया आपराधिक अवमानना के दायरे में आते हैं। हालांकि, इस आदेश के बाद वकीलों ने विरोध प्रदर्शन किया और जस्टिस चंद्रू समेत आठ रिटायर्ड जजों ने वकील के समर्थन में पत्र लिखा। इसके बाद दोनों जजों ने मामले को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पास भेज दिया, लेकिन इससे पहले जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने खिलाफ उन्हें “बदनाम करने का अभियान” चलाने का आरोप लगाया।
संविधान पर और उनकी अन्य टिप्पणियों के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने एक्स पर लिखा था- "अगर जजों की ऐसी मानसिकता है तो संविधान शायद टिक नहीं पाएगा।"